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प्रतीकात्मक तसवीर

ख़ुद न पढ़ सके तो पत्नी को टीचर बनाने की ज़िद, परीक्षा दिलाने को 1300 KM चलाई स्कूटी

कहा जाता है कि एक सफल पुरुष के पीछे स्त्री का हाथ होता है, लेकिन झारखंड की एक महिला के मामले में कहानी इसके उलट है। सफल होने पर वह ज़रूर कहेगी कि उसकी सफलता में एक पुरुष का हाथ है। उस महिला के लिए उसके पति ने काम ही कुछ ऐसा किया है। आठवीं तक पढ़े और रसोइया का काम करने वाला शख्स पत्नी को टीचर बनाने के लिए हर मुमकीन कोशिश कर रहा है। कोशिश ऐसी कि अपनी गर्भवती पत्नी को परीक्षा दिलाने के लिए 1300 किलोमीटर तक स्कूटी चलाकर परीक्षा केंद्र पहुँचाया।

वह युवक बांग्लादेश की सीमा से सटे झारखंड के गोड्डा ज़िले से ग्वालियर आया है। गोड्डा के गंटा गाँव निवासी धनंजय मांझी पेशे से रसोइया हैं। एक कैंटीन में खाना बनाया करते थे। कोरोना संक्रमण फैला और लॉकडाउन हुआ तो कैंटीन ठप हो गया। फाकाकशी की नौबत बनी। धनंजय ने हार नहीं मानी।

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धनंजय की शादी पिछले साल नवंबर में सोनी हेम्बरेंभ से हुई थी। सोनी मध्य प्रदेश के ग्वालियर में एक प्राइवेट काॅलेज में डिप्लोमा इन एलिमेंटरी एजुकेशन (डी.एड) की विद्यार्थी हैं। वह इस साल पाठ्यक्रम के द्वितीय वर्ष में हैं। इसी सप्ताह परीक्षाएँ आरंभ हुई हैं। परीक्षा 12 सितंबर तक चलेगी।

परीक्षा देने और ना देने को लेकर सोनी बेहद पशोपेश में थीं। आर्थिक हालात और सात माह की गर्भवती होना इसके मुख्य कारण थे। कोरोना के चलते ट्रेन और अन्य आवागमन के साधनों की कमी भी आड़े आ रही थी। धनंजय ने हार नहीं मानी। कुछ बसें चल रही थीं। ग्वालियर तक का किराया 15 हज़ार रुपये माँगा गया तो पति-पत्नी के होश फाख्ता हो गये।

धनंजय ने पत्नी को परीक्षा दिलाने के लिए सोनी के कुछ जेवर गिरवी रख दस हजार रुपये जुटाये। स्कूटी लेकर वह अपने गाँव से ग्वालियर के निकल पड़े। धनंजय की ज़िद, जुनून और जज्बे तथा सोनी की हिम्मत रंग लायी। तीन दिनों के मुश्किल सफर के बाद दोनों ग्वालियर पहुँच गये। ग्वालियर तक पहुँचने में दो हजार रुपये का पेट्रोल लगा। रास्ते में कुछ अन्य छिटपुट ख़र्च हुआ। परीक्षा तक के लिए धनंजय और सोनी ने परीक्षा केन्द्र के पास ही 1500 रुपये किराये पर कमरा ले लिया है।

धनंजय के अनुसार, बिहार और उत्तर प्रदेश में उन्होंने कई मुश्किलों का सामना किया। बदहाल सड़कों ने ख़ूब परेशान किया। मुजफ्फरपुर की लाॅज में एक रात काटी। लखनऊ के टोल प्लाजा पर एक रात रुके। बारिश ने रास्ता रोका। बारिश रुकने का इंतज़ार पेड़ों के नीचे काटकर किया। एक जगह नाला उफान पर मिला तो उसके उतरने का इंतज़ार भी किया। सात माह का गर्भ होने के चलते सोनी के पैरों में सूजन आयी। कमर में दर्द भी रहा। परीक्षा देने के लिए सभी दर्दों को भुलाकर वह धनंजय के कंधे से कंधा मिलाये आगे बढ़ती रही। 

धनंजय कहते हैं, ‘तमाम वजहों के चलते वह नहीं पढ़ पाये। उनकी पत्नी मेधावी हैं। उन्हें टीचर बनाना है। डी.एड करने पर टीचर बनने की राह आसान हो जायेगी।’

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दशरथ मांझी हैं धनंजय के रोल माॅडल

धनंजय मांझी के रोल माॅडल बिहार के दशरथ मांझी हैं। दशरथ मांझी ने अपनी पत्नी की राह आसान करने के लिए पहाड़ों को काटकर रास्ता बनाया था। दशरथ मांझी के अभूतपूर्व प्रयास और मिसाल को पूरा देश जानता है। बता दें कि दशरथ मांझी के प्रयासों से जुड़े क़िस्से मीडिया के सुर्खियाँ रहे हैं। इस पर फ़िल्म भी बनी है। 

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संजीव श्रीवास्तव
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