नये क़ानूनों से लोग आंदोलित क्यों हैं?
कृषि क़ानून, सीएए जैसे अधिकतर क़ानूनों के ख़िलाफ़ जबरदस्त आंदोलन क्यों हो रहे हैं? क्या क़ानून बनाने या सुधार करने से पहले पर्याप्त चर्चा नहीं हो रही है? पहले संशोधन विधेयक संयुक्त समितियों को भेजे जाने का चलन था, क्या अब वैसा हो रहा है?