बात तब की है जब गाँधीजी 12-13 साल के या उससे भी छोटे थे। गाँधीजी के चाचा को सिगरेट पीने की आदत थी और उनको देखकर गाँधीजी और उनके एक रिश्तेदार, दोनों को धूम्रपान का शौक़ चर्राया। पैसे तो होते नहीं थे उनके पास सो वे चाचा द्वारा फेंके गए सिगरेट के टोटों को जलाकर पीने लगे। लेकिन एक तो ये टोटे हमेशा मिलते नहीं थे, दूसरे जब मिलते थे तो उन आख़िर के बचे हुए टुकड़ों से धुएँ के छल्ले नहीं निकलते थे जैसा कि वे निकालना चाहते थे।
गाँधी-150: गाँधी जी ने क्यों आत्महत्या करने की सोची थी?
- विचार
- |
- |
- 30 Sep, 2019

महात्मा गाँधी की 150वीं जयंती पर हम उनके व्यक्तिगत जीवन से जुड़ी घटनाओं की सीरीज़ प्रकाशित कर रहे हैं। इसमें आज हम बात करते हैं उन चोरियों की जो गाँधीजी ने किशोरावस्था में की थीं, कभी बीड़ी ख़रीदने के लिए, कभी मँझले भाई का उधार चुकाने के लिए। साथ में हम यह भी जानेंगे कि इस धूम्रपान के चक्कर में कैसे वे आत्महत्या की हद तक पहुँच गए और आख़िर में किस तरह उन्होंने इन चोरियों का प्रायश्चित्त किया।
सो उन दोनों ने नौकर के कुर्ते की जेब से पैसे निकालने शुरू कर दिए और उनसे बीड़ियाँ ख़रीदने लगे। कुछ हफ़्तों तक यह चोरी चलती रही। बीच में उन्होंने यह भी सुना कि कुछ पौधों की डालियों के भीतर छोटे-छोटे छेद होते हैं और उनको भी बीड़ी-सिगरेट की तरह पीया जा सकता है। कुछ दिन उन्होंने इस प्रकार के धूम्रपान का भी आनंद लिया।
नीरेंद्र नागर सत्यहिंदी.कॉम के पूर्व संपादक हैं। इससे पहले वे नवभारतटाइम्स.कॉम में संपादक और आज तक टीवी चैनल में सीनियर प्रड्यूसर रह चुके हैं। 35 साल से पत्रकारिता के पेशे से जुड़े नीरेंद्र लेखन को इसका ज़रूरी हिस्सा मानते हैं। वे देश