दलित चिंतक प्रो रविकांत पर एक बार फिर हमला । उनकी शिकायत पर तो पुलिस ने कार्रवाई नहीं की, उल्टे उनके ख़िलाफ़ ही एफ़आईआर दर्ज कर ली गयी । क्या वाणी की स्वतंत्रता पर हमला लोकतंत्र पर हमला नहीं है ?
पत्रकारिता में एक लंबी पारी और राजनीति में 20-20 खेलने के बाद आशुतोष पिछले दिनों पत्रकारिता में लौट आए हैं। समाचार पत्रों में लिखी उनकी टिप्पणियाँ 'मुखौटे का राजधर्म' नामक संग्रह से प्रकाशित हो चुका है। उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकों में अन्ना आंदोलन पर भी लिखी एक किताब भी है।