Mahagathbandhan Dy CM Face Mukesh Sahni: महागठबंधन की पटना प्रेस कॉन्फ्रेस में विकासशील इंसान पार्टी के अध्यक्ष मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम चेहरा घोषित किया गया। यह घटनाक्रम महत्वपूर्ण है। सहनी की राजनीतिक यात्रा को समझा जाना चाहिए।
बिहार में विपक्ष की ओर से डिप्टी सीएम चेहरा बनाए गए मुकेश सहनी राहुल गांधी के साथ
बिहार में चुनाव से पहले और नामांकन दाखिल करने के दौरान एक ही खबर मीडिया में चल रही थी कि तेजस्वी यादव कांग्रेस से नाराज हैं। विकासशील इंसान पार्टी के मुकेश सहनी कभी भी बगावत कर सकते हैं। वे ज्यादा सीटें मांग रहे हैं। महागठबंधन में मतभेद और बगावत की खबरें गुरुवार सुबह तक आ रही थीं लेकिन दिन में 12 बजे पटना में जैसे ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत ने तेजस्वी और मुकेश सहनी को चुनाव का मुख्य चेहरा घोषित किया, सारी खबरों पर विराम लग गया। लेकिन तेजस्वी से ज्यादा अगर किसी नाम की चर्चा है तो वो है मुकेश सहनी की। वोटर अधिकार यात्रा के दौरान मुकेश सहनी की लोकप्रियता की जमीनी हकीकत नेता विपक्ष राहुल गांधी ने खुद देखी।
राहुल गांधी ने जब मखाना किसानों से मुलाकात की थी तो उस समय मुकेश सहनी आगे-आगे थे।कौन हैं मुकेश सहनी
मुकेश सहनी का जन्म 31 मार्च 1981 को बिहार के दरभंगा जिले के सुपौल बाजार में एक गरीब निषाद (मल्लाह) परिवार में हुआ था। उनके पिता जीतन सहनी एक साधारण मछुआरे थे, जबकि मां मीना देवी घर संभालती थीं। मुकेश के एक भाई संतोष सहनी और एक बहन रिंकू सहनी हैं। बचपन से ही आर्थिक तंगी का सामना करने वाले मुकेश ने कभी हार नहीं मानी। मात्र 19 वर्ष की आयु में उन्होंने बिहार छोड़कर मुंबई का रुख किया, जहां सपनों की नगरी में संघर्ष की शुरुआत हुई। यह दौर उनके जीवन का वह मोड़ था, जब एक साधारण ग्रामीण युवा ने खुद को मजबूत बनाने का संकल्प लिया।
मुंबई पहुंचने के बाद मुकेश सहनी ने एक सेल्समैन के रूप में काम शुरू किया। धीरे-धीरे वे बॉलीवुड फिल्मों के सेट डिजाइनर बन गए, जहां उन्होंने कई सफल प्रोजेक्ट्स पर हाथ बंटाया। इस पेशे ने उन्हें आर्थिक स्थिरता प्रदान करने के साथ-साथ एक व्यापक नेटवर्क भी दिया। बॉलीवुड के ग्लैमरस दुनिया में रहते हुए भी मुकेश ने अपने मूल स्थान से कभी दूरी नहीं बनाई। वे निषाद समाज की समस्याओं से हमेशा जुड़े रहे। इस दौरान उन्होंने सामाजिक कार्यों में रुचि लेनी शुरू की, जो बाद में उनकी राजनीतिक यात्रा का आधार बनी। मुकेश का यह सफर एक सामान्य मजदूर से सफल व्यवसायी तक का प्रेरक उदाहरण है, जो बिहार के युवाओं के लिए मिसाल बन गया।
कैसे बने सन ऑफ मल्लाह
साल 2010 में मुकेश सहनी ने बिहार लौटकर सामाजिक कार्य को गंभीरता से अपनाया। उन्होंने 'सहनी समाज कल्याण संस्था' की स्थापना की, जिसके दो कार्यालय पटना और दरभंगा में खोले गए। इस संस्था के माध्यम से उन्होंने निषाद समुदाय के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पर केंद्रित कई योजनाएं चलाईं। संस्था ने हजारों परिवारों को लाभ पहुंचाया, जिससे मुकेश की लोकप्रियता में इजाफा हुआ। यह दौर उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा का बीज बोने वाला था। मुकेश ने महसूस किया कि सामाजिक न्याय के लिए केवल संस्थागत प्रयास पर्याप्त नहीं, बल्कि राजनीतिक मंच की जरूरत है। इस तरह, एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में उनकी पहचान मजबूत हुई, जो बाद में 'सन ऑफ मल्लाह' के नाम से प्रसिद्ध हुई।राजनीति में 2013 में कदम रखा, बीजेपी से मतभेद
