अमेरिकी वापसी के बाद भी अफ़ग़ानिस्तान में शांति की उम्मीद कम क्यों दिखाई देती है? आख़िर क्यों कई गुटों में भिड़ंत की आशंका है? हथियारों का जो ज़खीरा अमेरिकी अपने पीछे छोड़ गए हैं, क्या वह कई नए हिंसक गुट नहीं पैदा कर देगा?
तालिबान ने फ़िलहाल शिनच्यांग के चीनी उइगर मुसलमानों से हाथ धो लिये हैं, कश्मीर को भारत का आंतरिक मुद्दा बता दिया है और मध्य एशिया के मुसलिम गणतंत्रों में इसलामी तत्वों के दमन से भी हाथ धो लिये हैं। इसीलिए अब तालिबान और खुरासानियों में जमकर ठनने की आशंका है।