बात तब की है जब गाँधीजी 12-13 साल के या उससे भी छोटे थे। गाँधीजी के चाचा को सिगरेट पीने की आदत थी और उनको देखकर गाँधीजी और उनके एक रिश्तेदार, दोनों को धूम्रपान का शौक़ चर्राया। पैसे तो होते नहीं थे उनके पास सो वे चाचा द्वारा फेंके गए सिगरेट के टोटों को जलाकर पीने लगे। लेकिन एक तो ये टोटे हमेशा मिलते नहीं थे, दूसरे जब मिलते थे तो उन आख़िर के बचे हुए टुकड़ों से धुएँ के छल्ले नहीं निकलते थे जैसा कि वे निकालना चाहते थे।