कांग्रेस ने भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) द्वारा अडानी समूह की कंपनियों में किए गए निवेश को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार पर तीखा हमला बोला है। कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि सरकार ने अडानी समूह को फायदा पहुंचाने के लिए LIC के निवेशकों के हितों की अनदेखी की।
कांग्रेस प्रवक्ता ने दावा किया कि LIC ने अडानी समूह की कंपनियों में भारी निवेश किया, जिससे सार्वजनिक धन को जोखिम में डाला गया। उन्होंने कहा कि यह निवेश ऐसे समय में किया गया जब अडानी समूह की कंपनियों के शेयरों में भारी उतार-चढ़ाव देखा गया था। कांग्रेस ने इस मुद्दे पर पारदर्शिता की मांग की और पूछा कि क्या यह निवेश सरकार के दबाव में किया गया।
पार्टी ने यह भी आरोप लगाया कि मोदी सरकार कॉरपोरेट हितों को प्राथमिकता दे रही है, जबकि आम जनता और छोटे निवेशकों के हितों की अनदेखी हो रही है। कांग्रेस ने मांग की कि LIC के निवेश के फैसलों की स्वतंत्र जांच हो और जनता को इसकी पूरी जानकारी दी जाए।
कांग्रेस ने संसद की लोक लेखा समिति (पीएसी) से इसकी जाँच कराने की माँग करते हुए कि कैसे एलआईसी को निवेश करने के लिए "वास्तव में मजबूर" किया गया। इसने दावा किया कि आंतरिक दस्तावेज़ों से पता चलता है कि अधिकारियों ने मई 2025 में प्रस्ताव को आगे बढ़ाया और कथित लक्ष्य अडानी समूह में "अन्य निवेशकों की भागीदारी को बढ़ावा देना" था।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सरकार से इस ताज़ा कदम और 2023 में अडानी एफपीओ में 525 करोड़ रुपये निवेश करने के एसबीआई के फ़ैसले पर जवाब मांगते हुए आरोप लगाया कि प्रत्यक्ष लाभ ट्रांसफर के "असली लाभार्थी" आम लोग नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के "करीबी दोस्त" हैं।
खड़गे ने सवाल किया कि क्या एक आम वेतनभोगी मध्यवर्गीय व्यक्ति जो पाई-पाई जोड़कर LIC की पॉलिसी का प्रीमियम भरता है, उसे ये भी मालूम है कि मोदी जी उसकी ये जमा-पूंजी अडानी को Bailout करने में लगा रहे हैं? 
  • क्या ये Breach of Trust नहीं है? लूट नहीं है? क्या LIC का पैसा, जो अडानी की कंपनियों में लगा है और मई 2025 में ₹33,000 करोड़ लगाने का प्लान था, उस पर मोदी सरकार कोई जवाब देगी?  
  • इससे पहले भी 2023 में अडानी के शेयरों में 32% से ज्यादा गिरावट के बावजूद LIC व SBI का 525 करोड़, अडानी FPO में क्यों लगवाया गया ? अपने “परम मित्र” की जेब भरने में मशगूल मोदी जी, 30 करोड़ LIC पॉलिसी धारकों की गाढ़ी कमाई क्यों लुटा रहे हैं?

क्या यह मोबाइल बैंकिंग का सटीक उदाहरण नहींः रमेश

एक बयान में, कांग्रेस महासचिव (संचार) जयराम रमेश ने कहा, "सवाल उठता है: किसके दबाव में वित्त मंत्रालय और नीति आयोग के अधिकारियों ने यह तय किया कि उनका काम एक निजी कंपनी को वित्तीय संकट से उबारना है, जो आपराधिक गतिविधियों के गंभीर आरोपों के कारण वित्तीय संकट से जूझ रही है? क्या यह 'मोबाइल फ़ोन बैंकिंग' का एक सटीक उदाहरण नहीं है?"
रमेश ने दावा किया कि "मोदानी महाघोटाला बहुत व्यापक है।" इसमें निजी कंपनियों को अपनी संपत्तियाँ अडानी समूह को बेचने के लिए मजबूर करने हेतु केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग शामिल है। साथ ही हवाई अड्डों और बंदरगाहों जैसी "महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे की संपत्तियों का धांधलीपूर्ण निजीकरण" और देशों, खासकर पड़ोसी देशों में अडानी समूह को ठेके दिलाने के लिए राजनयिक संसाधनों का दुरुपयोग शामिल है।

क्या है वॉशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट मेंः द वाशिंगटन पोस्ट ने एक पड़ताल कर कहा है कि तब अडानी के कारोबार में एलआईसी से 3.9 अरब डॉलर यानी क़रीब 32000 करोड़ रुपये का निवेश करवाया गया। एलआईसी में आम तौर पर साधारण मध्यमवर्गीय लोगों के बीमा के पैसे होते हैं। अख़बार के मुताबिक इस साल की शुरुआत में करीब 90 अरब डॉलर की संपत्ति के मालिक गौतम अडानी भारी कर्ज के बोझ तले दबे हुए थे। उनके कोयला खदान, हवाई अड्डे, बंदरगाह और ग्रीन एनर्जी जैसे कारोबारों पर कर्ज बढ़ता जा रहा था। इसके अलावा, अमेरिकी अधिकारियों ने पिछले साल उन पर रिश्वतखोरी और धोखाधड़ी के आरोप लगाए थे। इन वजहों से कई बड़े अमेरिकी और यूरोपीय बैंक उन्हें कर्ज देने से हिचक रहे थे। रिपोर्ट के अनुसार, लेकिन इस संकट के बीच भारत सरकार ने अडानी की मदद के लिए एक बड़ा प्लान तैयार किया।

