यदि राजनीति में सफलता मापने का कोई मीटर हो तो उसकी जाँच निरन्तरता से ही की जा सकती है। कामयाब नेता अपने संरक्षण में सफल उत्तराधिकारियों को नेतृत्व देकर आगे बढ़ाने के बाद ही अपने पीछे लंबे समय तक चलने वाली विरासत छोड़ जाते हैं। राजनीतिक दल आदर्श रूप में नीतियों और सिद्धांतों से चलते हैं, व्यक्ति विशेष से नहीं, इसलिए नेताओं का अस्तित्व पार्टी से जुड़ने वाले नए सदस्यों पर निर्भर करता है, जो पार्टी का झंडा लेकर आगे बढ़ सकें। हालाँकि इन पार्टियों की अगुआई दिग्गज करते हैं, ये बड़े नेता अपने काडर में से सही उम्मीदवारों का चयन नहीं कर पाते हैं। वामपंथियों को छोड़ कर तमाम दल ऐसे लोगों को ख़रीद लाते हैं, जिनके जीतने की संभावना पार्टी की विचारधारा के प्रति उनकी निकटता से नहीं ताक़त, पैसे और उनके समुदाय पर पकड़ की वजह से होती है। भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों ही ज़मीनी स्तर पर लोगों को समझाने-बुझाने के बजाय दूसरे दलों से लोगों को तोड़कर लाने में अपनी ऊर्जा ख़र्च कर रहे हैं। विचारधारा मर चुकी है। व्यक्ति जिन्दाबाद!