कांग्रेस ने सेबी द्वारा अडानी समूह को कुछ आरोपों में क्लीन चिट दिए जाने के बाद बड़ा हमला किया है। कांग्रेस ने इस कथित ‘मोदानी घोटाले’ की सभी आयामों में गहन जांच की मांग की है। इसमें उसने SEBI की जांच के दायरे और समय पर सवाल उठाए हैं। पार्टी ने इसे केंद्र सरकार और अडानी समूह के बीच कथित साठगांठ का हिस्सा बताते हुए कई गंभीर आरोप लगाए, जिनमें भ्रष्टाचार, कोयले के आयात में अधिक कीमत और सरकारी एजेंसियों के दुरुपयोग का दावा शामिल है।

कांग्रेस का यह हमला तब आया है जब सेबी यानी सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया ने गुरुवार को हिंडनबर्ग हेरफेर मामले में गौतम अडानी को पाक-साफ़ क़रार दे दिया है। अमेरिकी शॉर्ट-सेलर हिंडनबर्ग द्वारा लगाए गए इनसाइडर ट्रेडिंग, शेयर बाजार में हेरफेर और संबंधित पक्षों के लेन-देन के नियमों के उल्लंघन जैसे आरोपों की जांच के बाद सेबी ने इन कार्यवाहियों को बंद कर दिया। सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चली इस जांच से लगभग दो साल बाद अडानी ग्रुप को राहत मिली है। 2023 के हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद कंपनी को भारी नुक़सान हुआ है। 
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हिंडनबर्ग विवाद क्या था?

यह विवाद 2023 में अमेरिकी फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च की एक रिपोर्ट के बाद शुरू हुआ, जिसमें अडानी समूह पर स्टॉक में हेरफेर, मनी लॉन्ड्रिंग, और धन की गड़बड़ियों के गंभीर आरोप लगाए गए थे। इस रिपोर्ट के बाद अडानी समूह के शेयरों में भारी गिरावट आई थी और सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2023 में SEBI को इन आरोपों की जाँच करने और दो महीने के भीतर रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया था। हालाँकि, कांग्रेस का दावा है कि सेबी ने इस जांच को ढाई साल तक लटकाया और केवल 24 में से दो मामलों में ही अडानी समूह को क्लीन चिट दी है।

कांग्रेस के संचार प्रभारी और महासचिव जयराम रमेश ने शुक्रवार को एक बयान में कहा, 'मोदानी एंटरप्राइजेज के व्यावसायिक साझेदार को SEBI से क्लीन चिट मिलना केवल प्रबंधित सुर्खियों का हिस्सा है। यह जांच सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के तहत हो रही थी, लेकिन सेबी ने बार-बार समयसीमा बढ़ाई और देरी की।' उन्होंने यह भी कहा कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बाद सामने आए उनके 'हम अडानी के हैं कौन' (HAHK) अभियान में उठाए गए 100 सवाल आज भी अनुत्तरित हैं।

कांग्रेस के प्रमुख आरोप

जयराम रमेश ने दावा किया कि सेबी की जांच केवल कुछ तकनीकी पहलुओं तक सीमित थी और यह हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में उठाए गए गंभीर मुद्दों, जैसे मनी लॉन्ड्रिंग और स्टॉक हेरफेर, को पूरी तरह से संबोधित नहीं करती। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि अडानी समूह ने कोयले के आयात में अधिक कीमत दिखाकर मुनाफाखोरी की और इससे देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा।

पार्टी ने दावा किया कि केंद्र सरकार ने अडानी समूह को हवाई अड्डों और बंदरगाहों जैसे प्रमुख बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में अनुचित लाभ पहुंचाया। कांग्रेस ने हिंडनबर्ग की रिपोर्ट का हवाला देते हुए दावा किया कि अडानी समूह पर विदेशी रिश्वतखोरी के भी आरोप हैं, जिनकी जांच अभी तक पूरी नहीं हुई है।

जयराम रमेश ने यह भी कहा कि सेबी की क्लीन चिट का समय संदिग्ध है और यह सरकार की ओर से अडानी समूह को बचाने की कोशिश का हिस्सा हो सकता है।

सेबी की भूमिका

सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2023 में सेबी को हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के आधार पर 24 मामलों की जांच करने का निर्देश दिया था। कांग्रेस का कहना है कि इनमें से केवल दो मामलों में सेबी ने अडानी समूह को क्लीन चिट दी है, जबकि बाकी 20 मामलों की जांच अभी भी जारी है। जयराम रमेश ने इस देरी पर सवाल उठाते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद सेबी ने ढाई साल तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सेबी की जांच स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं है, क्योंकि इसकी पूर्व अध्यक्ष मधुबी पुरी बुच पर भी अडानी समूह के साथ हितों के टकराव के आरोप लगे हैं।
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सरकार और अडानी समूह का जवाब

अडानी समूह ने इन आरोपों को बार-बार खारिज किया है और कहा है कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट झूठी और आधारहीन है। समूह ने यह भी दावा किया कि उनकी सभी व्यावसायिक गतिविधियां पारदर्शी हैं और नियामक दिशानिर्देशों का पालन करती हैं। केंद्र सरकार ने इस मामले में कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन बीजेपी के कुछ नेताओं ने कांग्रेस पर राजनीति से प्रेरित आरोप लगाने का पलटवार किया है।

कांग्रेस द्वारा ‘मोदानी घोटाले’ की जांच की मांग ने एक बार फिर केंद्र सरकार और अडानी समूह के बीच कथित साठगांठ के सवालों को हवा दी है। सेबी की क्लीन चिट के बावजूद कांग्रेस ने इस मुद्दे को और उभारने का फैसला किया है, जिससे यह विवाद और गहरा सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या इस मामले में कोई नई जानकारी सामने आती है या यह केवल राजनीतिक बयानबाजी तक सीमित रहता है।