समाजवादी पार्टी नेता आज़म खान जेल से बाहर आए। उनकी रिहाई से यूपी की सियासत में नई सरगर्मी और राजनीतिक समीकरणों पर असर देखने को मिल रहा है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट से ज़मानत मिलने के बाद समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता मोहम्मद आजम खान लगभग 23 महीने की कैद के बाद मंगलवार को सीतापुर जेल से रिहा हो गए। उनकी रिहाई के मौक़े पर सैकड़ों समर्थकों और पार्टी कार्यकर्ताओं ने जेल के बाहर उनका जोरदार स्वागत किया। अखिलेश यादव ने आजम खान की जेल से रिहाई का स्वागत किया और कहा कि समाजवादी पार्टी सरकार बनने पर उनके खिलाफ सभी 'फर्जी मामले' वापस ले लेंगे। आजम के जेल के बाहर आने के बाद यूपी की सियासत में हलचल तेज हो गई है। अटकलें हैं कि वह सियासी पाला बदल सकते हैं।
सियासी अटकलों पर बात बाद में, पहले यह जान लें कि मंगलवार को क्या घटनाक्रम चले। रिहाई में कुछ घंटों की देरी के बावजूद आजम खान के समर्थकों का उत्साह कम नहीं हुआ। आज़म ख़ान की रिहाई मंगलवार सुबह 9 बजे निर्धारित थी, लेकिन रामपुर में दर्ज एक मामले में 8,000 रुपये के जुर्माने का भुगतान न होने के कारण प्रक्रिया में देरी हुई। जेल सूत्रों के अनुसार, बेल बॉन्ड जमा करने के बाद उनकी रिहाई का रास्ता साफ हुआ और दोपहर के समय वह जेल से बाहर आए।
जैसे ही आजम खान अपनी खास सफेद कुर्ता-पायजामा और काले वास्कट में जेल के बाहर नज़र आए समर्थकों ने नारेबाजी और उत्साहपूर्ण स्वागत के साथ उनका अभिनंदन किया। उनके बड़े बेटे अदीब आजम खान भी जेल के बाहर मौजूद थे। अदीब ने पत्रकारों से बातचीत में कहा, 'आजम खान आज के हीरो हैं। मैं और उनके सभी समर्थक उनका स्वागत करने के लिए यहां मौजूद हैं। जो कुछ कहना है, वह मेरे पिता जेल से बाहर आने के बाद कहेंगे।' हालाँकि, आजम खान ने पत्रकारों से कोई बातचीत नहीं की और अपनी गाड़ी में सवार होकर सीधे रामपुर के लिए रवाना हो गए।
सुरक्षा और यातायात व्यवस्था
आजम खान की रिहाई के मद्देनजर सीतापुर जिला प्रशासन ने किसी भी अप्रिय घटना को रोकने के लिए कड़े इंतजाम किए थे। जेल के आसपास धारा निषेधाज्ञा लागू की गई थी। इसके बावजूद सैकड़ों समर्थकों और कार्यकर्ताओं की भीड़ जेल के पास जमा हो गई, जिसके कारण यातायात में व्यवधान उत्पन्न हुआ। पुलिस ने ड्रोन के जरिए निगरानी की और सुरक्षा व्यवस्था को और मजबूत किया।
कानूनी लड़ाई और जमानत
आजम खान के ख़िलाफ़ रामपुर और अन्य स्थानों पर 72 से अधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें से अधिकांश 2017 से 2019 के बीच दर्ज किए गए। हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 18 सितंबर 2025 को रामपुर के क्वालिटी बार भूमि अतिक्रमण मामले में उन्हें जमानत दी थी। इस मामले में आरोप था कि 2013 में कैबिनेट मंत्री रहते हुए आजम खान ने अपने परिवार के सदस्यों के नाम पर जमीन हड़प ली थी। कोर्ट ने जमानत देते हुए माना कि उनकी उम्र और जेल में बिताए गए लंबे समय को ध्यान में रखा जाना चाहिए। इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मामले में उनका नाम देरी से जोड़ा गया था और यह राजनीतिक प्रतिशोध से प्रेरित हो सकता है।
आजम खान के वकील मोहम्मद खालिद ने कहा, 'सभी मामलों में जमानत मिल चुकी है और अब कोई भी लंबित केस नहीं है जो उन्हें जेल में रख सके।' सपा के वकील इमरान उल्ला और खालिद ने कोर्ट में उनकी मजबूत पैरवी की, जिसके परिणामस्वरूप उनकी रिहाई का रास्ता साफ हुआ।
राजनीतिक भविष्य क्या होगा?
आजम खान की रिहाई ने उत्तर प्रदेश की सियासत में नई हलचल पैदा कर दी है। यह चर्चा जोरों पर है कि आजम खान समाजवादी पार्टी के नेतृत्व विशेष रूप से अखिलेश यादव से नाराज हैं। कुछ रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि उनका मानना है कि उनकी लंबी कैद के दौरान पार्टी की ओर से पर्याप्त समर्थन नहीं मिला। कुछ खबरों में यह भी दावा किया गया कि आजम खान बहुजन समाज पार्टी में शामिल हो सकते हैं।
कुछ दिनों से यह चर्चा थी कि आजम परिवार के कुछ सदस्यों ने दिल्ली में मायावती से मुलाकात की है। यह भी दावा किया गया कि आजम परिवार के अहम सदस्य ने कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा से भी फोन पर बात की थी। तो क्या आजम सपा से किनारा करेंगे?
हालाँकि, सपा नेता शिवपाल सिंह यादव ने इन अटकलों को खारिज करते हुए कहा, 'यह सब झूठ है। समाजवादी पार्टी पूरी तरह से आजम खान के साथ है।'
शिवपाल सिंह यादव ने योगी आदित्यनाथ सरकार पर आजम खान के खिलाफ फर्जी मुकदमे दर्ज करने का आरोप लगाया और कहा, 'आजम खान को गलत तरीके से फंसाया गया था। कोर्ट के फैसले ने उन्हें राहत दी है, और हम इसका स्वागत करते हैं।'
आजम खान का कितना असर?
आजम खान समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेताओं में से एक हैं और रामपुर की सियासत में उनका खासा प्रभाव रहा है। वह सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के करीबी सहयोगी रहे हैं और चार दशकों तक पार्टी के प्रति वफादार रहे। हालांकि, उनकी कानूनी उलझनों और खराब स्वास्थ्य ने पिछले कुछ वर्षों में उनकी सक्रिय राजनीति को प्रभावित किया है। जानकारों का मानना है कि उनकी रिहाई से रामपुर और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा को मजबूती मिल सकती है, लेकिन उनकी अगली राजनीतिक चाल पर सबकी नजरें टिकी हैं।
आजम खान की रिहाई न केवल उनके समर्थकों के लिए एक बड़ी राहत है, बल्कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में भी एक महत्वपूर्ण घटना है। उनकी वापसी से सपा में नई ऊर्जा का संचार हो सकता है, लेकिन बसपा में शामिल होने की अटकलों ने सियासी गलियारों में चर्चा को और गर्म कर दिया है।