हरिद्वार 'धर्म संसद' में जिस तरह का जहर उगला गया उसका संकेत क्या है? आख़िर क्यों कहा जा रहा है कि ऐसा कर गृह युद्ध को बुलावा दिया जा रहा है?
पंजाब में बेअदबी के मामले और भीड़ हिंसा को लेकर जिस तरह के बयान आ रहे हैं और उस पर जिस तरह की चुप्पी है, क्या वे अच्छे संकते हैं? सजा अदालतें तय करेंगी या भीड़?
क्या नरेंद्र मोदी और बीजेपी काशी विश्वनाथ मंदिर के जरिए हिन्दू राष्ट्रवाद को उभारने की कोशिश कर रहे हैं? क्या कहना है वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग का?
तमिलनाडु के कुन्नूर में सेना के हेलीकॉप्टर हादसे में सीडीएस बिपिन रावत की मृत्यु के बाद दुर्घटना पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। इसका जवाब कौन देगा?
क्या राष्ट्रीय स्वंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने हिन्दू जन्म दर के बहाने मुसलमानों को निशाने पर लेने की रणनीति पर चल रहे हैं?
ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस बीजेपी के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ रही है या फिर बीजेपी को फायदा पहुँचाने की? आख़िर, ममता की रणनीति क्या है?
तीन कृषि क़ानूनों को रद्द करने की घोषणा प्रधानमंत्री ने क्यों की है? क्या किसानों के दुख से उनका हृदय परिवर्तन हो गया? उनके कहने के क्या मायने हैं?
कंगना रनौत ने जब एक कार्यक्रम में कहा कि आज़ादी 1947 में नहीं बल्कि 2014 में मिली है तो तालियाँ बजाने वाले लोग कौन थे? आख़िर किसी ने भी खड़े होकर विरोध क्यों नहीं जताया?
हाल में 13 राज्यों में 29 विधानसभा सीटों और 3 लोकसभा सीटों के उपचुनाव के नतीजों ने बीजेपी को आख़िर क्यों हिला कर रख दिया है? जानिए, वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग क्या लिखते हैं।
पिछली दिवाली पर देश भर में हताशा का माहौल था, इस बार हालात थोड़े अलग हैं। लेकिन लोगों में हताशा देखी जा सकती है और यह सरकारों की जिम्मेदारी है कि वे हालात को जल्द से जल्द बेहतर करें।
गांधीवादी एस एन सुब्बाराव को कैसे याद किया जाएगा? आंदोलनों में उनकी भागीदारी कैसी थी? जानिए, उनको क़रीब से जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग कैसे याद करते हैं।
वैश्विक भूख सूचकांक 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक़, भारत पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल से भी पीछे है।
गृह मंत्री अमित शाह का यह कहना कि नरेंद्र मोदी तानाशाह नहीं हैं, कई सवाल खड़े करता है। क्या है मामला, उन्होंने ऐसा क्यों कहा?
क्या न्यायपालिका देश के संविधान की रक्षा के लिए कोई कदम उठाएगी, यह सवाल उठा रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग।
क्या भारत को आज महात्मा गांधी के विचारों की ज़रूरत नहीं है? क्या मौजूदा सरकार और सत्तारूढ़ दल जानबूझ कर गांधी के विचारों पर हमले कर रही है? बता रहे हैं पत्रकार श्रवण गर्ग।
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत आख़िर देश में पॉजिटिव मीडिया क्यों चाहते हैं? खुद संघ के मुखपत्र ‘पाँचजन्य’ द्वारा एक उद्योग समूह को राष्ट्र-विरोधी बताना कितनी सकारात्मक ख़बर है?
देश में आज मीडिया की हालत क्या है और आम नागरिकों के लिए यह कितना बड़ा नुक़सान है? अधिकतर सम्पादक न तो अपने पाठकों को बताने को तैयार है और न ही कोई उससे पूछना ही चाहता है कि ख़बरों का ‘तालिबानीकरण’ किसके डर अथवा आदेशों से कर रहे हैं?
अमेरिका पर 9/11 के हमले के 20 साल बाद वह अफ़ग़ानिस्तान छोड़ कर वापस लौट गया है। लेकिन वह जो अफ़ग़ानिस्तान छोड़ गया है, वह बदला हुआ है। सवाल यह है कि इस बदले हुए देश में भारत अपनी भूमिका तलाशता है या नहीं।
क्या आम जनता इस आशंका में रहती है कि प्रधानमंत्री बगैर किसी योजना के कभी भी कुछ भी घोषणा कर दे सकते हैं और उसका खामियाजा देश भुगतता रहेगा? पढ़ें श्रवण गर्ग का यह लेख।
अपने पिछले आलेख में मैंने विभाजन की विभीषिका को एक स्मृति दिवस के रूप में मनाने के पीछे के मक़सद को ढूँढने की कोशिश की थी पर सफलता नहीं मिली। आलेख पर जो प्रतिक्रियाएँ मिली हैं उनसे कुछ संकेत ज़रूर मिलते हैं....
हमारे 14 अगस्त के अब तक ख़ाली पड़े दिन के नए उपयोग को लेकर अभी सिर्फ़ घोषणा भर हुई है। उसका विस्तृत ब्यौरा सार्वजनिक किया जाना शेष है।
खेल रत्न पुरस्कार की पहचान को बदलने के लिए एक सौम्य व्यक्तित्व के धनी, आतंकवाद का शिकार हुए एक पूर्व प्रधानमंत्री और सर्वोच्च अलंकरण ‘भारत रत्न‘ से विभूषित राजीव गांधी के नाम का चयन क्यों किया गया?
राहुल गांधी के ख़िलाफ़ पार्टी के बाहर और भीतर से नियोजित तरीक़े से प्रारम्भ हुए हमले अगर कोई संकेत हैं तो विभाजन की आशंका सही भी साबित हो सकती है।
प्रधानमंत्री का भाषण इसलिए भी महत्वपूर्ण होगा कि पश्चिम बंगाल के चुनाव नतीजों से झुलसी हुई सत्तारूढ़ बीजेपी छह महीनों बाद ही उत्तर प्रदेश सहित पाँच राज्यों में चुनावों का सामना करने जा रही है।
पेगासस जासूसी काण्ड का खुलासा क्या निजता पर हमले को नहीं दिखाता है? मीडिया के एक धड़े द्वारा किए गए इतने सनसनीखेज खुलासे के बावजूद भारतीय मन में उदासीनता क्यों है?
इज़रायल में निर्मित जासूसी करने वाले पेगासस सॉफ़्टवेयर या स्पाईवेयर की मदद से आतंकवाद और आपराधिक गतिविधियों पर नियंत्रण के नाम पर नागरिक समाज के भी कुछ चिन्हित किए गए सदस्यों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल को भी इसी नज़रिए से देखा जा सकता है।