सुप्रीम कोर्ट 10 जुलाई को बिहार में चुनाव आयोग द्वारा किए गए विशेष गहन संशोधन (एसआईआर) के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करेगा। यह याचिकाएं राजद सांसद मनोज झा, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा, कार्यकर्ता योगेंद्र यादव और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) सहित अन्य ने दायर की हैं।
मतदाता सूची संशोधन पर सवाल
बिहार की प्रमुख विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और अन्य ने निर्वाचन आयोग द्वारा शुरू किए गए मतदाता सूची के विशेष गहन संशोधन यानी एसआईआर को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। इस कदम ने बिहार के आगामी विधानसभा चुनावों से पहले राजनीतिक माहौल को और गर्म कर दिया है। आरजेडी और इंडिया गठबंधन के अन्य दलों का आरोप है कि यह संशोधन प्रक्रिया लाखों मतदाताओं को मताधिकार से वंचित करने की साजिश है और इसे राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर एनआरसी की तरह लागू किया जा रहा है। इस मुद्दे ने बिहार की राजनीति में नया तूफान खड़ा कर दिया है।
बता दें चुनाव आयोग ने बिहार में विधानसभा चुनावों से कुछ महीने पहले मतदाता सूची को अपडेट करने के लिए विशेष गहन संशोधन शुरू किया है। इस प्रक्रिया के तहत, मतदाताओं को अपनी पहचान सत्यापित करने के लिए 11 दस्तावेजों में से कम से कम एक जमा करना अनिवार्य है। इन दस्तावेजों में जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट, सरकारी कर्मचारियों या पेंशनर्स को जारी पहचान पत्र, स्थायी निवास प्रमाण पत्र, वन अधिकार प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र, सरकारी परिवार रजिस्टर, और जमीन या मकान आवंटन प्रमाण पत्र शामिल हैं। विशेष रूप से आधार कार्ड को इस सूची में शामिल नहीं किया गया है।
आरजेडी, कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों ने इस प्रक्रिया को वोटबंदी करार देते हुए इसे लोकतंत्र के लिए खतरा बताया है। उनका कहना है कि बिहार की 20% से अधिक मतदाता आबादी इस प्रक्रिया के कारण मताधिकार से वंचित हो सकती है। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने दावा किया है कि भारत सरकार के आँकड़ों के अनुसार, केवल 2-3% लोग ही इन 11 दस्तावेजों में से किसी एक को रखते हैं, जिसका मतलब है कि करोड़ों मतदाता इस प्रक्रिया से प्रभावित हो सकते हैं।