29 अप्रैल को जहाँ मतदान होनेवाला है, वहाँ प्रचार बंद हो गया। रात एक मित्र का फ़ोन आया। दूर अमेरिका से। पहला सवाल था, कन्हैयाजी जीत तो रहे हैं न? पूछनेवाले भूमिहार न थे। हिंदू भी नहीं थे। पहले भी उनका फ़ोन आता रहा था। उसी तरह भारत के दूसरे शहरों से, पुणे, देवास, रायगढ़, भोपाल, लखनऊ या और भी शहरों से, इसी उत्सुक प्रश्न के साथ। दूसरे देशों से भी इस सवाल के साथ कि कैसे कन्हैया की मदद की जा सकती है!
चुनाव हारें या जीतें, बेगूसराय के इम्तिहान में कन्हैया पास
- वक़्त-बेवक़्त
- |
- |
- 29 Apr, 2019

दिल्ली से अपने कामों से छुट्टी लेकर लोगों को बेगूसराय जाते देखा। सब ऐसे गए जैसे बेगूसराय में उनका कुछ बहुत क़ीमती दाँव पर लगा हो। इससे तो यही लगता है कि चुनाव परिणाम कुछ भी हो, लेकिन बेगूसराय के इम्तिहान में कन्हैया पहले ही पास हो गये हैं।
दिल्ली से अपने कामों से छुट्टी लेकर लोगों को बेगूसराय जाते देखा। अमूमन लोग छुट्टियाँ बचा-बचा कर ख़र्च करते हैं। लेकिन कन्हैया के लिए प्रचार करने को छात्र, शिक्षक, प्रकाशक, संपादक बेगूसराय जाते देखे गए। इनमें से कोई-कोई ही कन्हैया से परिचित हो। लेकिन सब ऐसे गए जैसे बेगूसराय में उनका कुछ बहुत क़ीमती दाँव पर लगा हो। या जैसे वहाँ कोई यज्ञ हो रहा हो, जिसमें उनकी आहुति अनिवार्य थी। पवित्रता के भाव के लिए अब तक हमारे पास धार्मिक रूपक ही हैं, पिछला वाक्य लिखने के बाद मैंने सोचा। लेकिन कन्हैया के चुनाव प्रचार में लोगों ने इसी भावना से हिस्सा लिया जैसे ऐसा न करने से वे किसी पुण्य से वंचित रह जाएँगे।