Indian Democracy Hoarded by Swindlers: देश में चंट संस्कृति ने क्रिकेट विवाद से लेकर राजनैतिक पैंतरेबाजी तक में भारत के लोकतंत्र को जकड़ लिया है। यह संस्कृति देश को कैसे खोखला कर रही है, वरिष्ठ पत्रकार राकेश कायस्थ का व्यंग्य पढ़ें।
चंटपना किसी चकरम, चिरकुट गणराज्य का जीवन मूल्य हो सकता है। लेकिन क्या कोई कल्पना कर सकता था कि पांच हज़ार साल के गौरवशाली इतिहास और 140 करोड़ आबादी वाला दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र चंट चिंतन को इस तरह आत्मसात कर लेगा। टपोरी मुन्ना ने जब मेडिकल कॉलेज कब्जाया तो हैरान होते हुए डीन जे.अस्थाना ने कहा “आई एम शॉक्ड, नेवर सीन सच थिंग इन माई लाइफ“
जवाब में मुन्ना ने इतिहास में अमर होनेवाला डायलॉग मारा “ लाइफ में बहुत कुछ फर्स्ट टाइम इच होता है, मामू। अब तो आदत डाल ले।“
तो महान देश ने चंट संस्कृति की आदत डाल ली। मुझे पढ़ने वालों में कई लोग देशी हिंदी ठीक से नहीं समझते हैं, उनके लिए बताता चलूं कि चंट का मतलब स्ट्रीट स्मार्ट होता है। चंट वो लोग होते हैं, जो सड़क पर तीन पत्ती खिलवाकर राहगीरों को ठग लेते हैं या माता और बहनों से मीठा-मीठा बोलकर रस्ते का माल इतने सस्ते में टिका देते हैं कि वो घर पहुंचते ही बहुत महंगा हो जाता है। अब आते हैं मूल मुद्दे पर।
राजनीतिक चंटपना वो होता है, जब आप एक वादा करते हैं तो वो मास्टर स्ट्रोक होता है और तीन दिन बात जब उस वादे से मुकरते हैं तो उससे भी बड़ा मास्टर स्ट्रोक होता है। चंटपना वो होता है कि जब आपकी चोरी पकड़ी जाये और आवाज़ें उठनी शुरू हो तो आप हुँआ-हुआँ करने वालों की ऐसी भीड़ खड़ी कर दें कि बाकी आवाज़ें दब जायें।
देश में सबकुछ चंटपने से चल रहा है लेकिन आप सोच रहे हैं कि केवल चंटप्रधान ही ऐसा कर रहे हैं तो आप गलत हैं। संस्कृति उनकी दी हुई है लेकिन अमल हर कोई कर रहा है। ताजा उदाहरण क्रिकेट का है। थोड़ी देर के लिए भावनाबेन को किनारे बैठने के लिए कहिये और बात समझिये। किसी बहुराष्ट्रीय टूर्नामेंट में भारत-पाकिस्तान के खिलाड़ी मैदान पर एक-दूसरे टकरा गये तो कौन सी आफत आ गई! सीमा पार आतंकवाद पाकिस्तान स्टेट स्पांसर्ड है, किसी खिलाड़ी या आम नागरिक का नहीं। 
अगर हर जगह बायकॉट का तर्क अपनाया गया तो फिर भारत को ऐसे किसी अंतरराष्ट्रीय मंच पर नहीं जाना चाहिए जहां पाकिस्तान मौजूद हो। अगर भावना बेन और जोर मारेंगी तो फिर कोई यह भी कह सकता है कि मैं नॉर्थ वेस्ट फेसिंग वाले फ्लैट में नहीं रहूंगा क्योंकि उधर पाकिस्तान है। अगला कदम ये हो सकता है कि जो बिल्डर नॉर्थ वेस्ट फेसिंग फ्लैट बनाये, देशद्रोही करार देते हुए उसके दफ्तरों पर हमला बोल दो।
कहने का मतलब ये कि पाकिस्तान के साथ एशिया कप में खेलना कोई बहुत अतार्तिक फैसला नहीं था। फिर इसका इतना भारी विरोध क्यों हुआ? एकमात्र कारण चंटप्रधान का चंटपना है। उन्होंने हरेक देशवासी के दिमाग में गर्म-गर्म सिंदूर इंजेक्ट किया ताकि भावना बेन माथे पर चढ़कर बिहार का चुनावी बेड़ा पार करवा दें। जब जनता भावुक होगी तो उसका प्रदर्शन हर जगह करेगी। दुनिया में ऐसा कोई फॉर्मूला नहीं है जिससे भड़काई गई जनभावना का सलेक्टिव तरीके से केवल लाभ के लिए इस्तेमाल किया जा सके। 
पाकिस्तान के खिलाफ खेलने को लेकर मासूम जनता की भावना उबाल मार रही थी। लेकिन बहुत से ऐसे लोग भी ये जानते बूझते उबल रहे थे कि इसमें विरोध लायक कोई बात नहीं है। 
चंटपने का विस्तार इसी को कहते हैं, जब ये सरकार से होता हुआ विपक्ष और समझदार नागरिकों तक भी पहुंच जाये। चोट्टा गोसाई चंटपने के शिखर पर खड़े होकर पूर्व क्रिकेटरों और विपक्षी नेताओं को जोर-जोर से ललकारता रहा कि तुम चुप क्यों हो।  गोसाई जानता है कि अगर इस शैली में अगर उसने सरकार को ललकारने की हिमाकत की तो तशरीफ इस तरह लाल कर दी जाएगी कि रखने के काबिल नहीं रहेगी। 
