कोरोना के भय और उसके साथ लड़ाई की चिंता ने हमारे यहाँ नागरिकों की प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) को इतना मज़बूत कर दिया है कि उन्हें ख़बर ही नहीं है (या कि दी जा रही है) कि दुनिया के एक बड़े प्रजातंत्र अमेरिका में इस समय एक अश्वेत नागरिक की पुलिस के हाथ हुई नृशंस हत्या के विरोध में पूरे देश में किस तरह के विरोध-प्रदर्शन सड़कों पर चल रहे हैं।
प्रसाद और मेहता द्वारा व्यक्त विचारों को इसलिए भी गम्भीरता से लिया जाना चाहिए कि महामारी से निपटने के लिए दवा की खोजबीन के साथ-साथ अदालतों, नागरिकों और मीडिया के ‘कर्तव्यों और अधिकारों’ को भी नए सिरे से परिभाषित करने का काम अगर सम्पादित किया जा रहा हो तो चिंता की बात बन सकती है।
कहा गया था कि राज्य की स्थिति एक डूबते हुए टायटेनिक जहाज़ और अहमदाबाद स्थित सिविल अस्पताल एक काल कोठरी से भी बदतर है। इसके बाद मुख्य न्यायाधीश द्वारा मामले की सुनवाई कर रही पीठ को बदलकर नई पीठ गठित कर दी गई।
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली इस पीठ ने अब कहा है कि : ‘राज्य सरकार अगर कुछ कर ही नहीं रही होती तो सम्भवतः हम सब अब तक बच ही नहीं पाए होते। संकट के समय हमने आबद्ध रहना है, झगड़ना नहीं है’।