सवाल - लॉकडाउन कैसा गुजरा? जवाब -
लव जिहाद ले आए... क्या मिलना-जुलना भी छोड़ दें?
- सिनेमा
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- 22 Jan, 2021

नसीरुद्दीन शाह। भारत के जीवित कलाकारों में सबसे बड़ा नाम। इनकी समझदारी भरी संवेदनशीलता हमें अक्सर रास्ता दिखाती आई है। पिछले कई दिनों से नसीर साहब अपने बयानों को लेकर काफ़ी चर्चा में रहे हैं। उनसे बात की जमील गुलरेज ने। प्रस्तुत है पूरी बातचीत:
सच्ची, मुझे बहुत ज़्यादा परेशानी इसलिए नहीं हुई क्योंकि मुझे घर पर रहने की आदत है। मैं फ़िल्में करता हूँ, जो ज़्यादातर एक ही दौर में ख़त्म हो जाती हैं। उसके बाद मैं एकाध महीने की छुट्टी ज़रूर लेता हूँ। अपने घर पर पड़ा रहता हूँ, बच्चों के साथ वक़्त गुज़ारता हूँ, पढ़ता हूँ, लिखता हूँ, फ़िल्में देखता हूँ, टेनिस खेलता हूँ, अपने फार्म हाउस पर चला जाता हू। जैसे ही लॉकडाउन हुआ तो सबसे पहले तो मुझे ये ख्याल आया कि थिएटर तो बंद हो गया। थिएटर मेरी नसों में ख़ून की तरह बह रहा है। सबसे ज़्यादा मुझे कमी उसकी महसूस हुई। हॉर्न की आवाजें नहीं सुनाई दे रही थीं, ट्रैफिक जाम नहीं लग रहे थे, लोग एक-दूसरे का लिहाज रख रहे थे। एकाध बार तो ऐसा हुआ कि जब टहलते हुए जेब्रा कॉसिंग पर एक गाड़ी मेरे लिए रुकी, जो कि कभी नहीं होता है। लोग नहीं रुकते यहां पर क्योंकि ईगो प्रॉब्लम हो जाती है। और आसमान साफ था, समुद्र नीला नजर आने लगा, मछलियां, जानवर, पक्षी, वह तो सब हुआ ही। लेकिन घर में बंद रहने से मुझे इतनी तकलीफ नहीं हुई, जितनी थिएटर में काम न करने की वजह से। हमेशा इससे ही अपना दिमागी तवाजुन थिएटर के सहारे ही संभाला है।
एक ऐसा दौर था, जब मैं कई सारी फ़िल्में कर रहा था। खुदा का शुक्र है कि सब उसे भूल गए हैं अब, सब एक से एक बेहूदा फ़िल्में थीं। पैसा बहुत कमा रहा था और परेशानी हो रही थी कि क्या मुझे जिंदगी भर इसी तरह की फ़िल्में करनी पड़ेंगी? मैं तो इससे बावला हो जाऊँगा। थिएटर ही था जिसने मुझे बचाया। उस दौरान में मैं दिन में शूटिंग करता था और शाम को पृथ्वी थिएटर में आकर शो करता था। नौजवान था उस वक़्त, 30-32 साल की उम्र थी, स्टेमिना बहुत था, मगर अब मुझसे वो नहीं हो पाएगा।