भारतीय क्रिकेट इतिहास के सबसे कामयाब कप्तान
महेंद्र सिंह धोनी इत्तेफाक से आईपीएल में सबसे कामयाब कप्तान नहीं हैं क्योंकि
रोहित शर्मा ने आईपीएल ट्रॉफ़ी उनसे ज़्यादा जीती है। लेकिन, आईपीएल 2020 का साल धोनी के शानदार कप्तानी इतिहास के लिहाज से बिल्कुल निराश करने वाला रहा है। यह पहला मौक़ा है जब उनकी टीम चेन्नई सुपर किंग्स प्ले-ऑफ़ यानी टॉप 4 टीमों में अपनी जगह नहीं बना पायी। और ऐसा दर्जन भर मैच खेलने के बाद भले ही आधिकारिक तौर पर तय हुआ हो लेकिन ख़ुद धोनी ने सफेद झंडा 10वें मैच के बाद ही दिखा दिया था। यह बात धोनी की शख्सियत से मेल नहीं खाती है लेकिन भले ही यह विरोधाभास लगे पर पूर्व भारतीय कप्तान से ज़्यादा यथार्थवादी खिलाड़ी भी कोई नहीं।
धोनी को पहले से ही यह पता था कि कोरोना महामारी के चलते अगर कोई टीम सबसे ज़्यादा मुश्किल का सामना करेगी तो वो उनकी टीम होती और हुआ भी यही। धोनी की टीम के ज़्यादातर मैच-विनर 35 साल की उम्र को पार कर चुके हैं और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में सक्रिय भी नहीं थे। चाहे वो शेन वॉटसन हों या फिर ख़ुद धोनी। हरभजन सिंह और सुरेश रैना के टूर्नामेंट में शुरुआत से पहले ही हटने से झटका तो लगा लेकिन धोनी ने जिस तरह से निराशाजनक अंदाज़ में, उदासीन रवैये से टीम को लीड किया, ख़ासकर चेज़ करने वाले मैचों में वो बड़ा अजीब लगा। आख़िर, धोनी तो वो खिलाड़ी हैं जिन्होंने भारतीय क्रिकेट में चेज़ करने का एक नया व्याकरण गढ़ा। धोनी हर मैच के बाद बहाने ढूंढते दिखे, किसी को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से दोष देने की कोशिश भी करते और कभी-कभी तो उन्होंने क़िस्मत का भी ज़िक्र किया जो उनकी आदत में शुमार नहीं है। इसलिए अगर
धोनी की आईपीएल कप्तानी या फिर खिलाड़ी के तौर पर भी अगर यह सूर्यास्त वाला साल रहा तो उनके करोड़ों चाहने वालों ने ऐसी मायूस विदाई की शायद कभी कल्पना भी नहीं की होगी।
कोहली के लिए जश्न वाला साल?
बहरहाल, अगर इस साल पूर्व भारतीय कप्तान धोनी का सूरज आईपीएल में ढलता नज़र आया तो 7 सालों में पहली बार मौजूदा भारतीय कप्तान
विराट कोहली अपनी कप्तानी से प्रभावित करते दिखे हैं। रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर की टीम लगातार पहले तीन टीमों में अपनी जगह बनाती दिखी और प्ले-ऑफ़ में भी उनका पहुँचना लगभग तय दिख रहा है। इस आईपीएल से पहले कोहली को शायद ऐसा लगता था कि कई बार ऐसा लगा कि सिर्फ़ अपने बल्ले के दम पर ही वो एक आईपीएल ट्रॉफ़ी जीत सकते हैं लेकिन उनकी यह सोच भी फ़ेल ही हुई। मैच जिताने के लिए एक बल्लेबाज़ कई बार अपने दम पर तसवीर बदल देता है लेकिन अक्सर ये गेंदबाज़ या फिर गेंदबाज़ी आक्रमण का ही कमाल होता है जिसके चलते टीमें टूर्नामेंट जीतती हैं। रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर के पास कोहली और एबी डी विलियर्स जैसे महानतम बल्लेबाज़ों की मौजूदगी के बावजूद यह टीम हमेशा मायूस ही करती रही है। कोहली ने भी देर से ही सही लेकिन यह अब महसूस किया कि आईपीएल में धुरंधर बल्लेबाज़ों नहीं बल्कि विविधता वाले एक सटीक आक्रमण के बूते ही भीड़ से अलग दिखा जा सकता है।
इस साल अगर कोहली की टीम ने बेहतरीन उम्मीदें जगायी हैं तो इसके लिए बल्लेबाज़ी नहीं बल्कि युजवेंद्र चहल, वाशिंगटन सुंदर जैसे पावर-प्ले के बेहतरीन गेंदबाज़ हैं और साथ ही क्रिस मौरिस और नवदीप सैनी जैसे तेज़ गेंदबाज़ भी जो डेथ ओवर्स की समस्या को सुलझाते हैं।
रोहित शर्मा तो हैं ही सदाबहार
