क्या स्वदेशी का अर्थ सरकारी कंपनी का काम छीनकर निजी कंपनी को देना और उस पर सरकारी ख़ज़ाना लुटाना है। मोदी सरकार की ज़ोहो कारपोरेशन पर मेहरबानी तो कुछ ऐसा ही साबित कर रहा है। ख़ास बात ये है कि इस सॉफ्टवेयर कंपनी के संस्थापक श्रीधर वेम्बू आरएसएस से काफ़ी क़रीब हैं। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि सरकारी कर्मचारियों का ईमेल इस कंपनी में शिफ़्ट करने का फ़ैसला कितना जायज़ है। क्या यह सरकार के तमाम दस्तावेज़ों और डेटा को एक निजी कंपनी को सौंपना नहीं है। साथ ही, क्या इस कंपनी के ज़रिए आरएसएस सरकारी डेटा में सेंध लगा सकता है?