पंजाब के होशियारपुर में पाँच साल के एक मासूम बच्चे की हत्या, जो कथित तौर पर एक प्रवासी मज़दूर ने की, ने आज के पंजाब में कई सवाल खड़े कर दिए हैं। पंजाब पहले ही तरह-तरह की चुनौतियों से जूझ रहा है और इस घटना ने राज्यभर में ग़ुस्से की लहर पैदा कर दी। जगह-जगह पंचायतों ने प्रस्ताव पास किए कि अपने गाँवों में प्रवासियों के प्रवेश पर रोक लगाई जाए और उनके ख़िलाफ़ सख़्त क़दम उठाए जाएँ। कई लोगों ने कहा कि अनियंत्रित प्रवास से पंजाब की आबादी की बनावट बदलने की साज़िश हो रही है और हिमाचल प्रदेश व उत्तराखंड की तरह यहाँ भी क़ानून बनाए जाएँ। कुछ राजनेताओं और व्यक्तियों ने भी प्रवासी आबादी पर कार्रवाई की माँग की। यहाँ तक कि कुछ लोग समूह बनाकर प्रवासियों के ख़िलाफ़ प्रचार करते, धमकियाँ देते और चेतावनी जारी करते नज़र आए।

इस घटना की गंभीरता को देखते हुए मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने साफ़ कहा कि ऐसी माँगें न तो उचित हैं और न ही संविधान इसकी अनुमति देता है। उन्होंने चेतावनी दी कि प्रवासियों के ख़िलाफ़ ऐसे मुद्दे उठाने से उन लाखों पंजाबी परिवारों पर भी बुरा असर पड़ेगा जो देशभर के अलग-अलग राज्यों में बस चुके हैं।

दूसरी ओर पंचायतों द्वारा प्रवासियों के प्रवेश पर रोक लगाने जैसे प्रस्ताव पास करना पंचायती राज व्यवस्था पर भी सवाल खड़े करता है। क्या उन्हें मालूम नहीं कि इस तरह का प्रस्ताव संविधान और पंचायती राज अधिनियम 1993 का खुला उल्लंघन है? किसी भी ग्राम पंचायत को ऐसा अधिकार नहीं कि वह मौलिक अधिकारों का हनन करे।

पंजाब में प्रवासियों की अहमियत

असलियत यह है कि प्रवासी मज़दूर पंजाब की सामाजिक और आर्थिक ज़िंदगी का हिस्सा बन चुके हैं। खेती, उद्योग, निर्माण- हर जगह उनका योगदान है। हालाँकि प्रवास कोई नया चलन नहीं, पर आधुनिक पंजाब में प्रवासियों की संख्या हरित क्रांति (1960 के दशक के आख़िरी सालों) से बढ़नी शुरू हुई। उस समय स्थानीय मज़दूर खेती छोड़कर गैर-कृषि क्षेत्रों में जाने लगे और बँधे मज़दूरी (सीरी प्रथा) का ढाँचा टूटा।

खेती में मशीनों के इस्तेमाल के बावजूद धान की रोपाई और गेहूँ की कटाई जैसे कामों में अचानक भारी मज़दूरी की ज़रूरत पड़ती थी। इसी वजह से बिहार, उत्तर प्रदेश और बंगाल से हज़ारों लोग पंजाब आए। पहले तो वे केवल खेती के काम के मौसम में आते और लौट जाते थे, लेकिन धीरे-धीरे फ़ैक्ट्रियों और शहरों में काम करने लगे और वहीं बस भी गए।

2011 की जनगणना बताती है कि पंजाब में 13 लाख से ज़्यादा प्रवासी मज़दूर थे। एक अनुमान के मुताबिक़ आज लगभग 18 लाख प्रवासी पंजाब की खेती, उद्योग, सेवाओं और अन्य क्षेत्रों में अहम भूमिका निभा रहे हैं।

आतंकवाद के दौर (1980–90 के दशक) में भी प्रवास का सिलसिला नहीं टूटा, जबकि उस समय कई प्रवासी मज़दूर आतंकियों का शिकार हुए। अब हालात ये हैं कि बिहार-यूपी में रोज़गार बढ़ने से पंजाब आने वाले मज़दूरों की संख्या घटी है। किसान उन्हें रोकने के लिए तरह-तरह की सुविधाएँ और प्रोत्साहन देने लगे हैं, यहाँ तक कि स्टेशन पर जाकर उनका स्वागत करते हैं। दोआबा जैसे इलाक़ों में तो प्रवासी वे घर और ज़मीन भी सँभालते हैं जो परदेस गए पंजाबी परिवारों की हैं।

पूरी प्रवासी आबादी को दोष क्यों?

तो फिर सवाल यह है कि अगर एक प्रवासी ने जुर्म किया, तो पूरी प्रवासी आबादी को क्यों दोष दिया जा रहा है? ज़रूरी यह है कि सरकार और क़ानून व्यवस्था सख़्ती से काम करे, गुनहगार को सज़ा दे और आगे ऐसी घटना न होने दे। लेकिन इसके बजाय पूरा समुदाय निशाने पर आ गया।

आज का पंजाब वैसे ही संकटों से घिरा है—खेती और अर्थव्यवस्था की बदहाली, राजनीतिक अस्थिरता, बिगड़ती क़ानून-व्यवस्था, युवाओं की बेरोज़गारी, बाढ़ से तबाही और सरकार की नाकामी ने लोगों की उम्मीदें तोड़ दी हैं। ऐसे माहौल में प्रवासियों को बलि का बकरा बनाना आसान रास्ता है।

1966 में पंजाब सिख बहुल राज्य बना था। उस समय सिख आबादी 61% से अधिक थी, जो 2011 में घटकर 57.7% रह गई। हालाँकि इसमें युवाओं का बड़े पैमाने पर विदेश प्रवास भी एक अहम कारण है, लेकिन कुछ ताक़तें प्रवासियों पर ठीकरा फोड़कर समाज में तनाव फैलाना चाहती हैं।

राजनीति का खेल?

सवाल यह भी है कि प्रवासियों को हर समस्या की जड़ बताने वाले लोग कौन हैं और उनका मक़सद क्या है? महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में भी प्रवासी मुद्दे को उठाकर चुनावी फ़ायदा लिया गया है। बिहार चुनाव नज़दीक हैं और पंजाब में ज़्यादातर प्रवासी वहीं से आते हैं। साफ़ है कि इस विवाद से किसे फ़ायदा होगा।

पंजाब में भी अगले साल चुनाव हैं। सरकार अपने वादों पर खरी नहीं उतरी। आतंकवाद के बाद से अब तक किसी सरकार ने पंजाब की ढाँचागत समस्याओं पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया। जनता निराश है और ऐसे मुद्दे राजनीतिक दलों और स्वार्थी तत्वों के लिए मौक़ा बन जाते हैं।

पंजाब पहले भी बँटवारे और आतंकवाद की मार झेल चुका है। अब ज़रूरत है कि लोग समझें कि प्रवासियों को निशाना बनाकर केवल नफ़रत फैलाई जा रही है। पंजाब की एकता और भविष्य इसी में है कि सभी समुदाय मिलकर सामाजिक और आर्थिक स्थिरता कायम करें।