अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गुरुवार को एक सनसनीखेज बयान में घोषणा की कि वाशिंगटन शुक्रवार यानी 4 जुलाई से 170 से अधिक देशों को टैरिफ़ पत्र भेजना शुरू करेगा। इन पत्रों में प्रत्येक देश के लिए निर्धारित ‘रेसिप्रोकल टैरिफ़’ की जानकारी होगी। यह ऐलान भारत और अमेरिका के बीच चल रही तनावपूर्ण व्यापार वार्ता के बीच आया है। यह बातचीत एक अंतरिम व्यापार समझौते की दिशा में बढ़ रही है। ट्रंप का यह क़दम वैश्विक व्यापार में एक नया तूफ़ान खड़ा कर सकता है और भारत जैसे देशों के लिए चुनौतियाँ बढ़ा सकता है।

टैरिफ़ पत्रों का मक़सद

ट्रंप ने अपने बयान में साफ़ किया है कि वह उन देशों पर टैरिफ़ लगाने की योजना बना रहे हैं जो अमेरिकी उत्पादों पर काफ़ी ज़्यादा आयात शुल्क लगाते हैं। उनका तर्क है कि यदि कोई देश अमेरिका से 100% या उससे अधिक टैरिफ़ वसूलता है तो अमेरिका भी उसी स्तर का टैरिफ़ वसूलेगा। इस ‘रेसिप्रोकल टैरिफ़’ नीति का उद्देश्य अमेरिकी व्यापार घाटे को कम करना और घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देना है। ट्रंप ने कहा, 'मैं जटिल समझौतों के बजाय साधारण सौदे पसंद करता हूँ। हमारा लक्ष्य है कि अमेरिका को व्यापार में नुक़सान न उठाना पड़े।'
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इस नीति के तहत ट्रंप प्रशासन ने पहले ही वियतनाम और चीन के साथ व्यापार समझौतों की घोषणा की है। वियतनाम पर 20% टैरिफ़ और चीन से आयातित सामानों पर दोगुना टैरिफ़ लगाया गया है। यह नज़रिया अन्य ASEAN देशों के लिए भी एक मिसाल कायम कर सकता है। भारत के संदर्भ में ट्रंप ने पहले आरोप लगाया था कि भारत अमेरिकी उत्पादों पर 100-200% तक टैरिफ़ वसूलता है और अब वह इस असंतुलन को ख़त्म करने की माँग कर रहे हैं।

भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता

भारत और अमेरिका पिछले कई महीनों से एक अंतरिम व्यापार समझौते पर बातचीत कर रहे हैं। यह समझौता दोनों देशों के बीच व्यापारिक तनाव को कम करने और टैरिफ़ विवादों को सुलझाने का प्रयास है। ट्रंप ने 28 जून को संकेत दिया था कि भारत के साथ जल्द ही एक व्यापार समझौता हो सकता है, लेकिन साथ ही चेतावनी दी थी कि यदि समझौता नहीं हुआ तो 9 जुलाई से भारत पर अतिरिक्त टैरिफ़ लगाए जा सकते हैं। 

मार्च 2025 में ट्रंप ने अमेरिकी संसद के संयुक्त सत्र में कहा था कि भारत अमेरिकी उत्पादों पर काफ़ी ज़्यादा टैरिफ़ लगाता है और 2 अप्रैल से वह जवाबी टैरिफ़ लागू करेंगे। हालाँकि, भारत ने जवाब में अपने टैरिफ़ को कम करने की सहमति जताई थी, जिसे ट्रंप ने अपनी कूटनीतिक जीत के रूप में पेश किया।

भारत के वाणिज्य मंत्रालय ने अभी तक इस ताज़ा ऐलान पर आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि भारत टैरिफ़ में कुछ रियायतें देने को तैयार है, खासकर कृषि, फ़ार्मास्यूटिकल्स और प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में। बदले में भारत अमेरिका से अपने आईटी और सेवा क्षेत्र के लिए बेहतर बाजार पहुँच की माँग कर रहा है। 

ट्रंप का बयान और उसका संदेश

ट्रंप ने अपने बयान में कहा, 'हम शुक्रवार से दुनिया भर के देशों को पत्र भेज रहे हैं। ये पत्र बताएँगे कि हम उनके साथ व्यापार कैसे करेंगे। भारत जैसे देश, जो हमसे भारी टैरिफ वसूलते हैं, उन्हें अब उसी भाषा में जवाब मिलेगा।' उन्होंने यह भी जोड़ा कि वह भारत के साथ एक शानदार सौदा चाहते हैं, लेकिन अगर यह संभव नहीं हुआ तो टैरिफ़ लागू करना अनिवार्य होगा।
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ट्रंप की इस नीति को उनके 'अमेरिका फर्स्ट' एजेंडे का हिस्सा माना जा रहा है, जो उनके पहले कार्यकाल से ही उनकी व्यापार नीति का आधार रहा है। उन्होंने वियतनाम और चीन के साथ हाल के समझौतों को उदाहरण के रूप में पेश किया, जिसमें अमेरिका को अपने हिसाब से शर्तें मिली हैं। ट्रंप ने दावा किया कि यह नीति अमेरिकी नौकरियों को बचाएगी और आयात पर निर्भरता कम करेगी।

भारत पर असर

यदि भारत पर 26% रेसिप्रोकल टैरिफ़ लागू होता है, जैसा कि कुछ रिपोर्टों में दावा किया गया है तो भारतीय निर्यात, विशेष रूप से फार्मास्यूटिकल्स, कपड़ा और ऑटोमोबाइल क्षेत्र प्रभावित हो सकते हैं। भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स, शराब, और ऑटोमोबाइल्स जैसी अमेरिकी उत्पादों की क़ीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे मध्यम वर्ग पर बोझ बढ़ेगा। भारत सरकार पर घरेलू उद्योगों और किसानों को संतुष्ट करने का दबाव बढ़ेगा, क्योंकि टैरिफ में रियायतें देने से स्थानीय हित प्रभावित हो सकते हैं।

अमेरिका पर असर

टैरिफ़ बढ़ने से अमेरिका में आयातित सामानों की क़ीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे महंगाई बढ़ने का ख़तरा है। अमेरिकी विनिर्माण और कृषि क्षेत्र को संरक्षण मिल सकता है, लेकिन वैश्विक सप्लाई चेन में व्यवधान की आशंका है। यह नीति अन्य देशों को जवाबी टैरिफ़ लगाने के लिए प्रेरित कर सकती है, जिससे एक नया व्यापार युद्ध शुरू हो सकता है।
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वियतनाम और चीन जैसे देशों के बाद भारत और अन्य ASEAN देशों पर टैरिफ़ का दबाव बढ़ेगा। यह वैश्विक व्यापार संतुलन को प्रभावित कर सकता है। विश्व व्यापार संगठन में इस नीति को चुनौती दी जा सकती है, क्योंकि रेसिप्रोकल टैरिफ़ बहुपक्षीय व्यापार नियमों का उल्लंघन कर सकते हैं।

भारत और अमेरिका के बीच व्यापार वार्ता अब और अहम हो गई है। यदि दोनों देश 9 जुलाई की समय सीमा से पहले एक अंतरिम समझौते पर पहुँच जाते हैं तो टैरिफ का खतरा टल सकता है। भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने हाल ही में कहा था कि सरकार एक संतुलित समझौते की दिशा में काम कर रही है, जो भारतीय हितों की रक्षा करे। दूसरी ओर, ट्रंप की सख्त नीति से यह साफ़ है कि वह अपनी शर्तों पर ही समझौता चाहते हैं।