फ़ोन की घंटी बजी। रात का साढ़े नौ बजा था। दूसरे सिरे पर नवीन थे। मैं चिंतित हुआ। नवीन उस्मान, अविनाश और विश्वजीत के साथ कुछ घंटे पहले ही शिव विहार की ओर निकले थे, जिसे फ़रवरी की हिंसा ने तहस नहस कर दिया था। खाना और कुछ पैसा भी लेकर। हिंसा के बाद राहत शिविर तोड़ डाले गए हैं लेकिन लोगों के पास पैसे नहीं हैं और न खाने को राशन है। परसों जब वे उस इलाक़े में थे तो अविनाश का सामना कुछ लाठीधारियों से हो गया था। इस रात के फ़ोन से मैं घबराया कि फिर कुछ वैसा ही तो नहीं हुआ।