बिहार में भूमि का सर्वेक्षण कर उनके मालिकों के नाम करने का अभियान चल रहा है। इसका मक़सद ज़मीन को वर्तमान मालिकों के नाम दर्ज करके ज़मीन की हेराफेरी और अवैध कब्जा ख़त्म कराना है। इस काम में भ्रष्टाचार और जटिलताओं के चलते लोगों को ज़मीन हाथ से निकलने का डर सताने लगा है। सर्वेक्षण में नाम दर्ज करने और ज़मीन के दस्तावेज़ जमा करने की तारीख़ बार-बार आगे खिसका कर सरकार फिलहाल समस्या को टाल रही है, लेकिन जमीन मालिकों की आशंका बढ़ती जा रही है। विपक्षी राजनीतिक दल स्थानीय स्तर पर इसको लेकर सवाल उठाने लगे हैं।

मुख्य मंत्री नीतीश कुमार की सरकार ने यह योजना करीब दो साल पहले शुरू की थी। इसे एक ऐतिहासिक कदम बताया गया। बिहार में भूमि सर्वेक्षण का काम अंग्रेजी राज के दौरान हुआ था। उसके बाद जमीन की मिल्कियत में काफ़ी बदलाव हो चुका है। आजादी के बाद उत्तर प्रदेश और अन्य कई राज्यों में भूमि सर्वेक्षण और चकबंदी का काम पूरा कर लिया गया। बिहार में चकबंदी भी नहीं हुई। परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी बंटवारा के चलते ज्यादातर लोगों की जमीन छोटे छोटे टुकड़ों में बंट गयी है। खेती की यह एक बड़ी समस्या है। सरकार फिलहाल जमीन को जहां है जिसके नाम है की नीति के आधार पर दर्ज करने की मुहिम चला रही है। इसमें भी समस्या कम नहीं है।