गुजरात समाचार अख़बार के मालिक की गिरफ्तारी को लेकर मीडिया संगठनों ने प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला बताया है। क्या यह मामला सत्ता के आलोचकों को दबाने की कोशिश है? जानिए पूरे विवाद को और प्रतिक्रियाएं।
तेलंगाना में दो महिला पत्रकारों की गिरफ्तारी से कांग्रेस सरकार की ‘बोलने की आजादी’ की नीति पर सवाल खड़े हो गए हैं। क्या यह प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला है? जानें पूरी रिपोर्ट।
आज़ाद मीडिया पर जिस तरह कार्रवाई की जा रही है, क्या वह देश के लिए ख़तरा है? क्या यह किसी राष्ट्र को किसी बड़े खतरे में पड़ने से रोकने वाली एक अहम कड़ी नहीं होती है?
न्यूज़क्लिक के दफ्तर और इससे जुड़े पत्रकारों-लेखकों के ख़िलाफ़ छापों को लेकर पत्रकार संगठनों ने गहरी चिंता जताई है। जानिए इन्होंने क्या कहा है।
अमेरिका की राजकीय यात्रा पर गए भारत के प्रधानमंत्री मोदी के सामने क्या अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन भारत में प्रेस की आज़ादी का मुद्दा उठा पाएँगे? जानें मीडिया संघ ने क्या आह्वान किया।
मीडिया की स्वतंत्रता के बिना क्या किसी भी देश में लोकतंत्र की कल्पना की जा सकती है? यदि वह लोकतंत्र कहा भी जाए तो क्या उसकी जीवंतता बनी रह सकती है? जानिए सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने क्या कहा।
जेल में बंद पत्रकार सिद्दीक कप्पन की नौ साल की बेटी ने 15 अगस्त 2022 को जो भाषण दिया है, वो मंगलवार को सोशल मीडिया पर वायरल हो गया।
मोहम्मद जुबैर के मामले में जर्मनी ने कहा है कि वो इस मामले पर बारीकी से नजर रख रहा है। जर्मनी ने यह भी साफ कर दिया है कि वो लिखने-बोलने वाले पत्रकारों की गिरफ्तारी के खिलाफ है। जानिए पूरी बात।
क्या आज़ादी की बात करना बग़ावत है और आज़ादी की माँग करना देशद्रोह? भूख, भ्रष्टाचार, अशिक्षा और शोषण से आज़ादी मांगना क्या गुनाह है?
वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ के ख़िलाफ़ दर्ज कराई गई एफ़आईआर पर एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया ने आपत्ति दर्ज कराई है।
कोरोना संकट के दौर में मीडिया की भूमिका कैसी है? मीडिया क्या वाजिब सवाल उठा रहा है? दुनिया के एक सौ अस्सी देशों में प्रेस की आज़ादी को लेकर हाल ही में जारी रैंकिंग में भारत 142वें क्रम पर पहुँच गया है।
एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया ने दिल्ली पुलिस द्वारा अंग्रेजी अख़बार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के स्पेशल कॉरेस्पोन्डेन्ट महेंद्र सिंह मनराल को धमकाने की कड़ी आलोचना की है।
महाराष्ट्र में क्या प्रेस की आज़ादी पर कुठाराघात हो रहा है? क्या मीडिया कर्मियों पर उद्धव ठाकरे सरकार नाजायज दबाव डाल रही है? या क्या लोगों की सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति पर भी पहरा लगा दिया गया है?
मीडिया समाज के ज़रूरी मुद्दों को उठाने के बजाय अंधविश्वास फैलाने और सरकार की चाटुकारिता करने में व्यस्त है। ऐसे में क्या वह किसी आज़ादी का हक़दार है?