एक बार फिर हमारे न्यायाधीश हमें बता रहे हैं कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता को अभूतपूर्व ख़तरा है। शनिवार, 20 अप्रैल को तीन सदस्यीय पीठ की एक असाधारण बैठक हुई। सुनवाई के बारे में न्यायालय की ओर से जारी नोटिस में कहा गया कि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता से सम्बंधित एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक मसले को लेकर थी। शनिवार, छुट्टी के रोज़ भारत के मुख्य न्यायाधीश सहित दो और न्यायमूर्तियों के इस पीठ के बैठने से कुछ वैसी ही सनसनी फैलनी चाहिए थी, जैसी पिछले वर्ष चार न्यायाधीशों की असाधारण प्रेस कॉन्फ़्रेन्स से हुई थी। वह भी देश की जनता को जनतंत्र के समक्ष उठ खड़े हुए असाधारण ख़तरे से सावधान करने के लिए थी। लेकिन शनिवार की सुनवाई, तुरंत ही मालूम हो गया कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर आसन्न किसी आपदा की चिंता से नहीं, बल्कि उच्चतम न्यायालय की एक पूर्व कर्मचारी द्वारा मुख्य न्यायाधीश पर लगाए गए आरोपों के प्रकाशित हो जाने के चलते उनकी प्रतिष्ठा पर आई आँच से उन्हें बचाने की फ़िक्र के कारण की जा रही थी।