प्रधानमंत्री मोदी बेशक भारत के सबसे लोकप्रिय नेताओं में हैं। लेकिन विदेश में किसी प्रधानमंत्री को लोकप्रिय बनाने में उस देश के विदेश मंत्री और विदेश मंत्रालय की बहुत बड़ी भूमिका होती है। इस मामले में विदेश मंत्री एस. जयशंकर पिछड़ रहे हैं। यह मानना है वरिष्ठ पत्रकार और लेखक प्रभु चावला का। हालांकि उनका यह अपना नजरिया है।
गडकरी का हटाना क्या मोदी के लिये ज़रूरी था? क्या नितिन की राजनीति ख़त्म? क्या वो मंत्री पद से भी हटाये जायेंगे? योगी को क्यों नहीं मिली बोर्ड में जगह? और क्या है बीजेपी का भविष्य? आशुतोष ने की New Indian Express के Editorial Director प्रभु चावला से बात।
यूपी में तीन चरण के चुनाव के बाद किस दिशा में जा रहा है चुनाव ? क्या योगी बनायेंगे सरकार या अखिलेश वापस आ रहे हैं ? आशुतोष ने मशहूर संपादक प्रभु चावला से बात की ।
यूक्रेन में रूसी हमले की आशंका क्यों जताई जा रही है? क्या युद्ध का उन्माद जानबूझकर पैदा किया जा रहा है? आख़िर दुनिया की कुल कमाई के हर सौ डॉलर में से लगभग तीन डॉलर सेना पर क्यों खर्च होता है?
देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की मौजूदा स्थिति के लिए कौन ज़िम्मेदार है? इसकी मज़बूती क्या है और किस ताक़त के दम पर यह पार्टी पुनर्जीवित हो सकती है?
पाँच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं तो मौजूदा राजनीति का रुख कैसा है? क्या राजनीतिक विचारधाराएँ मायने रखती हैं और क्या इस पर राजनीतिक विमर्श हो रहा है?
क्या आनाकानी करने वाले और सुस्त व चापलूस कोरोना विशेषज्ञों की वजह से केंद्र सरकार कोरोना से निपटने में धीमे चल रहा है और क्या इससे नरेंद्र मोदी को राजनीतिक नुक़सान होगा?
सुस्त बैठी अफ़सरशाही को क्या तेज़ी से काम करने को मजबूर कर रही है मोदी सरकार, क्या अब फ़ैसले ऊँचे स्तर पर लिए जा रहे हैं?
बीजेपी संसदीय बोर्ड में कई पद खाली हैं, सीवीसी, न्यायपालिका, अफ़सरशाही में कई पद खाली पड़े हैं, पर नरेंद्र मोदी या जे. पी. नड्डा को योग्य लोग नहीं मिल रहे हैं।
बीजेपी जिस तरह हर तरह की असहमति को कुचलने की कोशिश करती है, उसकी स्थिति कमज़ोर होती जा रही है। यह उसके ख़िलाफ़ जाएगा और बहुत नुक़सान पहुँचाएगा।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में वामपंथी विचारधारा और राष्ट्रीय चेतना के बीच जंग की वजह से हो रहा है टकराव?
नरेंद्र मोदी ने 5 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था भारत को बनाने का जो सपना देखा है, वह पूरा हो सकता है। पर कैसे?
प्रधानमंत्री मोदी 'न्यू इंडिया' की बात करते हैं। क्या उसमें किसानों की आय दुगुनी होगी? ब्यूरोक्रेसी पर लगाम लगेगी? मीडिया का डर दूर होगा? देखिए इन सवालों पर सत्य हिंदी के लिए 'प्रभु की टेढ़ी' बात।
एक देश एक चुनाव' से ख़त्म होगा संघीय ढाँचा? जुड़िए वरिष्ठ पत्रकार प्रभु चावला के साथ।
क्या वंशवाद की वजह से विपक्षी पार्टियाँ लोकसभा चुनाव में बुरी तरह हारीं? हमारे कार्यक्रम 'प्रभु की टेढ़ी बात' में सुनिए वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष के साथ दिग्गज पत्रकार प्रभु चावला को।
चुनावों के पहले राजनीतिक नारे उछालना आम बात है, पर बीते कुछ सालों से जिस तरह ध्रुवीकरण को ध्यान में रख कर विभाजनकारी नारे उछाले गए हैं, क्या उससे लोकतंत्र मजबूत होगा?
फ़िल्मों के प्रति बढ़ते आकर्षण और चुनावों में सिने स्टारों के बढ़ते प्रयोग से राजनीतिक सिद्धातों की प्रासंगकिता लगातार कम हो रही है।
मुख्यधारा की तमाम राष्ट्रीय पार्टियाँ जीत के लिए दल-बदलुओं के सहारे हैं। इन पार्टियों के दिग्गज नेता विचारधारा के आधार पर पार्टी को मजबूत करने के बजाय किसी तरह जीत हासिल करने में लगे हैं।
ठीक चुनाव के समय लोकलुभावन नारे उठाने वाली पार्टियाँ दूसरे दलों के इसी तरह की घोषणाओं का मजाक उड़ाने में लगी हैं। क्या है मामला?
आज़ादी के बाद देश को सत्तर साल हो गये हैं, लेकिन इसके नेता एक किशोर की भाषा बोलते हैं। राष्ट्र व्यस्क हो गया है, लेकिन इसके नेता एक बुरे नौसिखिये की तरह आपस में लड़ते हैं।
बीजेपी के 'लौहपुरुष' लालकृष्ण आडवाणी का टिकट कट गया और वह पार्टी में दरकिनार कर दिये गये। क्या आडवाणी को ही अपनी ऐसी हालत के लिए ज़िम्मेदार माना जाना चाहिए। सुनिये, 'सच्ची बात' में प्रभु चावला को, वह क्या मानते हैं।
चुनाव की तारीख़ों का एलान हो गया है, जल्द ही तमाम राजनीतिक दल अपने-अपने घोषणा पत्र जारी करेंगे, लेकिन क्या वे देश की बुनियादी मुद्दों को उसमें शामिल करेंगे और जीतने पर उन्हें पूरा भी करेंगे?