भारत—जैसे 60-70 पुराने ग़ुलाम देशों के अलावा सभी देशों में सारे क़ानून और फ़ैसले उनकी अपनी भाषा में ही होते हैं। कोई भी महाशक्ति राष्ट्र अपने क़ानून और न्याय को विदेशी भाषा में संचालित नहीं करता है। भारत का न्याय जादू-टोना बना हुआ है। वादी और प्रतिवादी को समझ ही नहीं पड़ता है कि अदालत की बहस और फ़ैसले में क्या-क्या कहा जा रहा है।
दूसरी बात, जिस पर राष्ट्रपति ने जोर दिया है, वह है, न्याय मिलने में देरी। देर से मिलनेवाला न्याय तो अन्याय ही है।