क्या स्वदेशी का अर्थ सरकारी कंपनी का काम छीनकर निजी कंपनी को देना और उस पर सरकारी ख़ज़ाना लुटाना है। मोदी सरकार की ज़ोहो कारपोरेशन पर मेहरबानी तो कुछ ऐसा ही साबित कर रहा है। ख़ास बात ये है कि इस सॉफ्टवेयर कंपनी के संस्थापक श्रीधर वेम्बू आरएसएस से काफ़ी क़रीब हैं। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि सरकारी कर्मचारियों का ईमेल इस कंपनी में शिफ़्ट करने का फ़ैसला कितना जायज़ है। क्या यह सरकार के तमाम दस्तावेज़ों और डेटा को एक निजी कंपनी को सौंपना नहीं है। साथ ही, क्या इस कंपनी के ज़रिए आरएसएस सरकारी डेटा में सेंध लगा सकता है?
ज़ोहो ईमेल या सरकारी फ़ाइलों में संघ की सेंध?
- विश्लेषण
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- 14 Oct, 2025

श्रीधर वेम्बू
क्या ज़ोहो के माध्यम से सरकारी फ़ाइलों या ईमेल सिस्टम में संघ से जुड़े नेटवर्क की सेंध लगी है? डेटा सुरक्षा और गोपनीयता को लेकर नए सवाल उठ रहे हैं। क्या भारत में डिजिटल स्वदेशीकरण के नाम पर संवेदनशील जानकारी खतरे में है?
ज़ोहो पर सरकारी ईमेल
पिछले एक साल में केंद्र सरकार के 12 लाख कर्मचारियों के ईमेल सरकारी NIC.in से हटाकर प्राइवेट कंपनी ज़ोहो पर शिफ्ट हो गये। इसमें प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) भी शामिल है। यहां तक कि गृहमंत्री अमित शाह का पर्सनल ईमेल भी ज़ोहो पर पहुंच चुका है। डोमेन तो nic.in या gov.in ही है, लेकिन स्टोरेज, एक्सेस और प्रोसेसिंग सब ज़ोहो के जिम्मे। हाल ही में शिक्षा मंत्रालय ने 3 अक्टूबर 2025 को आदेश जारी किया – Zoho Suite का इस्तेमाल करो।