डीज़ल का दाम पहली बार पेट्रोल से ज़्यादा हो गया है। इस पर खुश होएं या रोएं, पता नहीं। मगर कांग्रेस पार्टी तो बधाई भी दे रही है और राजनीति भी कर रही है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने मंगलवार को ट्वीट किया है कि महामारी भी अनलॉक हो गई है और पेट्रोल-डीज़ल के दाम भी। कांग्रेस पार्टी पहले भी बता चुकी है और फिर बता रही है कि जब अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चा तेल (क्रूड ऑयल) 107 डॉलर प्रति बैरल पर था तब भारत में पेट्रोल 71.41 और डीज़ल 55.49 रुपये का मिल रहा था। और आज जब क्रूड ऑयल का दाम 42.41 डॉलर प्रति बैरल पर है, तब पेट्रोल 79.76 और डीज़ल 79.88 पर पहुंच चुका है। यह कैसे हुआ, इसमें कोई बड़ा रहस्य नहीं है। लेकिन उसे समझने से पहले थोड़ा पीछे चलें।
मनमोहन को कोसने वाले बीजेपी नेता मोदी सरकार में महंगे पेट्रोल-डीजल पर चुप क्यों हैं?
- विचार
- |
- |
- 25 Jun, 2020

भारत में पेट्रोल और डीजल के दाम लगातार बढ़ रहे हैं जबकि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चा तेल सस्ता हो गया है। जो बीजेपी नेता मनमोहन सिंह की सरकार के दौरान पेट्रोल-डीजल की क़ीमतों को लेकर आए दिन सड़कों पर उतरते थे, अब उनके पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि कच्चा तेल बहुत सस्ता होने के बाद भी उनकी सरकार आम आदमी को इसका फायदा क्यों नहीं दे रही है। सत्रह दिन से पेट्रोल और डीजल के दाम लगातार बढ़ रहे हैं और आम आदमी त्राहि-त्राहि कर रहा है।
ढाई गुने का था फ़र्क़
मुझे जो सबसे पुरानी याद है, सन सत्तर के आसपास की, तब पेट्रोल तीन रुपये पंद्रह पैसे और डीज़ल एक रुपये सोलह पैसे प्रति लीटर मिलता था। यानी लगभग ढाई गुने का फ़र्क़ था। तब लगता था कि पेट्रोल बढ़िया और डीज़ल घटिया होता होगा। बाद में पता चला कि ऐसा नहीं है। हाँ, सरकार मानती है कि पेट्रोल अमीरों का तेल है और डीज़ल ग़रीबों का। क्योंकि डीज़ल से ट्रक चलते हैं। किसानों के पंपसेट चलते हैं। ट्रैक्टर चलते हैं और उस ज़माने में तो शहरों को बिजली सप्लाई करने वाले डीज़ल पावर हाउस भी इसी से चलते थे। इसीलिए सरकार सब्सिडी देकर डीज़ल का दाम कम रखती थी।