वाशिंगटन पोस्ट के अनुसार, भारतीय अधिकारियों ने मई 2025 में एक प्रस्ताव तैयार किया। आंतरिक दस्तावेजों के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि यह योजना भारतीय वित्त मंत्रालय के वित्तीय सेवा विभाग यानी डीएफएस और एलआईसी के साथ मिलकर तैयार की गई थी। इसमें भारत की प्रमुख सरकारी थिंक टैंक नीति आयोग की भी भूमिका थी। इस योजना को वित्त मंत्रालय ने मंजूरी दी थी। रिपोर्ट के अनुसार दस्तावेजों में कहा गया है कि इस निवेश के पीछे दो मुख्य उद्देश्य थे- अडानी समूह में भरोसा दिखाना और अडानी के बढ़ते कर्ज को कम करना।
रिपोर्ट के अनुसार मई 2025 में अडानी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन लिमिटेड को अपने मौजूदा कर्ज को चुकाने के लिए 585 मिलियन डॉलर यानी क़रीब 4800 करोड़ रुपये की ज़रूरत थी। 30 मई को अडानी समूह ने घोषणा की कि इस पूरे बॉन्ड को केवल एक निवेशक यानी एलआईसी ने खरीदा। इस सौदे की आलोचना तुरंत शुरू हो गई, क्योंकि विपक्षी दलों और विशेषज्ञों ने इसे सार्वजनिक धन का दुरुपयोग करार दिया।

वाशिंगटन पोस्ट ने दस्तावेजों के हवाले से ख़बर दी है कि वित्त मंत्रालय ने एलआईसी को सलाह दी थी कि वह अडानी समूह के कॉरपोरेट बॉन्ड में 3.4 अरब डॉलर और अडानी की कई सहायक कंपनियों में हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए 507 मिलियन डॉलर का निवेश करे। अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार मंत्रालय का तर्क था कि अडानी के बॉन्ड 10 साल के सरकारी बॉन्ड की तुलना में बेहतर रिटर्न दे सकते हैं। हालांकि, यह निवेश जोखिम भरा माना गया, क्योंकि अडानी समूह की सिक्योरिटीज के दामों में उतार-चढ़ाव होता रहता है।


अडानी पर अमेरिका में करप्शन का केस 

पिछले साल अमेरिकी न्याय विभाग ने अडानी और उनके भतीजे सागर अडानी पर 'अरबों डॉलर की धोखाधड़ी' का आरोप लगाया था। उन पर अमेरिकी निवेशकों से झूठे और भ्रामक बयानों के आधार पर फंड जुटाने का इल्ज़ाम है। इसके अलावा, अमेरिकी सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन यानी एसईसी ने अडानी और उनके सहयोगियों पर सिक्योरिटीज कानूनों के उल्लंघन का आरोप लगाया। अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि अडानी ने 2020 से 2024 के बीच सौर ऊर्जा अनुबंध हासिल करने के लिए भारतीय अधिकारियों को 250 मिलियन डॉलर से अधिक की रिश्वत दी। अडानी समूह ने इन आरोपों को निराधार बताते हुए खारिज किया है और कहा है कि यह मामला व्यक्तियों से संबंधित है, न कि उनकी कंपनियों से।
2023 में न्यूयॉर्क की एक निवेश शोध फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडानी समूह पर शेयरों की कीमतों में हेरफेर और वित्तीय अनियमितताओं का आरोप लगाया था। इस रिपोर्ट के बाद भारत की स्टॉक मार्केट नियामक संस्था सेबी ने जांच शुरू की। सेबी ने सितंबर 2025 में दो आरोपों को खारिज कर दिया, लेकिन कुछ अन्य मामले अभी भी लंबित हैं। अडानी समूह ने दावा किया कि सेबी ने उनकी कंपनियों में कोई उल्लंघन नहीं पाया।

अडानी-मोदी रिश्ता क्या कहलाता है 

अडानी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच लंबे समय से रिश्ते होने का आरोप लगता रहा है। जब मोदी 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री बने तब से अडानी उनके साथ रहे हैं। 2014 में जब मोदी ने प्रधानमंत्री पद के लिए चुनाव लड़ा, तो वे अडानी समूह के जेट से प्रचार के लिए यात्रा करते थे। विपक्ष और राहुल गांधी इसको लेकर लगातार हमलावर रहे हैं।
कांग्रेस और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) जैसे विपक्षी दलों ने एलआईसी के अडानी में निवेश की कड़ी आलोचना की है। उनका कहना है कि यह गरीब और ग्रामीण परिवारों के लिए जमा किए गए धन का दुरुपयोग है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर अडानी समूह को और वित्तीय परेशानी हुई, तो एलआईसी को भारी नुकसान हो सकता है।