एक बार फिर नये सिरे से राष्ट्रवाद के मुद्दे को खड़ा करने की कोशिश की जा रही है। इस बार शुरुआत दिल्ली से नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश से हो रही है। उत्तर प्रदेश की सरकार एक ऐसा क़ानून बनाने की सोच रही है जिसमें किसी भी निजी विश्वविद्यालय में अगर कोई ‘राष्ट्र-विरोधी गतिविधि’ होती पाई गई तो ऐसे विश्वविद्यालय की मान्यता रद्द हो सकती है।
यूनिवर्सिटी में क़ानूनी डंडे से राष्ट्रवाद पनपाएगी यूपी सरकार?
- उत्तर प्रदेश
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- 20 Jun, 2019

उत्तर प्रदेश सरकार को यह साफ़ करना चाहिए कि क्या मौजूदा क़ानून पर्याप्त नहीं है कि नये क़ानून की ज़रूरत पड़ रही है? अगर बीजेपी को लगता है कि विश्वविद्यालय के अंदर देश विरोधी हरक़तें इतनी बढ़ गई हैं कि उसे क़ानून बनाना पड़ रहा है तो फिर यह क़ानून सिर्फ़ निजी विश्वविद्यालयों पर ही क्यों लागू हो रहा है? राज्य सरकार के अधीन आने वाले विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में इसे क्यों नहीं लागू किया जा रहा है?
दरअसल, उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने इस मामले में अध्यादेश का मसौदा तैयार किया है जिसका मक़सद यह है कि किसी भी विश्वविद्यालय में ‘राष्ट्र विरोेधी गतिविधियों’ को ख़त्म किया जा सके और छात्रों के अंदर ‘राष्ट्रवाद’ की भावना पैदा की जा सके। उत्तर प्रदेश की सरकार में उप-मुख्यमंत्री केशव मौर्या का कहना है कि इस मामले में कैबिनेट ने फ़ैसला ले लिया है और न केवल उत्तर प्रदेश में बल्कि पूरे देश में किसी भी विश्वविद्यालय या कॉलेज में ऐसी गतिविधियों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
पत्रकारिता में एक लंबी पारी और राजनीति में 20-20 खेलने के बाद आशुतोष पिछले दिनों पत्रकारिता में लौट आए हैं। समाचार पत्रों में लिखी उनकी टिप्पणियाँ 'मुखौटे का राजधर्म' नामक संग्रह से प्रकाशित हो चुका है। उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकों में अन्ना आंदोलन पर भी लिखी एक किताब भी है।