देश के नागरिक इस वक़्त एक नए प्रकार के ‘ऑक्सीजन’ की कमी के अदृश्य संकट का सामना कर रहे हैं। आश्चर्यजनक यह है कि ये नागरिक साँस लेने में किसी प्रकार की तकलीफ़ होने की शिकायत भी नहीं कर रहे हैं। मज़ा यह भी है कि इस ज़रूरी ‘ऑक्सीजन’ की कमी को नागरिकों की एक स्थायी आदत में बदला जा रहा है। उसका उत्पादन और वितरण बढ़ाए जाने की कोई माँग उस तरह से नहीं की जा रही है जैसी कि कोरोना की दूसरी लहर के दौरान मेडिकल ऑक्सीजन को लेकर की जाती थी। जिस की कमी की यहाँ बात की जा रही है उसके कारण प्रभावित व्यक्ति शारीरिक रूप से नहीं मरता, वह दिमाग़ी तौर पर सुन्न या शून्य हो जाता है। एक ख़ास क़िस्म की राजनीतिक परिस्थिति में ऐसे नागरिकों की सत्ताओं को सबसे ज़्यादा ज़रूरत पड़ती है।
भयभीत मीडिया प्रतिरोध की राजनीति को नपुंसक ही बनायेगा?
- विचार
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- 17 Sep, 2021

अफ़ग़ानिस्तान (और पाकिस्तान) की ख़बरों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना और अपने ही देश और शहर के ज़रूरी समाचारों को या तो ग़ायब कर देना या फिर अंदर के पन्नों के ‘संक्षिप्त समाचारों’ की लाशों के ढेर के साथ सजा देना लगातार चल रहा है। मीडिया का यह कृत्य इतिहास में भी दर्ज हो रहा है।
बहुत कम लोगों ने ध्यान दिया होगा कि वे इन दिनों अख़बारों को पढ़ने और राष्ट्रीय न्यूज़ चैनलों पर प्रसारित होने वाले समाचारों या चलने वाली बहसों को सुनने-देखने में ख़र्च किए जाने वाले अपने समय में लगातार कटौती कर रहे हैं।