अखिलेश यादव ने चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए कि पिछड़ी जातियों के वोटरों के नाम लिस्ट से हटाए गए और 18000 एफिडेविट दाखिल होने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई। जानें पूरा मामला।
सपा के हलफनामे नहीं मिलने के मुख्य चुनाव आयुक्त
ज्ञानेश कुमार के दावे के बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव और हमलावर हो गए हैं। उन्होंने पत्रकारों को एफिडेविट की कॉपियाँ दिखाते हुए दावा किया कि समाजवादी पार्टी ने 18000 एफिडेविट दायर किए हैं, लेकिन चुनाव आयोग ने उन पर कोई जवाब नहीं दिया। उन्होंने उम्मीद जताई कि आयोग उनके एफिडेविट पर कार्रवाई करेगा। इसके साथ ही अखिलेश ने चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए और कहा कि पिछड़ी जातियों के मतदाताओं के नाम हटाए जा रहे हैं। इसे उन्होंने 'वोट चोरी' से भी आगे 'वोट की डकैती' करार दिया।
अखिलेश यादव ने सोमवार को संसद के बाहर पत्रकारों से कहा, 'हमने लगभग 18000 शपथ पत्र चुनाव आयोग को सौंपे हैं। हम उम्मीद करते हैं कि चुनाव आयोग इस मामले में उचित कार्रवाई करेगा या सरकार को निर्देश देगा। जब मुझे नोटिस मिला तो मैंने समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं से मदद मांगी। हमें जो समय दिया गया, उसमें हम केवल 18000 शपथ पत्र ही तैयार कर पाए। अगर हमें और समय मिलता तो हम इससे कहीं ज्यादा शपथ पत्र तैयार कर सकते थे।' उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, 'अगर इतने सारे शपथ पत्र जमा करने के बाद भी कोई जांच या कार्रवाई नहीं होती तो फिर लोग चुनाव आयोग पर भरोसा कैसे करेंगे? उपचुनावों में यह कोई छोटी-मोटी चोरी नहीं थी, यह वोट की डकैती थी। अगर चुनाव आयोग इसकी जांच करता है और जिला मजिस्ट्रेट को निलंबित करने का आदेश देता है तो वोट चोरी की घटनाएं पूरी तरह बंद हो जाएंगी।'
अखिलेश यादव की यह ताज़ा टिप्पणी तब आई है जब
मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने 17 अगस्त को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनके एफिडेविट के दावों को झुठला दिया था। ज्ञानेश कुमार ने कहा था कि समाजवादी पार्टी द्वारा उत्तर प्रदेश में वोट चोरी और मतदाता सूची में अनियमितताओं के समर्थन में दिए गए हलफनामे चुनाव आयोग को नहीं मिले हैं। उन्होंने विपक्ष के 'वोट चोरी' और अन्य अनियमितताओं के आरोपों को बेबुनियाद और झूठा बताया।
इसके जवाब में अखिलेश यादव ने 'एक्स' पर पोस्ट करते हुए कहा था कि चुनाव आयोग यह दावा कर रहा है कि सपा के हलफनामे प्राप्त नहीं हुए, लेकिन उनके पास इन हलफनामों की प्राप्ति की पावती है, जो आयोग के कार्यालय द्वारा जारी की गई है।
उन्होंने डाक विभाग की डिजिटल रसीदों की तस्वीरें साझा करते हुए मांग की कि आयोग शपथपत्र दे कि ये रसीदें सही हैं नहीं तो 'डिजिटल इंडिया' और आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल उठेगा। इस तरह ज्ञानेश कुमार ने हलफनामों के प्राप्त न होने की बात कही, जबकि अखिलेश ने सबूतों के साथ इसका खंडन किया।
'पिछड़ी जातियों के वोटर हटाए'
