लद्दाख प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि सोनम वांगचुक राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए नुक़सान पहुँचाने वाली गतिविधियों में शामिल थे। वांगचुक की राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम यानी एनएसए के तहत गिरफ्तारी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है और इसी को लेकर लद्दाख प्रशासन ने अदालत में ऐसा हलफनामा दिया है। इस मामले में मंगलवार को सुनवाई नहीं हो सकी और अब बुधवार को सुनवाई होगी।

लद्दाख प्रशासन ने कोर्ट को दिए हलफनामे में साफ कहा है कि वांगचुक की गतिविधियां राज्य की सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था और जरूरी सेवाओं के लिए नुकसानदेह थीं। प्रशासन का दावा है कि गिरफ्तारी पूरी तरह कानूनी तरीके से हुई और सभी संवैधानिक नियमों का पालन किया गया। सोनम वांगचुक को 26 सितंबर 2025 को एनएसए के तहत गिरफ्तार किया गया था। यह गिरफ्तारी लद्दाख में राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची की मांग को लेकर हुए हिंसक प्रदर्शनों के दो दिन बाद हुई। इन प्रदर्शनों में चार लोगों की मौत हो गई और करीब 90 लोग घायल हुए। वांगचुक को राजस्थान के जोधपुर सेंट्रल जेल में रखा गया है। उनकी पत्नी गीतांजली अंगमो ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर उनकी तत्काल रिहाई की मांग की है।

गिरफ्तारी का कारण क्या बताया गया?

लद्दाख के जिला मजिस्ट्रेट ने हलफनामे में कहा है कि उन्होंने वांगचुक की गतिविधियों पर उपलब्ध सबूतों का गहन अध्ययन किया। उनके अनुसार, वांगचुक राज्य की सुरक्षा को नुक़सान पहुँचाने, सार्वजनिक शांति भंग करने और जरूरी सेवाओं को प्रभावित करने वाली हरकतों में लगे थे। डीएम ने लिखा, 'मैंने क़ानून के मुताबिक़ कंटेंट की पड़ताल की और स्थानीय परिस्थितियों को देखते हुए कार्रवाई की। मैं गिरफ्तारी के फ़ैसले से पूरी तरह संतुष्ट हूँ।'

द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार हलफनामा में डीएम ने कहा है कि गिरफ्तारी के समय वांगचुक को एनएसए के तहत हिरासत और जोधपुर जेल ट्रांसफर की पूरी जानकारी दी गई। साथ ही, उनकी पत्नी गीतांजली को फोन पर तुरंत सूचना दी गई, जिसे उन्होंने अपनी याचिका में स्वीकार भी किया है। हलफनामे में कहा गया कि याचिका में गिरफ्तारी की सूचना न देने के दावे पूरी तरह झूठे और भ्रामक हैं।

प्रशासन का दावा

एनएसए केंद्र और राज्य सरकारों को बिना मुकदमे के किसी व्यक्ति को 12 महीने तक हिरासत में रखने का अधिकार देता है, अगर वह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा पैदा कर रहा हो। लेकिन संविधान के अनुच्छेद 22 के तहत कुछ सुरक्षा उपाय भी ज़रूरी हैं। लद्दाख प्रशासन ने कोर्ट को आश्वासन दिया कि इनका पूरा पालन हुआ।

प्रशासन ने दावा किया है कि गिरफ्तारी के पांच दिनों के अंदर हिरासत के आधार और सबूत वांगचुक को सौंपे गए। यह 29 सितंबर को कर दिया गया और वांगचुक ने हस्ताक्षर करके प्राप्ति की पुष्टि की। गिरफ्तारी का आदेश और आधार तय समय में सलाहकार बोर्ड को भेज दिए गए।

हलफनामे में कहा गया कि वांगचुक की कई बार मेडिकल जांच हुई, जिसमें वे शारीरिक और मानसिक रूप से फिट पाए गए। उन्होंने डॉक्टर को बताया कि वे कोई दवा नहीं ले रहे हैं। प्रशासन ने याचिका में लगाए गए अवैध हिरासत और दुर्व्यवहार के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया।

'वांगचुक की ओर से कोई आपत्ति नहीं'

हलफनामे में एक महत्वपूर्ण बात कही गई कि गिरफ्तारी के लगभग 15 दिन बीत चुके हैं, लेकिन वांगचुक ने खुद सलाहकार बोर्ड या किसी अधिकारी को कोई आपत्ति नहीं दी। उनकी पत्नी गीतांजली ने राष्ट्रपति को एक पत्र लिखा, लेकिन वह बोर्ड को नहीं भेजा गया। फिर भी, प्रशासन ने इस पत्र की कॉपी बोर्ड को भेज दी। बोर्ड ने 10 अक्टूबर 2025 को वांगचुक को लिखित नोटिस भेजकर कहा कि अगर वे चाहें तो एक हफ्ते में आपत्ति दर्ज करा सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई टली

यह मामला मंगलवार को जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एन वी अंजारिया की बेंच के सामने सुनवाई के लिए था। लेकिन वांगचुक के वकील सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल के दूसरे कोर्ट में व्यस्त होने के कारण सुनवाई नहीं हो सकी। कोर्ट ने मामले को बुधवार यानी 15 अक्टूबर के लिए स्थगित कर दिया।

याचिका में गीतांजली ने एनएसए लगाने के फैसले पर सवाल उठाए हैं और कहा है कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और निजता के अधिकार का उल्लंघन है। कोर्ट अब यह देखेगा कि क्या गिरफ्तारी संविधान के अनुच्छेद 22 के मानकों पर खरी उतरती है।

सोनम वांगचुक कौन हैं?

सोनम वांगचुक लद्दाख के एक इंजीनियर, शिक्षक और पर्यावरण कार्यकर्ता हैं। वे हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव्स यानी एचआईए के संस्थापक हैं और रेमन मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित हैं। वे जलवायु परिवर्तन, शिक्षा सुधार और स्थानीय संस्कृति के संरक्षण के लिए जाने जाते हैं। लद्दाख में राज्य के दर्जे और छठी अनुसूची की मांग को लेकर वे लंबे समय से आंदोलन चला रहे हैं। 24 सितंबर को हुए प्रदर्शनों के दौरान पुलिस ने उन्हें 'मुख्य उकसाने वाला' बताया था। जेल से ही उन्होंने चार मृतकों की स्वतंत्र न्यायिक जांच की मांग की है।

लद्दाख आंदोलन

यह विवाद लद्दाख में केंद्र सरकार की देरी से नाराजगी से जुड़ा है। लेह एपेक्स बॉडी यानी एलएबी और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस यानी केडीए ने 35 दिनों की भूख हड़ताल की थी। प्रदर्शनकारियों ने भाजपा कार्यालय के बाहर हंगामा किया, जिसमें स्कूली लड़कियां, कॉलेज छात्र और भिक्षु शामिल थे। इस दौरान हिंसा हो गई थी। वांगचुक ने कहा था कि किसी को हिंसा की आशंका नहीं थी। हिंसा के बाद उन्होंने अपनी हड़ताल ख़त्म कर दी थी और युवाओं से हिंसा का रास्ता छोड़ने की अपील की थी।