अनुच्छेद 370 को लेकर उठे विवाद के बाद रॉ के पूर्व प्रमुख दुलत ने कहा है कि फारूक अब्दुल्ला ने 370 हटाने का समर्थन नहीं किया था। फारूक ने भी बयान को 'सस्ती हरकत' बताया था। जानें पूरा विवाद क्या है।
पूर्व रॉ प्रमुख एएस दुलत ने अपनी नई किताब 'द चीफ़ मिनिस्टर एंड द स्पाई' में किए गए दावों को लेकर विवादों के बाद अब सफ़ाई जारी की है। रिपोर्टों के अनुसार किताब में दावा किया गया था कि पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने 2019 में अनुच्छेद 370 को हटाने के केंद्र सरकार के फ़ैसले का निजी तौर पर समर्थन किया, भले ही उन्होंने सार्वजनिक रूप से इसे विश्वासघात क़रार दिया। लेकिन अब दुलत ने साफ़ किया है कि उनकी किताब में ऐसा कोई दावा नहीं है। उन्होंने कहा, 'मैंने कहीं नहीं लिखा कि फारूक ने अनुच्छेद 370 को हटाने का समर्थन किया। यह महज मीडिया का स्टंट है।' इस सफ़ाई के बावजूद कश्मीर की सियासत में यह विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा। दुलत की किताब 18 अप्रैल को रिलीज़ होने वाली है। इसमें फारूक अब्दुल्ला के साथ उनकी लंबी दोस्ती और कश्मीर की सियासत पर चर्चा की गई है। किताब के कुछ अंशों में दुलत ने लिखा है कि 2020 में फारूक ने उनसे कहा, 'हम मदद कर सकते थे। हमें विश्वास में क्यों नहीं लिया गया?' इस बयान को कई लोगों ने यह कहकर प्रचारित किया कि फारूक ने अनुच्छेद 370 को हटाने का समर्थन किया था। किताब में यह भी ज़िक्र है कि 4 अगस्त 2019 को फारूक, उनके बेटे उमर अब्दुल्ला और एनसी सांसद हसनैन मसूदी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी, लेकिन इस मुलाकात में क्या हुआ, यह कोई नहीं जानता।
इन दावों ने जम्मू-कश्मीर में सियासी भूचाल ला दिया है। पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के सजाद लोन और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की इल्तिजा मुफ्ती जैसे विपक्षी नेताओं ने इसे एनसी की दोहरी नीति का सबूत बताया। सजाद लोन ने एक्स पर लिखा, 'दुलत साहब फारूक के सबसे क़रीबी दोस्त हैं। उनकी बात विश्वसनीय है। मुझे 4 अगस्त 2019 की मुलाक़ात कभी रहस्यमयी नहीं लगी।' इल्तिजा मुफ्ती ने कहा, 'यह साफ़ है कि फारूक ने संसद में मौजूद रहने के बजाय कश्मीर में रहकर अनुच्छेद 370 को हटाने को सामान्य बनाने में मदद की।' फारूक अब्दुल्ला ने इन दावों को सिरे से खारिज कर दिया और किताब को गलतियों से भरा बताया। उन्होंने 16 अप्रैल को श्रीनगर में पत्रकारों से कहा, 'यह किताब सस्ते प्रचार के लिए लिखी गई है। अगर मैं अनुच्छेद 370 को लेकर धोखा देना चाहता तो 1996 में विधानसभा में स्वायत्तता के लिए दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव क्यों पास करता?' फारूक ने यह भी कहा कि उन्हें और उमर को 2019 में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के दौरान नजरबंद किया गया था और वे सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम यानी पीएसए के तहत जेल में थे। उन्होंने दुलत की दोस्ती पर सवाल उठाते हुए कहा, 'एक दोस्त ऐसा नहीं लिखता। यह दिल पर चोट है।'
एनसी के मुख्य प्रवक्ता तनवीर सादिक ने दुलत के दावों को काल्पनिक क़रार दिया और कहा कि किताब में विरोधाभास हैं। उन्होंने पूछा, 'अगर फारूक ने समर्थन किया था तो उन्होंने नजरबंदी के बाद गुपकर घोषणा पत्र को क्यों आगे बढ़ाया, जो अनुच्छेद 370 की बहाली के लिए था?'
