क्या कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान ने पहले से अधिक आक्रामक रुख अपनाया है और वह भारत के विरुद्ध बने माहौल का फ़ायदा उठाना चाहता है?
क्या मुसलिम बहुल देशों की संस्था इसलामी सहयोग संगठन (ऑर्गनाइजेशन ऑफ़ इसलामिक कोऑपरेशन यानी ओआईसी) कश्मीर के मुद्दे पर टूटने जा रहा है? क्या सऊदी अरब के नेतृत्व के ख़िलाफ़ बग़ावत होने वाली है? क्या कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान ने पहले से अधिक आक्रामक रुख अपनाया है और वह भारत के विरुद्ध बने माहौल का फ़ायदा उठाना चाहता है?
पाकिस्तानी धमकी
ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरेशी ने चेतावनी दी है कि यदि ओआईसी ने कश्मीर पर विदेश मंत्रियों की बैठक जल्द ही नहीं बुलाई तो पाकिस्तान यह बैठक बुलाएगा और कश्मीर पर उससे सहमति रखने वाले देश इसमें भाग लेंगे।
क़ुरैशी ने कहा,
'मैं बहुत ही सम्मान के साथ कहना चाहता हूं कि हम यह उम्मीद करते हैं कि ओआईसी विदेश मंत्रियों के परिषद की बैठक बुलाए। यदि आप ऐसा नहीं करते हैं तो मैं प्रधानमंत्री इमरान ख़ान को यह दरख़्वास्त करने को मजबूर हो जाऊंगा कि वह यह बैठक बुलाएं ताकि इसमें वे देश भाग ले सकें जो कश्मीर के मुद्दे पर हमारे साथ हैं।'
पाकिस्तानी चाल
पाकिस्तान का यह कहना इसलिए अहम है कि इसके पहले दिसंबर में मलेशिया की राजधानी कुआललम्पुर में बैठक हुई थी। लेकिन इस बैठक में तुर्की जैसे कुछ देश ही शामिल हुए थे। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान स्वयं इसमें शामिल होना चाहते थे, पर अंतिम समय उन्होंने कार्यक्रम रद्द कर दिया।
समझा जाता है कि सऊदी अरब के दबाव में उन्होंने यह फ़ैसला लिया था क्योंकि सऊदी उस बैठक को नाकाम करने में लगा था और अंत में वह बैठक बुरी तरह नाकाम रही थी।
बहावी इसलाम
इसकी बड़ी वजह यह रही कि सऊदी अरब इसके प्रचार प्रसार और मदरसा चलाने के लिए दिल खोल कर पैसे देता था। इसका सबसे सटीक उदाहरण पाकिस्तान है। तत्कालीन प्रशासक जनरल ज़िया-उल-हक़ ने सत्ता पर अपनी पकड़ बनाने के लिए बहावी इसलाम को पाकिस्तान में पाँव पसारने दिया, सऊदी अरब की मदद से पाकिस्तान में हज़ारों मदरसे चले। नतीजा सबके सामने है।
अब स्वंय इसलामी देश इस बहावी इसलाम से बाहर निकलना चाहते हैं। कोशिश यह हो रही है कि इसलाम की उदार व्याख्या को बढ़ावा दिया जाए। मलेशिया इस गुट की अगुआई कर रहा है। यह सऊदी अरब को चुनौती देना है।
ओआईसी में कश्मीर
जहां तक कश्मीर का सवाल है, पाकिस्तान की तमाम कोशिशों के बावजूद ओआईसी में पहले उसकी उसकी दाल नहीं गली थी। ईरान समेत कई देश कश्मीर के मुद्दे पर भारत के रुख का समर्थन करते रहे हैं। इसमें इराक़, सीरिया, लेबनान, मध्य पूर्व के कई देश और एशियाई देश इंडोनेशिया, मलेशिया या ब्रुनेई भी रहे हैं।
नरेंद्र मोदी सरकार की विदेश नीति और कई मुद्दों पर उसकी घरेलू नीतियों से ज़्यादातर मुसलिम देश नाराज़ हैं। पाकिस्तान इस स्थिति का फ़ायदा उठा कर ओआईसी में भारत के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पारित करवाने की जुगत में है।
विदेश नीति
अमेरिकी दबाव में आकर ईरान से कच्चा तेल खरीदने से इनकार करने पर तेहरान बहुत ही नाराज़ हुआ। संयुक्त राष्ट्र और ओआईसी में कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान का विरोध और भारत का समर्थन करने वाले ईरान को यह बहुत ही नागवार गुजरा कि जब वह संकट में आया तो भारत ने उसका साथ नहीं दिया।
मुसलिम-विरोधी छवि
सीएए-एनआरसी
नागरिकता संशोधन क़ानून और नैशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजन्स ने रही रही कसर भी निकाल दी। इसे इससे समझा जा सकता है कि ईरान जैसे देश ने भारत का विरोध किया। ओआईसी ने प्रस्ताव पारित कर सीएए और एनआरसी का विरोध किया और भारत को सलाह दी कि वह अपने फ़ैसले पर विचार करे।
जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म किए जाने पर और उसके बाद वहां लंबे समय तक लॉकडाउन लगाने के बाद भारत की स्थिति और कमज़ोर हुई। एक बार फिर ओआईसी ने भारत का विरोध किया।
दोस्त, दोस्त न रहा
भारत से बेहतर व्यापारिक रिश्ते रखने वाला और अपने पाम ऑयल का लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा भारत को निर्यात करने वाला मलेशिया तक इस मुद्दे पर उखड़ गया। उसने भी भारत का विरोध किया।
भारत से बेहतर रिश्ते रखने वाले तुर्की ने पाकिस्तान का साथ दिया। इस तरह तुर्की-पाकिस्तान-मलेशिया एक्सिस बना जो सऊदी अरब को चुनौती तो दे ही रहा है, भारत को किसी तरह की रियायत देने के ख़िलाफ़ है।
भारत के साथ दिक्क़त यह है कि मोदी सरकार की नीतियाँ इसके तमाम पुराने दोस्तों को इसके ख़िलाफ़ भड़का रही हैं। बीजेपी की मुसलिम-विरोधी नीतियों से भारत की छवि भी मुसलिम विरोधी बनती जा रही है।
कुल मिला कर स्थिति यह है कि भारत की मुसलिम-विरोधी छवि बन गई है, कई देश राजनीतिक कारणों से भारत से नाराज़ है। पाकिस्तान इस स्थिति का फ़ायदा उठा रहा है।
ऐसे में ओआईसी की अलग बैठक बुलाने की पाकिस्तान की मांग भारत के लिए ख़तरे की घंटी के समान है। यदि वाकई उसने बैठक बुलाई और उसमें अधिकतर देशों ने भाग ले लिया तो भारत को बहुत नुक़सान होगा।
कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म करने के मुद्दे पर भारत के पक्ष में बोलने वाला कोई नहीं होगा, ईरान, मलेशिया जैसे देश भी नहीं। यदि यह बैठक हुई तो भारत के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पारित हो सकता है। इससे कश्मीर के मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय जगत में भारत की स्थिति कमज़ोर होगी।