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फ़ोटो क्रेडिट- @AITCofficial

बंगाल: चुनाव लड़ने नंदीग्राम क्यों पहुँची हैं ममता बनर्जी?

बीजेपी ने शुभेंदु अधिकारी को तोड़कर टीएमसी के दक्षिण के गढ़ को हिलाने का इंतज़ाम किया था। लेकिन ममता के नंदीग्राम पहुँच जाने से बीजेपी के सामने चुनौती बढ़ गयी है। नंदीग्राम से चुनाव मैदान में उतरकर ममता ने अपनी फ़ाइटर इमेज को भी मज़बूत किया है।
शैलेश

ममता बनर्जी ने आख़िरकार शेर की मांद में घुसकर चुनौती देने का एलान कर ही दिया। उन्होंने विधानसभा का चुनाव नंदीग्राम से लड़ने की घोषणा की है। नंदीग्राम को उनके पूर्व सहयोगी और अब बीजेपी के नेता शुभेंदु अधिकारी का गढ़ माना जाता है। शुभेंदु 2007 के नंदीग्राम किसान आंदोलन का प्रमुख चेहरा हैं। 

सीपीएम के शासन के दौरान नंदीग्राम में इकनॉमिक ज़ोन बनाए जाने का विरोध करने वाले किसानों पर पुलिस द्वारा गोली चलाई गई थी। इसमें 14 किसानों की मौत के बाद ममता की राजनीति भी यहीं से चमकी थी और 2011 के विधानसभा चुनाव में वह सत्ता के शिखर तक पहुँची थीं। 

बंगाल के राजनीतिक पंडितों का मानना है कि ममता ने नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का फ़ैसला करके एक बड़ा राजनीतिक दाँव खेला है। एक तरफ़ उन्होंने अधिकारी परिवार और बीजेपी को खुली चुनौती दी है तो दूसरी तरफ़ अपने जुझारू किसान समर्थक चेहरे को सामने कर दिया है।

नंदीग्राम, पूर्वी मिदनापुर का हिस्सा है। बंगाल का मशहूर हल्दिया पोर्ट इसी इलाक़े में है। इस इलाक़े में अधिकारी परिवार के दबदबे का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि शुभेंदु के पिता शिशिर अधिकारी यहीं से लोकसभा सासंद और भाई दीपेंदु अधिकारी इसी इलाक़े के एक विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं। 

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ममता के क़रीबी थे शुभेंदु 

शुभेंदु ख़ुद नंदीग्राम से विधायक थे। हल्दिया पोर्ट के मज़दूरों पर भी अधिकारी परिवार का अच्छा ख़ासा प्रभाव है। अधिकारी परिवार इस इलाक़े के कई व्यवसायों से भी जुड़ा है। 2020 के दिसंबर तक पूरा अधिकारी परिवार तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) में ही था। शुभेंदु को ममता का बहुत ख़ास समर्थक माना जाता था। दिसंबर में शुभेंदु ने ममता का साथ छोड़ कर बीजेपी का दामन पकड़ लिया। 

Mamta banerjee contest from Nandigram in bengal election 2021 - Satya Hindi

पूर्व और पश्चिम मिदनापुर के अलावा झार ग्राम इलाक़े की क़रीब 20 से 25 सीटों पर इस परिवार का असर बताया जाता है। सबसे बड़ा सवाल ये है कि ममता ने अधिकारी परिवार को सीधे चुनौती देने का फ़ैसला क्यों किया। राजनीतिक विशेषज्ञ बताते हैं कि अधिकारी के ज़रिए बीजेपी सीधे तौर पर ममता और टीएमसी पर हमला करके ममता के दक्षिणी गढ़ को तोड़ने की तैयारी कर रही थी। 

टीएमसी छोड़कर बीजेपी में जाने वाले नेताओं में ज़मीनी तौर पर सबसे मज़बूत नेता शुभेंदु अधिकारी ही हैं। इसलिए ममता ने भी शुभेंदु परिवार के गढ़ में घुसकर उसे चुनौती देने का फ़ैसला किया। 

शुभेंदु का दावा

इस साल जनवरी में नंदीग्राम की एक रैली में ममता ने यहाँ से चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी थी। इसके जवाब में शुभेंदु ने कहा था कि अगर उन्होंने ममता को पचास हज़ार से कम वोटों से हराया तो वे राजनीति छोड़ देंगे। माना जा रहा था कि अधिकारी परिवार को डराने के लिए ममता राजनीतिक पैंतरा दिखा रही हैं। लेकिन अब ममता ने अपने पुराने क्षेत्र भवानीपुर से चुनाव नहीं लड़ने और ये सीट शोवन देव चट्टोपाध्याय को देने का एलान भी कर दिया है। 

राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि शहरी मतदाताओं पर बीजेपी हावी दिखाई दे रही है। ऐसे में ममता के पास एक ही रास्ता बचा है। वो ये कि वह किसानों के लिए लड़ने वाले अपने पुराने चेहरे को सामने लाएँ। किसानों के लिए संघर्ष के ज़रिए ही ममता ने सीपीएम को सत्ता से बाहर किया था।

भवानीपुर सीट क्यों छोड़ी?

