सरकारी स्कूल की पाँचवीं कक्षा की छात्रा आमना हिंदी में सिर्फ़ अपना नाम लिख पाती हैं, लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद सड़क, गाड़ी, बाज़ार, चीनी, जागरण जैसे आसान शब्दों को पढ़ने में वह नाकाम रहती हैं। उर्दू और अंग्रेज़ी के शब्दों की उन्हें कोई पहचान नहीं है। उनकी संख्यात्मक अभियोग्यता भी शून्य है। आमना की माँ शकीला कहती हैं, ‘मास्टरवा ही ठीक से नहीं पढ़ाता होगा। आमना तो रोज़ स्कूल जाती थी, बस लाॅकडाउन के बाद से वह स्कूल नहीं गई है।’
बिहार: मुसलिम महिलाएँ क्यों नहीं पढ़ पातीं हैं?
- बिहार
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- 3 Nov, 2020

दरभंगा के बिरडीपुर में प्रवीणा व उनकी बहन घर के ऐसे हालात में पढ़ती हैं।
बिहार में मुसलिम लड़कियों की शिक्षा में कम भागीदारी क्यों है? जो सरकारी स्कूलों में जाती भी हैं उनमें से कई ऐसी हैं जो पाँचवीं कक्षा में होने के बावजूद सही से नाम तक नहीं लिख पाती हैं? ऐसा क्यों है और सरकारी मदद क्यों नहीं मिली?
आमना के पिता मुजीब गुजरात में मजदूर हैं। माँ शकीला भी गाँव में खेतों में काम करती हैं। आमना का बड़ा भाई और दो छोटी बहनें कभी स्कूल नहीं गए हैं।