Adani Gag Order Journalists: दिल्ली कोर्ट ने अडानी समूह के 'गैग ऑर्डर' पर फौरन सुनवाई से इनकार किया। इससे पत्रकारों और उनके संगठनों में काफी गुस्सा है। यह मामला प्रेस स्वतंत्रता और कॉर्पोरेट प्रभाव पर सवाल उठा रहा है।
दिल्ली की एक अदालत ने पत्रकार Paranjoy Guha Thakurta की याचिका पर तत्काल सुनवाई करने से इनकार कर दिया है। याचिका में में अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड (AEL) द्वारा लगाए गए 'गैग ऑर्डर' (वीडियो/खबरों के प्रकाशन पर प्रतिबंध) को चुनौती दी गई है। यह फैसला 17 सितंबर 2025 को आया था। पत्रकारों और संगठनों ने इस फैसले और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (I&B) द्वारा जारी टेकडाउन नोटिसों की कड़ी आलोचना की है, इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताया गया है।
यह विवाद AEL द्वारा दायर मानहानि मुकदमे से जुड़ा है, जिसमें कंपनी ने आरोप लगाया कि नौ पत्रकारों, एक्टिविस्टों और संस्थाओं ने 'संगठित तरीके से मानहानि करने वाली' सामग्री प्रकाशित की। इससे कंपनी की वैश्विक व्यापारिक प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा। विशेष सिविल जज अनुज कुमार सिंह द्वारा 6 सितंबर 2025 को जारी एक्स पार्टे (एकतरफा) अंतरिम आदेश में इन पक्षों को 'अप्रमाणित, असत्यापित और स्पष्ट रूप से मानहानिकारक' सामग्री प्रकाशित या प्रसारित करने से रोका गया। अदालत ने पांच दिनों के अंदर ऐसी सामग्री हटाने का निर्देश दिया। AEL को ऐसे ऑनलाइन कंटेंट की पहचान करने की अनुमति दी, जिसे इंटरमीडियरी और प्लेटफॉर्म्स को 36 घंटों के अंदर हटाना होगा। हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि 'निष्पक्ष, प्रमाणित और सत्यापित' रिपोर्टिंग पर कोई व्यापक प्रतिबंध नहीं लगाया जा रहा है।
कोर्ट की कार्यवाही में, ठाकुरता का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता त्रिदीप पैस ने तर्क दिया कि आदेश अत्यधिक व्यापक है और बिना याचिकाकर्ता को सुने पारित किया गया। उन्होंने कहा कि अदालत ने कोई खास मानहानि वाले कंटेंट की पहचान नहीं की। जो कि उसका दायित्व है। आदेश को चुनौती देने वाले अन्य पत्रकारों, जैसे रवि नायर, अबीर दासगुप्ता, अयस्कांत दास और आयुष जोशी ने भी कहा कि 6 सितंबर का आदेश बिना पक्षकारों को शामिल किए पारित किया गया था। दूसरी ओर, AEL का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता अनुराग अहलूवालिया ने तत्काल सुनवाई का विरोध करते हुए कहा कि कोई असाधारण परिस्थितियां नहीं हैं। जज ने याचिका पर सवाल उठाते हुए कहा, "अगर आपका क्लाइंट दो दिनों तक प्रकाशन न करे तो क्या? क्या यह जीवन-मरण का प्रश्न है?"
कोर्ट के आदेश के बाद सरकार अति सक्रिय नज़र आई
16 सितंबर 2025 को I&B मंत्रालय ने 138 यूट्यूब लिंक्स और 83 इंस्टाग्राम पोस्ट्स पर टेकडाउन नोटिस जारी किए। जिसमें 6 सितंबर के अदालती आदेश का हवाला था। इनमें जांचात्मक रिपोर्ट्स, व्यंग्यात्मक वीडियो और अदानी समूह का संक्षिप्त उल्लेख शामिल था। प्रभावित आउटलेट्स और व्यक्ति में न्यूजलॉन्ड्री, द वायर, HW न्यूज, रवीश कुमार, अजीत अंजुम, Paranjoy Guha Thakurta, ध्रुव राठी, आकाश बनर्जी और कुणाल कामरा शामिल हैं। नोटिस की प्रतियां मेटा और गूगल को भी भेजी गईं, जो सूचना प्रौद्योगिकी (इंटरमीडियरी गाइडलाइंस और डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड) नियम, 2021 के तहत जिम्मेदार हैं।
पत्रकारों ने इन नोटिसों की कड़ी निंदा की। पत्रकार दीपक शर्मा ने X पर कहा कि रोहिणी कोर्ट ने बिना नोटिस के उनके 11 वीडियो हटाने का आदेश दिया, जो 16 सितंबर को मिला। जबकि 9 सितंबर तक जवाब देने की समयसीमा निकल चुकी थी। उन्होंने इसकी वैधता पर सवाल उठाए। आकाश बनर्जी, जिनके 'देशभक्त' यूट्यूब चैनल पर 60 लाख से अधिक सब्सक्राइबर्स हैं, ने X पर लिखा, "दुनिया के सबसे अमीर, सबसे ताकतवर और सबसे जुड़े हुए व्यापारियों में से एक छोटे स्वतंत्र यूट्यूबर्स से लड़ रहा है। एक ऐसा व्यक्ति जो भारत के सबसे बड़े मीडिया कॉन्ग्लोमरेट का मालिक है, वह एक कमरे से एक कैमरे के साथ प्रसारण करने वाले न्यूज कंटेंट क्रिएटर्स को खोज रहा है। जिनके पास पैसा नहीं है और न कोई खरीद सकता है।" उन्होंने कहा कि उन्हें 200 से अधिक सामग्री हटाने के लिए मात्र 36 घंटे दिए गए, बिना किसी विवाद के।
एडिटर्स गिल्ड ने गहरी चिंता जताई
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने 17 सितंबर 2025 को 'जॉन डो' एक्स पार्टे आदेश पर गहरी चिंता जताई। गिल्ड ने कहा कि यह वैध रिपोर्टिंग को दबाने का जोखिम पैदा करता है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कमजोर करता है। उन्होंने I&B मंत्रालय की कार्रवाई की आलोचना की, जो एक निजी कंपनी को मानहानिकारक सामग्री तय करने की शक्ति दे रही है। गिल्ड ने न्यायपालिका से मानहानि दावों में उचित प्रक्रिया सुनिश्चित करने और एकतरफा आदेशों से बचने की अपील की।
यह मामला मार्च 2024 के सुप्रीम कोर्ट के अवलोकन से जुड़ता है, जहां तत्कालीन चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच ने धनकुबेर वादी पक्षों द्वारा मीडिया और सिविल सोसाइटी के खिलाफ पूर्व-ट्रायल इंजंक्शन प्राप्त करने के बढ़ते रुझान पर चेतावनी दी थी। बेंच ने कहा था कि ऐसे एकतरफा अंतरिम आदेश, जो अक्सर दिए जाते हैं, पत्रकारिता के लिए 'मृत्युदंड' साबित हो सकते हैं, इससे पहले कि आरोप सिद्ध हों। बेंच ने जोर दिया कि अदालतों को पत्रकारिता अभिव्यक्ति की रक्षा करनी चाहिए और पूर्व-ट्रायल अंतरिम आदेशों में सतर्कता बरतनी चाहिए।
यह घटनाक्रम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कॉर्पोरेट हितों के बीच संतुलन पर बहस को तेज कर रहा है, जहां पत्रकारों का मानना है कि ऐसे आदेश लोकतंत्र की नींव को कमजोर कर रहे हैं।