कन्नड़ भाषा को लेकर हाल में विवादों में रहे अभिनेता और फ़िल्म निर्माता कमल हासन को अब अपनी तमिल फ़िल्म 'ठग लाइफ' की कर्नाटक में रिलीज के लिए सुरक्षा मांगी है। इसके लिए उन्होंने कर्नाटक हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। यह क़दम कर्नाटक फिल्म चैंबर ऑफ कॉमर्स यानी केएफ़सीसी द्वारा फ़िल्म की रिलीज़ पर रोक लगाने की धमकी के बाद उठाया गया है। केएफ़सीसी ने कमल हासन के एक बयान का विरोध किया है, जिसमें उन्होंने कथित तौर पर कहा था कि 'कन्नड़ भाषा तमिल से उत्पन्न हुई है।' इस बयान को लेकर कर्नाटक में बड़ा विवाद हुआ और विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं।

'ठग लाइफ़' एक बहुप्रतीक्षित फ़िल्म है, जिसका निर्देशन मणि रत्नम ने किया है और इसे कमल हासन की प्रोडक्शन कंपनी राजकमल फ़िल्म्स ने बनाया है। 5 जून को रिलीज़ होने वाली इस 300 करोड़ रुपये की लागत वाली फ़िल्म को लेकर कर्नाटक में विवाद तब शुरू हुआ जब कमल हासन के कथित बयान को कन्नड़ भाषा और संस्कृति के लिए अपमानजनक माना गया। कर्नाटक रक्षा वेदिके ने इस बयान के ख़िलाफ़ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई और केएफ़सीसी ने मांग की कि कमल हासन सार्वजनिक रूप से माफी मांगें, नहीं तो फ़िल्म को कर्नाटक में रिलीज़ नहीं होने दिया जाएगा।
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कमल हासन ने इस मांग को खारिज करते हुए कहा कि उनका बयान प्रेम और सम्मान के भाव से दिया गया था, और जब तक उनकी ग़लती सिद्ध नहीं होती वह माफ़ी नहीं मांगेंगे। इस गतिरोध के बाद राजकमल फ़िल्म्स और कमल हासन ने कर्नाटक हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया, ताकि फ़िल्म की रिलीज़ को बिना किसी बाधा के सुनिश्चित किया जा सके।

कमल हासन ने सोमवार को कर्नाटक हाई कोर्ट में याचिका दायर कर मांग की कि उनकी फ़िल्म 'ठग लाइफ़' की रिलीज़ को किसी भी तरह की बाधा से रोका जाए। याचिका में राजकमल फ़िल्म्स ने दावा किया कि कमल हासन के बयान को ग़लत तरीक़े से प्रस्तुत किया गया और इसे संदर्भ से बाहर करके विवाद पैदा किया गया। 

कमल हासन की याचिका में कहा गया कि यह फ़िल्म कर्नाटक में सिनेमाघरों में निर्बाध रूप से रिलीज़ होने की हकदार है और किसी भी संगठन को इसे रोकने का अधिकार नहीं है।

याचिका में यह भी तर्क दिया गया कि फ़िल्म उद्योग में इस तरह के विवाद रचनात्मक स्वतंत्रता को बाधित करते हैं और इससे न केवल निर्माताओं को वित्तीय नुक़सान होता है, बल्कि दर्शकों को भी एक बढ़िया सिनेमाई अनुभव से वंचित किया जाता है। उन्होंने कोर्ट से अनुरोध किया कि कर्नाटक में फ़िल्म की रिलीज़ और स्क्रीनिंग के लिए पर्याप्त सुरक्षा दी जाए।

कन्नड़ भाषा को लेकर कमल हासन का कथित बयान कर्नाटक में कई संगठनों के लिए आपत्तिजनक रहा। कन्नड़ भाषा को द्रविड़ भाषा परिवार का हिस्सा माना जाता है और इसे तमिल, तेलुगु और मलयालम जैसी भाषाओं के साथ ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से जोड़ा जाता है। हालाँकि, कमल हासन के बयान को कन्नड़ भाषा की स्वतंत्र पहचान को कमतर करने के रूप में देखा गया, जिससे कर्नाटक रक्षा वेदिके और केएफ़सीसी जैसे संगठनों ने तीखी प्रतिक्रिया दी।
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कर्नाटक रक्षा वेदिके ने कमल हासन के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन किए और पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। केएफ़सीसी ने साफ़ किया कि जब तक कमल हासन सार्वजनिक माफ़ी नहीं मांगते, तब तक उनकी फ़िल्म को कर्नाटक में रिलीज़ करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

इस विवाद के बीच फ़िल्म निर्माता राम गोपाल वर्मा ने कमल हासन का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि इस तरह के विवाद अनावश्यक हैं और रचनात्मक कार्यों को बाधित करते हैं। सोशल मीडिया पर भी कई प्रशंसकों और उद्योग से जुड़े लोगों ने कमल हासन के पक्ष में आवाज उठाई, यह तर्क देते हुए कि उनके बयान को ग़लत समझा गया है। दूसरी ओर, कन्नड़ संगठनों और कुछ स्थानीय नेताओं ने इस मुद्दे को कन्नड़ अस्मिता से जोड़कर विरोध तेज़ कर दिया है।

कमल हासन की याचिका अब कर्नाटक हाई कोर्ट के समक्ष विचाराधीन है और यह मामला न केवल फ़िल्म की रिलीज़, बल्कि भाषा और सांस्कृतिक संवेदनशीलता के व्यापक मुद्दों को भी सामने लाता है।

यह पहली बार नहीं है जब कर्नाटक में किसी फ़िल्म को भाषा या सांस्कृतिक विवाद के कारण निशाना बनाया गया हो। पहले भी कई फ़िल्मों को इसी तरह के विरोध का सामना करना पड़ा है, जिससे फ़िल्म निर्माताओं को क़ानूनी रास्ता अपनाना पड़ा।
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'ठग लाइफ़' एक बड़े बजट की फ़िल्म है, जिसमें कमल हासन के साथ कई अन्य प्रमुख कलाकार शामिल हैं। यह फ़िल्म मणि रत्नम के साथ कमल हासन की एक और महत्वाकांक्षी परियोजना है और इसका कर्नाटक में रिलीज़ न होना निर्माताओं के लिए बड़ा वित्तीय झटका हो सकता है।

कर्नाटक हाई कोर्ट में इस मामले की सुनवाई जल्द होने की उम्मीद है, क्योंकि फ़िल्म की रिलीज़ की तारीख़ नज़दीक है। कमल हासन और उनकी टीम को उम्मीद है कि कोर्ट उनकी याचिका पर अनुकूल फ़ैसला देगा और फ़िल्म को कर्नाटक में निर्बाध रूप से रिलीज़ करने की अनुमति मिलेगी। दूसरी ओर, केएफ़सीसी और अन्य संगठनों ने संकेत दिया है कि वे अपने रुख़ पर क़ायम रहेंगे, जिससे यह मामला और जटिल हो गया है।