कोरोना के दस्तक देने के बाद वेंटिलेटर और आईसीयू बेड बढ़ाए जा रहे हैं लेकिन कोरोना पीड़ितों की संख्या अगर तेज़ी से बढ़ती है तो हमारे यहाँ भी इटली जैसी स्थिति आ सकती है जहाँ अब डॉक्टर यह तय करने पर मजबूर हैं कि बेड की सीमित संख्या को देखते हुए किन रोगियों को बचाया जाए और किनको ईश्वर की इच्छा पर छोड़ दिया जाए।
डब्ल्यूएचओ का मानना है कि एक हज़ार की आबाद पर कम से कम एक डॉक्टर होना चाहिए। लेकिन भारत में 2 हज़ार से ज़्यादा की आबादी पर एक डॉक्टर उपलब्ध है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2025 तक स्वास्थ्य सेवा पर ख़र्च को जीडीपी का ढाई प्रतिशत करने की घोषणा की थी। इस दिशा में कोई ठोस पहल अब तक सामने नहीं है।