दिल्ली के आसपास के शहरों में कमाई के अवसर शून्य हो जाने के बाद गाँव की तरफ़ पैदल जाने वालों का रेला इंसानियत को चुनौती दे रहा है। इतनी लम्बी दूरी पैदल तय करने की योजना बनाना इस बात का साफ़ सबूत है कि दिल्ली में रहना असंभव हो गया है। लेकिन इसके पीछे शहरों की तरफ़ भगदड़ सबसे बड़ा कारण है। जो लोग जा रहे हैं लगभग उन सब की गाँव में अपनी ज़मीन है जिसमें गुज़र-बसर हो सकता है। लेकिन वे शहर में बेहतर ज़िंदगी के सपने देखकर यहाँ आए थे।
शहरी चकाचौंध का सपना पालने वाले लोग क्यों भाग रहे हैं सैकड़ों किमी पैदल?
- विचार
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- 29 Mar, 2020

चुनाव के पहले कुछ मलिन बस्तियों को पानी-बिजली के कनेक्शन मिलते हैं और लोग दिल्ली शहर में मकान मालिक बन जाते हैं। जब वे लोग गाँव जाते हैं तो सम्पन्नता की मूर्ति लगते हैं। उनकी जीवनशैली गाँव में एकदम अलग होती है लेकिन शहर में वे किसी संगम विहार, किसी सोनिया विहार या किसी मंडावली में अपनी बस्ती के रेगुलर होने के इंतज़ार में उम्र बिता देते हैं। गाँव में जाकर सच्चाई नहीं बताते।
मैंने इन सपनों के निर्माण की फ़र्ज़ी प्रक्रिया को बहुत क़रीब से देखा है। उत्तर प्रदेश के गाँवों में रहने वाले लड़कों के मन में शहरों की ज़िंदगी की एक तसवीर रहती है। लेकिन सचाई कुछ अलग होती है। मेरे साथ भी ऐसा ही था। गाँव में रहते हुए बड़े शहरों की ज़िंदगी के बारे में सम्पन्नता की कल्पना हावी रहती है। मेरा यह सपना बहुत जल्दी टूट गया था लेकिन सबको यह अवसर नहीं मिलता। मैं पहली बार जब दिल्ली आया तो दिमाग़ में एक पता बहुत साफ़ लिखा हुआ था- गली मैगज़ीन, चूड़ी वालान, चावड़ी बाज़ार, चांदनी चौक, दिल्ली। मेरे गाँव के कुछ लोग यहाँ रहते थे।