नंदीग्राम से शुरू हुआ किसान संघर्ष सिंगुर में अपने चरम पर पहुँचा था और इन दोनों संघर्षों ने ममता को बंगाल की राजनीति में स्थापित कर दिया। चर्चा ये भी है कि ममता अब भवानीपुर में बहुत सुरक्षित महसूस नहीं कर रही थीं। इसलिए वो इस सीट को छोड़ने का मन बना चुकी थीं। 

पिछले लोकसभा चुनाव में यहाँ टीएमसी को व्यापक समर्थन नहीं मिला था। लेकिन इसके आसपास के कई क्षेत्र ममता के लिए ज़्यादा सुरक्षित माने जा रहे थे। ममता के चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर की टीम मुख्यमंत्री बनने से पहले वाली ममता को फिर से उभारने की योजना बना चुकी थे। नंदीग्राम इसके लिए सबसे माक़ूल चुनाव क्षेत्र माना गया। 

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आईएसएफ़ से मिलेगी चुनौती?

ममता के सामने एक और चुनौती है। सीपीएम और कांग्रेस गठबंधन ने नंदीग्राम सीट अपने तीसरे सहयोगी इंडियन सेक्युलर फ़्रंट (आईएसएफ़) को देने का फ़ैसला किया है। ये एक नयी पार्टी है जिसे मुसलमानों के एक धार्मिक नेता अब्बास सिद्दीक़ी ने बनाया है। अब्बास, फुरफ़ुरा शरीफ़ नाम की एक दरगाह से जुड़े हैं जिसके मानने वाले अच्छी-ख़ासी संख्या में हैं। 

Mamta banerjee contest from Nandigram in bengal election 2021 - Satya Hindi
बंगाल की राजनीति पर नज़र रखने वाले विश्लेषकों का कहना है कि ये पार्टी ममता के मुसलिम समर्थकों को बाँटने के लिए बनायी गयी है। चर्चा ये भी है कि बीजेपी गुपचुप तरीक़े से इस पार्टी को समर्थन दे रही है। लेकिन नंदीग्राम में मुसलमानों की इतनी आबादी नहीं है कि वो चुनाव रिज़ल्ट को बदल दें। ये एक हिंदू बहुल क्षेत्र है। इसके साथ ही अब्बास सिद्दीक़ी के चाचा ताहा सिद्दीक़ी ने ममता को समर्थन देने की घोषणा कर दी है। 
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ताहा सिद्दीक़ी ही फुरफ़ुरा शरीफ़ के धार्मिक प्रमुख हैं और मुसलिम मतदाताओं पर उनका अच्छा प्रभाव है। 

42 मुसलिमों को दिया टिकट

ममता ने विधानसभा की 294 सीटों में से 42 सीटों पर मुसलिम उम्मीदवारों को उतारने की घोषणा करके अपने मुसलिम आधार को बचाने की तैयारी कर ली है। अनुमान है कि बंगाल में 25 से 30 प्रतिशत मुसलमान हैं और टीएमसी के उम्मीदवारों में क़रीब 12 प्रतिशत मुसलमान हैं। इस तरह ममता ने मुसलिम समर्थक पार्टी होने के आरोप से बचने की कोशिश भी की है। लेकिन अधिकारी परिवार अपने दबदबे के बल पर ममता को चुनौती देने की तैयारी में जुटा है। 

ममता अपने नारे "माँ, माटी, मानुष" के ज़रिए ये बताने में भी जुटी हैं कि बंगाल के स्वाभिमान की रक्षा सिर्फ़ वो ही कर सकती हैं।

दक्षिण का क़िला भेदेगी बीजेपी 

2019 के लोकसभा चुनाव में ममता को उत्तर बंगाल में बुरी हार का सामना करना पड़ा था। बंगाल में बीजेपी को जो 18 सीटें मिली थीं उनमें से ज़्यादातर उत्तर बंगाल में ही थीं। दक्षिण बंगाल में ममता की स्थिति अच्छी रही थी। इस बार बीजेपी के निशाने पर दक्षिण बंगाल है और ममता के सामने पहली चुनौती है इस गढ़ को बचाना। इस इलाक़े में कोलकाता, 24 परगना, बाँकुरा, वर्दमान और मेदिनीपुर जैसे इलाक़े आते हैं। 

शुभेंदु अधिकारी जैसे ज़मीनी नेता को तोड़कर बीजेपी ने ममता को दक्षिण के गढ़ से भी बेदख़ल करने की तैयारी कर ली है। लेकिन ममता ने नंदीग्राम में घुसकर बीजेपी की चुनौती बढ़ा दी है।

ममता की बीजेपी को चुनौती 

वैसे, इस इलाक़े में वाम दलों और कांग्रेस का आधार अभी भी मौजूद है। बताते हैं कि बीजेपी की रणनीति का एक सिरा ग़ैर बीजेपी वोटों को टीएमसी और वाम-कांग्रेस गठबंधन में विभाजित करने तक भी पहुँचता है। बीजेपी ने शुभेंदु अधिकारी को तोड़कर टीएमसी के दक्षिण के गढ़ को हिलाने का इंतज़ाम किया था। लेकिन ममता के नंदीग्राम पहुँच जाने से बीजेपी के सामने चुनौती बढ़ गयी है।

फ़ाइटर ममता

टीएमसी ने बीस से ज़्यादा विधायकों का टिकट काट दिया है। क़रीब इतने ही विधायक टीएमसी छोड़कर बीजेपी में जा चुके हैं। इनकी जगह नए लोगों को उतार कर ममता अपनी पार्टी का नया चेहरा भी सामने लाने की कोशिश कर रहीं हैं। नंदीग्राम से चुनाव मैदान में उतरकर ममता ने अपनी फ़ाइटर इमेज को भी मज़बूत किया है। 

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