अखिलेश ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग जानबूझकर पिछड़ी जातियों के मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हटा रहा है। उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी ने जिला-वार हटाए गए मतदाताओं के नामों की सूची तैयार की है, जिसमें एक ही विधानसभा क्षेत्र से हजारों नाम हटाए गए हैं। उन्होंने इसे लोकतंत्र के लिए खतरा बताते हुए कहा कि यह कार्य संगठित तरीके से किया जा रहा है।
उन्होंने कहा,
पिछड़ी जातियों के मतदाताओं को निशाना बनाया जा रहा है। यह एक सुनियोजित साजिश है, जिसके तहत उन लोगों के नाम हटाए जा रहे हैं जो समाजवादी पार्टी या विपक्ष के समर्थक हो सकते हैं। यह न केवल मतदाताओं के अधिकारों का हनन है, बल्कि लोकतंत्र को कमजोर करने की कोशिश भी है। अखिलेश यादव
समाजवादी पार्टी
'ECI पर बीजेपी का दबाव'
अखिलेश ने चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए कहा कि आयोग बीजेपी के इशारों पर काम कर रहा है। उन्होंने कहा, 'चुनाव आयोग ने अभी तक कोई कदम नहीं उठाया है, क्योंकि ऐसा लगता है कि वह बीजेपी के निर्देशों पर काम करता है। अगर आयोग निष्पक्ष होता तो अब तक इस मामले में जाँच शुरू हो चुकी होती और दोषियों पर कार्रवाई हो रही होती।'
उन्होंने यह भी कहा कि जब चुनाव आयोग ने विपक्षी नेताओं से शपथ पत्र के साथ लिखित शिकायत मांगी थी, तब समाजवादी पार्टी ने न केवल शपथ पत्र जमा किए, बल्कि हटाए गए मतदाताओं की जिला-वार सूची भी तैयार की। अखिलेश ने कहा, 'चुनाव आयोग ने कहा था कि उन्हें समाजवादी पार्टी से कोई शपथ पत्र नहीं मिले। हमने न केवल शपथ पत्र जमा किए, बल्कि उनके कार्यालय से प्राप्त डिजिटल रसीद भी दिखाई। अब हम मांग करते हैं कि चुनाव आयोग शपथ पत्र दे कि जो डिजिटल रसीद हमें दी गई, वह वैध है।'
विपक्ष का एकजुट विरोध
अखिलेश के इस क़दम को विपक्षी दलों ने भी समर्थन दिया है। कई विपक्षी नेताओं ने सोशल मीडिया पर इसे 'वोट चोर' के खिलाफ एकजुट होने का आह्वान बताया है। समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं और समर्थकों ने भी इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया है, जिसमें दावा किया गया कि मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने बीजेपी को बचाने के लिए आयोग की विश्वसनीयता को पूरी तरह नष्ट कर दिया है।
अखिलेश ने संकेत दिया कि यदि चुनाव आयोग इस मामले में कार्रवाई नहीं करता तो समाजवादी पार्टी इसे जनता के बीच ले जाएगी। उन्होंने कहा, 'हम इस मुद्दे को जनता की अदालत में ले जाएंगे। लोग देख रहे हैं कि कैसे उनके वोट के अधिकार को छीना जा रहा है। हम हर स्तर पर इस अन्याय के खिलाफ लड़ेंगे।'
सपा नेता ने यह भी मांग की कि भविष्य में मतदाता सूची में किसी भी तरह की हेरफेर को रोकने के लिए कड़े नियम बनाए जाएँ और दोषी अधिकारियों के ख़िलाफ़ तत्काल कार्रवाई हो।
अखिलेश यादव के ये आरोप न केवल चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हैं, बल्कि लोकतंत्र की मूल भावना पर भी बहस छेड़ते हैं। समाजवादी पार्टी के इस कदम से उपचुनावों में कथित अनियमितताओं पर देशव्यापी चर्चा शुरू हो गई है। अब सभी की निगाहें चुनाव आयोग पर टिकी हैं कि वह इन शपथ पत्रों और आरोपों पर क्या कार्रवाई करता है।