फारूक की बेटी सफिया अब्दुल्ला ने भी दुलत पर निशाना साधा और कहा कि मैंने दुलत पर कभी भरोसा नहीं किया, वे एक जासूस हैं, जिनकी वफादारी सिर्फ़ अपने लिए है।
विवाद बढ़ने के बाद दुलत ने 17 अप्रैल को समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत में साफ़ किया, 'मैंने किताब में कहीं नहीं लिखा कि फारूक ने अनुच्छेद 370 को हटाने का समर्थन किया। यह पूरी तरह बकवास है। फारूक इस फ़ैसले से बहुत आहत थे।' उन्होंने कहा कि उनकी किताब फारूक की आलोचना नहीं, बल्कि उनकी प्रशंसा करती है। दुलत ने फारूक को कश्मीर का सबसे बड़ा नेता और सच्चा राष्ट्रवादी बताया। उन्होंने यह भी कहा कि फारूक ने हमेशा दिल्ली के साथ खड़े रहने की बात कही, लेकिन दिल्ली ने उनकी भावनाओं को समझने में ग़लती की। दुलत ने करण थापर को दिए एक साक्षात्कार में कहा, 'फारूक ने यह नहीं कहा कि वे अनुच्छेद 370 हटाने में मदद करते, बल्कि यह कहा कि अगर विश्वास में लिया जाता तो वे बातचीत के ज़रिए कोई रास्ता निकाल सकते थे।' उन्होंने दावा किया कि कुछ लोग किताब के एक हिस्से को तोड़-मरोड़कर विवाद खड़ा कर रहे हैं।
यह विवाद कई स्तरों पर जम्मू-कश्मीर की सियासत को प्रभावित कर रहा है। अनुच्छेद 370 को हटाना कश्मीर की जनता के लिए एक भावनात्मक और संवैधानिक मुद्दा रहा है। एनसी ने 2024 के विधानसभा चुनावों में इसकी बहाली को अपना प्रमुख मुद्दा बनाया था। दुलत की किताब के दावों ने एनसी की छवि को नुक़सान पहुँचाया, क्योंकि विपक्षी दल इसे दोहरा चरित्र बता रहे हैं। सजाद लोन ने तो यहाँ तक कहा कि '2024 का चुनाव एनसी को 2019 की सेवाओं का इनाम था।' पीडीपी, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस और अन्य क्षेत्रीय दल इस मौक़े का फ़ायदा उठाकर एनसी पर हमलावर हैं। इल्तिजा मुफ्ती और वहीद पारा ने एनसी को 'बीजेपी का सहयोगी' बताकर कश्मीर की जनता की भावनाओं को भड़काने की कोशिश की। यह सियासी रणनीति 2025 के आगामी स्थानीय चुनावों को प्रभावित कर सकती है।
दुलत की किताब को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह महज प्रचार के लिए लिखा गया, जैसा कि फारूक ने दावा किया। फारूक ने कहा कि दुलत 'सत्ता के गलियारों में जगह बनाने या पैसा कमाने' के लिए ऐसा कर रहे हैं।
'कश्मीर: द वाजपेयी इयर्स' और 'अ लाइफ इन द शैडोज' जैसी दुलत की पिछली किताबें भी कश्मीर की सियासत पर खुलासों के लिए जानी जाती हैं। उनकी यह छवि विवाद को और हवा दे रही है। किताब में दुलत ने दिल्ली द्वारा फारूक के साथ 'विश्वासघात' की बात भी की, जैसे 1984 में इंदिरा गांधी द्वारा उनकी सरकार बर्खास्त करना, 2002 में वाजपेयी द्वारा उमर को आगे बढ़ाने की कोशिश और 2019 में उनकी नजरबंदी। दुलत का कहना है कि फारूक हमेशा दिल्ली के साथ रहे, लेकिन दिल्ली ने उनकी "व्यावहारिकता" को समझा नहीं। यह कश्मीर और केंद्र के बीच लंबे समय से चले आ रहे अविश्वास को उजागर करता है। कश्मीर की जनता के लिए अनुच्छेद 370 का मुद्दा सिर्फ़ सियासी नहीं, बल्कि उनकी पहचान और इतिहास से जुड़ा है। दुलत की किताब के दावों ने एनसी के प्रति लोगों के भरोसे को कमजोर करने की कोशिश की है। हालाँकि, फारूक की नजरबंदी और गुपकर गठबंधन के गठन जैसे तथ्य उनके पक्ष में हैं। लेकिन सोशल मीडिया पर चल रही बहस और सजाद लोन व इल्तिजा मुफ्ती के बयान जनता के बीच भ्रम पैदा कर सकते हैं।
18 अप्रैल को किताब की रिलीज़ के बाद और प्रतिक्रियाएँ सामने आएँगी। दुलत ने कहा कि वे उम्मीद करते हैं कि फारूक किताब के लॉन्च में शामिल होंगे, लेकिन फारूक की नाराज़गी को देखते हुए यह मुश्किल लगता है। यह विवाद एनसी की साख को प्रभावित कर सकता है, खासकर जब उमर अब्दुल्ला की सरकार अनुच्छेद 370 की बहाली के लिए विधानसभा में प्रस्ताव लाने की बात कर रही है। विपक्ष इस मुद्दे को और भुनाने की कोशिश करेगा। दुलत की किताब और उससे उपजा विवाद जम्मू-कश्मीर की सियासत में एक नया मोड़ लाया है। दुलत की सफाई के बावजूद उनके शुरुआती दावों ने एनसी और फारूक अब्दुल्ला को मुश्किल में डाल दिया। फारूक ने इसे सस्ता प्रचार करार देकर अपनी स्थिति साफ़ करने की कोशिश की, लेकिन विपक्षी दलों ने इसे एनसी की आलोचना का मौका बना लिया।