राजनीति में मुकेश सहनी का औपचारिक प्रवेश 2013 के आसपास हुआ। उन्होंने निषाद विकास संघ का गठन किया, जो निषाद समुदाय को एकजुट करने का माध्यम बना। 2014 के लोकसभा चुनाव में वे भाजपा के स्टार प्रचारक बने और नरेंद्र मोदी की नजरों में आए। मुकेश की जातीय पकड़ और युवा ऊर्जा ने भाजपा को आकर्षित किया। हालांकि, जल्द ही मतभेद उभरे और मुकेश ने स्वतंत्र रास्ता चुना। 4 नवंबर 2018 को उन्होंने विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) की स्थापना की, जो बिहार के राजनीतिक इतिहास में लाखों समर्थकों के बीच घोषित हुई। यह पार्टी निषाद, मल्लाह और अन्य पिछड़े वर्गों के हितों पर केंद्रित थी। मुकेश ने 'निषाद क्रांति' यात्रा शुरू की, जो बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड में फैली, जहां उन्होंने 25-30 लाख निषाद परिवारों से संवाद किया।चुनावी हार के बावजूद संगठन को मजबूत किया
वीआईपी की स्थापना के बाद मुकेश सहनी की राजनीतिक वफादारी बार-बार बदली। 2019 के लोकसभा चुनाव में वे महागठबंधन (आरजेडी) के साथ गए, जहां पार्टी ने तीन सीटों पर लड़ा लेकिन कोई सफलता नहीं मिली। फिर भी, वोट शेयर में वृद्धि हुई। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन के हिस्से के रूप में वीआईपी ने चार सीटों पर उम्मीदवार उतारे। नतीजे निराशाजनक रहे। सभी सीटें हारीं, लेकिन मल्लाह बहुल क्षेत्रों में प्रभाव दिखा। उदाहरणस्वरूप, गौड़ा बौरम और अन्य सीटों पर वीआईपी के उम्मीदवारों ने कांटे की टक्कर दी। कुल मिलाकर, पार्टी को लगभग 1.5-2% वोट शेयर मिला, जो निषाद वोट बैंक की मजबूती का संकेत था। मुकेश ने चुनावी हार के बावजूद संगठन को मजबूत किया।वोटर अधिकार यात्रा में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई
2020 चुनाव के बाद मुकेश सहनी को महागठबंधन की सरकार गिराने में अहम भूमिका निभाने का श्रेय मिला। उन्होंने नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले एनडीए से समर्थन वापस लिया, जिससे सरकार बदली। इसके बदले में, फरवरी 2021 में नीतीश सरकार में उन्हें पशुपालन एवं मत्स्य पालन मंत्री बनाया गया। यह उनका पहला मंत्रिमंडलीय पद था, जहां उन्होंने निषाद समुदाय के लिए कई योजनाएं लागू कीं, जैसे मछली पालन को बढ़ावा देना। हालांकि, गठबंधन की अस्थिरता के कारण 27 मार्च 2022 को उन्हें पद से हटा दिया गया। इस घटना ने मुकेश को झटका दिया, लेकिन उन्होंने विपक्ष में लौटकर 'वोटर अधिकार यात्रा' जैसी अभियानों से अपनी उपस्थिति बनाए रखी। वे इस बार राहुल गांधी की नज़रों में आए। 2024 लोकसभा चुनाव में फिर महागठबंधन के साथ रहते हुए वीआईपी ने सीमित सफलता हासिल की, लेकिन वोट प्रतिशत बढ़ा।9-12% मल्लाह मुकेश सहनी की ताकत हैं
2025 के बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मुकेश सहनी की रणनीति आक्रामक रही। उन्होंने महागठबंधन से 30 सीटों की मांग की, लेकिन अंततः 15 सीटें मिलीं। वीआईपी ने पूर्वी चंपारण और दरभंगा जैसे क्षेत्रों पर फोकस किया, जहां 60 सीटों पर प्रभाव की बात कही गई। मुकेश ने खुद चुनाव नहीं लड़ने का फैसला लिया, बल्कि प्रचार पर जोर दिया। उनकी मांग रही कि तेजस्वी यादव सीएम बने तो वे डिप्टी सीएम। निषाद आरक्षण की मांग को लेकर उन्होंने पीएम मोदी पर भी निशाना साधा, कहा कि 'प्राण मांग लो, लेकिन आरक्षण दो'। एनडीए ने भी उन्हें वापस लाने की कोशिश की, लेकिन मुकेश महागठबंधन के साथ रहे। जातिगत सर्वे के अनुसार, मल्लाह समाज (करीब 3%) का वोट बैंक उनकी ताकत है।23 अक्टूबर 2025 को महागठबंधन ने मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम चेहरा घोषित किया। राहुल गांधी की पसंद बताए जा रहे मुकेश को बिहार में सामाजिक न्याय का प्रतीक माना जा रहा है। यह घोषणा चुनाव से ठीक पहले विपक्षी एकता को मजबूत करने का कदम है। मुकेश की संघर्ष यात्रा अभी जारी है, जो निषाद समाज को राजनीतिक पहचान दिलाने का माध्यम बन रही है। भविष्य में उनकी भूमिका बिहार की सियासत को नया मोड़ दे सकती है, खासकर यदि महागठबंधन सत्ता में आता है।