पहलगाम पर जब आतंकवादी हमला हुआ तो चंटप्रधान का रियेक्शन ऐसा था, जैसे कोई लॉटरी लगी हो। विदेशी दौरा बीच में छोड़कर सीधा चुनावी राज्य बिहार पहुंचे और अंग्रेजी में वहां से पाकिस्तान को शट-अप कहा। अपने जैसा हर मुल्क प्रोसेस ओरिएंटेड होता है। अगर कोई अपराध होता है, तो उसकी जांच होती है। मीडिया के ज़रिये पब्लिक को बताया जाता है कि प्रगति क्या है। 
मुंबई पर हुए हमले के दौरान भारत सरकार की तरफ से की गई कागजी कार्रवाई का खूब मजाक उड़ा। डोजिएर `डिप्लोमैसी खेलने’ को लेकर तात्कालिक प्रधानमंत्री को आड़े हाथों लिया गया। अगर वो डॉजिएर ना होता तो फिर हैडली का प्रत्यर्पण भी नहीं हो पाता। खैर अब देश में चंटतंत्र है, जहां सबकुछ सिंगल विंडो से चटपट हो जाता है।
सर्वदलीय बैठक हुई चंटप्रधान उसमें नहीं आये। विपक्ष के किसी भी नेता ने कोई तार्किक सुझाव नहीं दिया क्योंकि वे जानते थे कि ऐसा कोई सुझाव मिलते ही चंटप्रधान उसे दोनों हाथों लपक लेंगे और कश्मीर से कन्याकुमारी तक दौड़-दौड़कर बताएं कि आपोजिशन वालों की फटी पड़ी थी लेकिन मैंने कहा कि मैं तो घुसके मारूंगा।
इसलिए विपक्ष ने चंटपने के नहले पे दहला जड़ते हुए नारा बुलंद कर दिया—“पटक के मारिये, गिराकर मारिये, उल्टा टांग दीजिये, पाकिस्तान के दो नहीं चार टुकड़े कर दीजिये, हम आपके साथ हैं।“  
न्यूज चैनलों ने दावा किया कि सेना कराची तक पहुंच गई है तो डिमांड उठने लगी कि क्वेटा भी ले आइये। फिर चंट प्रधान ने घोषणा कि पाकिस्तान थर-थर कांपने लगा तो मुझे दया आ गई और मैंने कह दिया—जा जी ले अपनी जिंदगी।
चंट प्रधान से चंटपना सीखने वाले विरोधी चिल्लाने लगे---“राजनीतिक विरोधियों पर छापे डलवाते, ब्लैकमेल करते, वॉशिंग में नहलाते और पार्टी तुड़वाते वक्त आपको दया नहीं आती लेकिन पाकिस्तान पर आती है। बिरयानी का नमक आप अब तक अदा कर रहे हैं।“
चंटप्रधान दुनिया के सबसे बड़े महाचंट ट्रंप के सामने फंस गये। नंबरी चंट पर दस नंबरी चंट भारी पड़ा। 29 बार सीजफायर की बात कहकर उसने चंटप्रधान की घरेलू जमीन कमजोर कर दी। चंटप्रधान क्या करें, आगे कुँआ पीछे खाई। झक मारकर उन्होंने अपनी घरेलू जमीन बचाने का फैसला किया और इसकी कीमत देश ने 50 प्रतिशत के यूएस टैरिफ से चुकाई।
चंट चिंतन के लाभ यहीं रूके। देश को उस चीन के सामने घुटने टेकने पड़े जो पाकिस्तान का माई-बाप है। एक तरफ शी जिनपिंग है, दूसरी तरफ नंबरी हरामी ट्रंप और इन दोनों के बीच ताता-थैया करते हमारे चंट प्रधान जी।
जब राष्ट्रीय संकट होता है तो विपक्षी दलों की मदद ली जाती है। लेकिन चंटप्रधान यहां भी चंटपना कर गये। परंपरा के उलट पार्टियों ने उनके प्रतिनिधियों के नाम नहीं मांगे बल्कि पार्टी तोड़ने वाले अंदाज़ में नाम खुद तय किये। थरूर ने चंटपना दिखाया तो कांग्रेस ने उससे ज्यादा चंटपना दिखाते हुए पूरे मामले को अंडर प्ले किया। अगर थरूर निकाले जाते तो शहीद का तमगा मिलता और गाजे-बाजे के साथ बीजेपी एंट्री करते अब मन मसोसकर कभी कांग्रेस की जय तो कभी चंटप्रधान जिंदाबाद कर रहे हैं।
चंट संस्कृति अब राष्ट्रीय संस्कृति हो चुकी है। जो लोग चंटप्रधान के पैंतरों का उन्हीं की भाषा में जवाब देने पर लहालोट होते हैं, वो भूल जाते हैं कि ये देश नैतिक रूप से किस कदर खोखला होता जा रहा है। अब यहां हर कोई जनभावनाएं देखता है। चालूपना करने वाले को उसी के खेल में उझला देने से खुश होकर तालियां पीटता है लेकिन सच नहीं बोलता। इस बदलाव की कीमत पूरा देश चुका रहा है और हमारी आनेवाली पीढ़ियां भी चुकाएंगी।
(वरिष्ठ पत्रकार राकेश कायस्थ के फेसबुक पेज से साभार )