2014 के बाद के हिंदुत्ववादी भारत में भाषा के कारोबार के इतिहास में जेल साहित्य का महत्त्वपूर्ण स्थान होगा। जेल-साहित्य से मुराद अपने जेल जीवन के बारे में क़ैदियों के द्वारा लिखी गई किताबों या लेखों से है।आप चाहें तो कविताओं को भी जोड़ लें। सरकार दावा कर सकती है कि बुद्धिजीवियों को जेल में डालकर उसने वह भाषा पर उपकार किया है वरना इतने समृद्ध अनुभव हमें और आपको और किस तरह मिलते।पिछले 10 सालों में सरकारों ने अध्यापकों, शोधार्थियों, छात्रों, लेखकों और बुद्धिजीवियों को अलग-अलग मामलों में जेल में डाला है। न्यायपालिका ने भी सहयोग किया। उन्हें जमानत न दे कर अदालतों ने उनके जेल जीवन को लंबा किया। सरकार और अदालत की मदद से इन सबको सालों जेल में रहने और उन्हें ध्यान से देखने का मौक़ा मिला । उसका नतीजा किताबों की शक्ल में धीरे धीरे सामने आ रहा है।
भारत के कथित अर्बन नक्सलों पर ज़रूरी किताब है 'द सेल एंड द सोल'
- वक़्त-बेवक़्त
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- 3 Nov, 2025

2014 के बाद का जेल साहित्य धीरे-धीरे सामने आ रहा है। सोशल एक्टिविस्ट आनंद तेलतुम्बड़े ने 31 महीने जेल में काटे। उनकी किताब 'द सेल एंड द सोल' कथित 'शहरी नक्सली' कहे जाने वालों के खिलाफ व्यवस्थागत अन्याय की कहानी है। किताब पर स्तंभकार अपूर्वानंद की टिप्पणीः

सोशल एक्टिविस्ट आनंद तेलतुंबड़े























