पुलिस की हिंसा को सिर्फ़ पुलिस सुधार कार्यक्रम से नहीं रोका जा सकता। वह कुछ वैसी ही सामाजिक व्याधि है जैसे दहेज के लिए की जानेवाली हिंसा या हत्या। वह ताक़तवर के पास हिंसा के अधिकार पर सवाल करके ही दूर की जा सकती है। ताक़त के बेजा इस्तेमाल के ख़िलाफ़ सामाजिक जागरुकता के ज़रिए ही।
पुलिस सुधार से रुक जाएगी पुलिस हिंसा?
- वक़्त-बेवक़्त
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- 29 Jun, 2020

तमिलनाडु में बाप-बेटे की मौत के मामले के बाद एक बार फिर पुलिसिया उत्पीड़न पर बहस शुरू हो गई है। इसी तरह, उत्तर प्रदेश में नागरिकता के नए क़ानून का विरोध करने वालों पर, जिनमें ज़्यादातर मुसलमान थे, पुलिस की ज़्यादती और अत्याचार की चर्चा हुई थी। लेकिन सवाल पुलिस के रवैये को लेकर है कि यह कैसे और कब बदलेगा।