किसी महान कप्तान की सबसे बड़ी ख़ूबी होती है टीम में अपनी ही शख़्सियत को ही ख़त्म कर देना। कहने का मतलब यह है कि अगर आपकी टीम बल्लेबाज़ी और कप्तानी के मोर्चे पर पूरी तरह से आप पर ही निर्भर ना होकर आत्म-निर्भर हो चुकी है तो इसका मतलब है कि आपने एक अच्छी विरासत तैयार कर डाली है।
रोहित ने इस साल कप्तानी में कुछ नया और अनूठा नहीं किया बल्कि वही करते आये जो उनकी आदत है।
जैसे ही रोहित अनफिट हुए तो किरॉन पोलार्ड ने कप्तानी का ज़िम्मा उसी सहज तरीक़े से उठा लिया जैसे ओपनर के तौर पर उनकी कमी को दूसरे बल्लेबाज़ों ने पूरा किया। यही रोहित की कप्तानी की सबसे बड़ी बात है जिससे ना तो धोनी और ना ही कोहली कभी भी उनके पास आ सकते हैं।
‘मुंबई स्कूल ऑफ़ कैप्टेंसी’ का असर दिल्ली में भी
लेकिन, भारतीय क्रिकेट ने इस साल भविष्य के दो नये कप्तानों की झलक भी देखी है। देलही कैपिटल्स के लिए श्रैयस अय्यर ने पिछले साल ही सराहनीय खेल दिखाया था और इस बार तो उनकी टीम ने शुरू से ही अपना दबदबा बनाया। आलम यह रहा कि अय्यर को न तो आईपीएल इतिहास के सबसे कामयाब स्पिनर अमित मिश्रा के टूर्नामेंट से बाहर होने पर कोई फर्क पड़ा और ना ही इशांत शर्मा जैसे अनुभवी गेंदबाज़ के जाने से। अय्यर ने रिकी पोटिंग जैसे धुरंधर कोच के साथ मिलकर एक ऐसी रणनीति बनायी है जिससे कि ऐसा पहली बार लग रहा है कि 13 सीजन में वो फ़ाइनल में पहुँच सकते हैं और सब ठीक रहा तो चैंपियन भी बन सकते हैं। अय्यर ने अपनी संयमित बल्लेबाज़ी से कई बार रोहित तो कई बार धोनी की झलक दिखायी है तो कप्तानी के मोर्चे पर अपने ही मुंबई के साथी खिलाड़ी रोहित की शैली का असर उन पर ज़्यादा देखने को मिल सकता है।
के एल राहुल
बहरहाल, अगर नये कप्तान के तौर पर किसी एक भारतीय ने ज़बरदस्त तरीक़े से छाप छोड़ी है तो वो हैं किंग्स इलेवन पंजाब के कप्तान के एल राहुल। कप्तानी और विकेटकीपिंग की तिहरी ज़िम्मेदारी ने राहुल को और भरोसेमंद खिलाड़ी बनाया है। आईपीएल 2020 में उनसे ज़्यादा रन किसी ने नहीं बनाये हैं और शायद कोई बना भी नहीं पाये। टूर्नामेंट के पहले हाफ़ में 7 मैचों में राहुल की टीम ने सिर्फ़ 1 मैच जीता और कई मौक़े पर दबाव वाले लम्हों में उनकी टीम टूटती हुई नज़र आयी लेकिन कर्नाटक के इस खिलाड़ी ने हिम्मत नहीं हारी।
कर्नाटक के ही और टीम इंडिया के पूर्व कप्तान और कोच अनिल कुंबले के साथ मिलकर राहुल ने अपनी टीम को विपरीत परिस्थितियों से जूझते हुए वापसी करने का मंत्र ऐसा पढ़ाया कि उनकी टीम ने लगातार 5 मैच जीते जिसमें टूर्नामेंट की टॉप तीनों टीमों के ख़िलाफ़ एक के बाद एक हैट्रिक जीत भी शामिल है।
कार्तिक हुए कप्तानी रेस में रन-आउट
हाँ, इन तमाम कामयाबी और निराशा की कहानियों के बीच एक भारतीय कप्तान को अजीब तरीक़े से आईपीएल के बीच में कप्तानी छोड़नी पड़ी। दिनेश कार्तिक यूँ तो कभी भी शानदार कप्तान नहीं थे लेकिन जिस तरह से टूर्नामेंट के बीच में उन्हें मजबूरन कुर्सी खाली करनी पड़ी उससे कई जानकारों को यह बात सही नहीं लगी।
कौन होगा कामयाब?
बहरहाल, ऐसा लगता है कि पहली बार प्ले ऑफ़ 4 में भारतीय कप्तानों वाली ही टीमें आईपीएल अंक-तालिका में नज़र आयें और ऐसे में हर हाल में दो भारतीय कप्तान ही आपको फ़ाइनल में भिड़ते दिखें। और फिर जाहिर सी बात है कि चैंपियन भी बनते दिखें। अगर रोहित शर्मा फिट नहीं होते हैं और पोलार्ड की अगुवाई में मुंबई इंडियंस 5वीं बार ख़िताब जीतती है तभी आईपीएल 2020 में स्थानीय कप्तानों के दबदबे वाले सीज़न का अंत एंटी-क्लाइमैक्स के तौर पर हो सकता है लेकिन अगर किस्मत ने ज़रा भी कोहली, राहुल या अय्यर का साथ दिया तो ना सिर्फ़ पहली बार एक नई टीम आईपीएल में चैंपियन बनेगी बल्कि एक नया भारतीय कप्तान भी आईपीएल में कामयाबी के सिलसिले का पहला अध्याय लिखेगा।