राजस्थान में गौ तस्करी के संदेह में मध्य प्रदेश के एक शख्स की भीड़ ने पीट-पीटकर हत्या कर दी। पीड़ितों पर ही गौ तस्करी का मुक़दमा भी।
राजस्थान के भिलवाड़ा जिले में कथित तौर पर गौ रक्षकों ने गौ तस्करी के संदेह में मध्य प्रदेश के एक शख्स की पीट-पीटकर हत्या कर दी। यह घटना 15-16 सितंबर की आधी रात को हुई। मृतक की पहचान आसिफ बाबू मुल्तानी के रूप में हुई है। कुछ रिपोर्टों में उनका नाम शेरू सूसडिया बताया गया है। इस घटना ने एक बार फिर गौ रक्षा के नाम पर हिंसा और धार्मिक आधार पर निशाना बनाने के मुद्दे को सुर्खियों में ला दिया है। पुलिस ने पांच लोगों को गिरफ्तार किया है और एक विशेष जांच दल का गठन किया गया है।
पुलिस और परिवार के बयानों के अनुसार मंदसौर के मुल्तानपुरा निवासी आसिफ बाबू मुल्तानी और उनके चचेरे भाई मोहसिन डोल 15 सितंबर को भिलवाड़ा के लंबिया रायला पशु मेले से अपने खेती और डेयरी व्यवसाय के लिए बैल और भैंस खरीदकर पिकअप ट्रक से घर लौट रहे थे। 16 सितंबर की रात करीब 3 बजे एक सिल्वर कैंपर वाहन ने उनका पीछा करना शुरू किया और अंततः उनकी गाड़ी को सड़क किनारे रोक दिया। इसके बाद 14-15 लोगों की भीड़ ने उन्हें घेर लिया और ट्रक से बाहर खींचकर मारपीट शुरू कर दी।
आसिफ के भाई और शिकायतकर्ता मंजूर पेमला ने आरोप लगाया है, 'उन्होंने दोनों को गाड़ी से बाहर निकाला और उन पर हमला कर दिया। उन्होंने कहा कि वे गायें मारते हैं, जबकि शेरू और मोहसिन ने कहा कि उन्होंने ये जानवर मेले से खरीदे थे, लेकिन उन्होंने उनकी बात नहीं सुनी।' उन्होंने कहा कि मोहसिन किसी तरह वहाँ से बच निकलने में कामयाब रहे।
रिपोर्टों के अनुसार मोहसिन ने बताया, 'उन्होंने हमें गौ तस्कर कहकर चिल्लाना शुरू किया और बिना कुछ पूछे हम पर हमला कर दिया।'
एफ़आईआर में मोहसिन ने आरोप लगाया कि हमलावरों ने उनकी पशु खरीद की रसीदें छीन लीं और 36000 रुपये नकद भी लूट लिए। हमलावरों ने आसिफ के फोन से उनके परिवार को फोन करके 50 हज़ार रुपये की और मांग की, ताकि उनकी जान बख्शी जाए।
आसिफ को गंभीर चोटों के साथ अस्पताल ले जाया गया, जहां उनकी मौत हो गई। उनके परिवार में पत्नी, ढाई साल की बेटी और आठ महीने का बेटा है। हमले में घायल मोहसिन ने पुलिस को कुछ हमलावरों की पहचान सोशल मीडिया वीडियो के आधार पर की।
पुलिस की कार्रवाई और जांच
आसिफ के भाई मंजूर पेमला ने 17 सितंबर को बनेरा पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई, जिसके आधार पर पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता की धाराओं के तहत हत्या का प्रयास, चोट पहुंचाना, गलत तरीके से रोकना, उगाही, और गैरकानूनी जमावड़ा जैसे आरोपों में प्राथमिकी दर्ज की। साथ ही, पीड़ितों के खिलाफ गौ तस्करी का एक अलग मामला भी दर्ज किया गया है।
एक बयान में भीलवाड़ा पुलिस ने कहा कि उन्होंने पांच लोगों को गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में भेज दिया है। इसके अलावा, पशु तस्करी का एक और मामला दर्ज किया गया है और दोनों मामलों की जांच जारी है। एसआईटी सीसीटीवी फुटेज, डिजिटल साक्ष्य और निजी दुश्मनी, उगाही, या सड़क किनारे विवाद जैसे संभावित कारणों की जांच करेगी। मंजूर पेमला ने कहा कि प्राथमिकी में नामित कई हमलावर अभी भी फरार हैं, और परिवार को उनकी सुरक्षा की चिंता है।
आरोप: धार्मिक आधार पर निशाना बनाया गया
आसिफ के भाई मंजूर पेमला ने द हिंदू से बातचीत में कहा, 'मेरे भाई का एकमात्र अपराध यह था कि वह मुस्लिम था और पशु ले जा रहा था। ट्रक में गाय नहीं, केवल बैल और भैंसें थीं।' परिवार ने इस हमले को धार्मिक आधार पर निशाना बनाने की साजिश करार दिया है। उनके रिश्तेदार ने कहा कि पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए पांच लोगों की पहचान के बारे में परिवार को कोई साफ़ जानकारी नहीं है।
मोहसिन ने बताया कि हमलावरों ने उनकी बात सुनने से इनकार कर दिया और पशु खरीद की वैध रसीदें होने के बावजूद उन्हें गौ तस्कर कहकर पीटा। उन्होंने कहा, 'उन्होंने पशुओं को देखा, हमें मुस्लिम देखा और तुरंत हमलावर हो गए।'
यह घटना राजस्थान में गौ रक्षा के नाम पर हिंसा की ताजा कड़ी है। 2017 में अलवर जिले में डेयरी किसान पहलू खान को गौ तस्करी के संदेह में भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला था। 2018 में अलवर में ही अकबर खान की हत्या कर दी गई थी। 2021 में चित्तौड़गढ़ जिले में बाबूलाल भिल को गौ तस्करी के संदेह में भीड़ ने मार डाला। इन घटनाओं ने गौ रक्षा के नाम पर होने वाली हिंसा और धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के मुद्दे को उजागर किया है।
गौ रक्षा के नाम पर हिंसा की घटनाएं भारत में एक गंभीर सामाजिक और कानूनी चुनौती बन चुकी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, और उत्तर प्रदेश की सरकारों को गौ रक्षा से संबंधित सतर्कता को रोकने के लिए कदम उठाने का निर्देश दिया था। फिर भी ऐसी घटनाएँ बार-बार सामने आ रही हैं। जानकारों का कहना है कि गौ रक्षा समूहों को कुछ राज्यों में कानूनी संरक्षण और सामाजिक समर्थन प्राप्त होने के कारण उनकी गतिविधियां बढ़ी हैं।