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बंगालः राजनीतिक मोहरा बन रहे अफ़सर

पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और सत्ता के सबसे बड़े दावेदार के तौर पर उभरी भारतीय जनता पार्टी के बीच लगातार तेज़ होती राजनीतिक शतरंज की बाज़ी में राज्य काडर के आईपीएस अधिकारी मोहरा बनते जा रहे हैं। दोनों राजनीतिक दलों के बीच जारी खींचतान और अहं के टकराव का खामियाजा इन अधिकारियों को भुगतना पड़ रहा है। ताज़ा विवाद बीजेपी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा के काफिले पर बीते सप्ताह हुए हमले के बाद उभरा है। जिस दक्षिण 24-परगना ज़िले में उक्त हमला हुआ वहाँ सुरक्षा के लिए ज़िम्मेदार तीन वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों को केंद्र ने डेपुटेशन पर बुला लिया है।

केंद्र का यह आदेश नड्डा पर हमले के दो दिन बाद ही आया था। लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इन तीनों अधिकारियों को रिलीज करने से इंकार कर दिया है। तृणमूल कांग्रेस सांसद और एडवोकेट कल्याण बनर्जी ने इस मुद्दे पर केंद्रीय गृह सचिव को एक कड़ा पत्र भेज कर इसे बदले की भावना से की गई कार्रवाई क़रार दिया है। दूसरी ओर, इस बढ़ती तनातनी के बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को 19 दिसंबर को दो-दिवसीय दौरे पर कोलकाता पहुँचना है। इससे टकराव और तेज़ होने का अंदेशा है।

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नड्डा पर हमले के अगले दिन ही केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस मामले में राज्य के मुख्य सचिव आलापन बनर्जी और पुलिस महानिदेशक वीरेंद्र को समन भेज कर 14 दिसंबर को दिल्ली हाज़िर होने का निर्देश दिया था। लेकिन राज्य सरकार ने इन दोनों अधिकारियों को दिल्ली भेजने से इंकार कर दिया था। उसके एक दिन बाद गृह मंत्रालय ने इलाक़े के तीन वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों को अचानक डेपुटेशन पर दिल्ली पहुँचने का निर्देश जारी कर दिया। लेकिन राज्य सरकार इन तीनों को रिलीज नहीं करने पर अड़ी है। उसकी दलील है कि राज्य में पहले से ही आईपीएस अफ़सरों की भारी कमी है। ऐसे में तीन अधिकारियों को केंद्रीय डेपुटेशन पर भेजना संभव नहीं होगा। एक शीर्ष सरकारी अधिकारी कहते हैं, ‘हमने केंद्रीय गृह मंत्रालय को बता दिया है कि तीनों अफ़सरों को दिल्ली भेजना संभव नहीं है।’

लेकिन केंद्र सरकार ने गुरुवार को एक बार फिर जहाँ मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को दिल्ली आने का समन भेजा है वहीं तीनों आईपीएस अधिकारियों को नई पोस्टिंग भी दे दी है। केंद्र सरकार ने जिन तीन आईपीएस अफ़सरों को दिल्ली बुलाया है उनमें डायमंड हार्बर के एसपी भोलानाथ पांडे (2011 बैच) के अलावा प्रेसीडेंसी रेंज के डीआईजी प्रवीण कुमार त्रिपाठी (2004 बैच) और अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (दक्षिण बंगाल) राजीव मिश्र (1996 बैच) शामिल हैं। इनमें से राजीव मिश्र को पाँच साल के लिए बतौर आईजी इंडो-तिब्बत पुलिस फोर्स (आईटीबीपी) में तैनात किया गया है जबकि प्रवीण कुमार को पाँच साल के लिए एसएसबी में डीआईजी बनाया गया है। तीसरे अधिकारी भोलानाथ पांडेय को तीन साल के लिए ब्यूरो ऑफ़ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट में नियुक्त किया गया है।

लेकिन ममता बनर्जी ने उनको रिलीज करने से इंकार करते हुए केंद्र के फ़ैसले को राज्य के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण क़रार दिया है।

ममता कहती हैं, केंद्र सरकार राजनीतिक बदले की भावना से बंगाल में काम करने वाले अधिकारियों का मनोबल गिराने का प्रयास कर रही है। ख़ासकर चुनावों से पहले ऐसा फ़ैसला संघीय ढांचे के प्रावधानों के ख़िलाफ़ है। लेकिन नियमों की आड़ में राज्य के तंत्र को नियंत्रित करने के केंद्र के प्रयासों को हम स्वीकार नहीं करेंगे। राज्य सरकार अलोकतांत्रिक ताक़तों के आगे कभी घुटने नहीं टेकेगी।

 center asks wb government release 3 ips officers for central deputation - Satya Hindi

वैसे, केंद्र और राज्य सरकार के बीच आईपीएस अफ़सरों के मुद्दे पर टकराव का यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले बीते साल फ़रवरी में कोलकाता पुलिस के तत्कालीन आयुक्त राजीव कुमार को सीबीआई के समन के मुद्दे पर भी केंद्र और राज्य सरकार आमने-सामने आ गए थे। ममता बनर्जी तब इसके विरोध में धरने पर भी बैठी थीं। हालाँकि बाद में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप की वजह से सीबीआई राजीव कुमार को गिरफ्तार नहीं कर सकी थी। 

सीबीआई की टीम जब राजीव कुमार के घर पहुँची थी तो ममता भी अपने दल-बल के साथ वहाँ पहुँच गई थी। कोलकाता पुलिस सीबीआई के अधिकारियों को थाने ले गई जहाँ से कुछ देर बाद उनको छोड़ दिया गया था। उस समय तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ने कहा था कि बिना किसी सर्च वारंट या सबूत के पुलिस आयुक्त जैसे अधिकारी के घर पहुँचना बेहद शर्मनाक है। यही वजह है कि वे यहाँ पहुँची हैं। अपने किसी भी सरकारी अधिकारी की रक्षा करना उनकी संवैधानिक और नैतिक ज़िम्मेदारी है। 
ममता ने सीधे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल का नाम लेते हुए कहा कि मोदी के निर्देशों को अमली जामा पहनाने के लिए वही ईडी व सीबीआई जैसी एजेंसियों को निर्देश दे रहे हैं।

उसके बाद बीते साल लोकसभा चुनावों के पहले चरण से ठीक पहले चुनाव आयोग ने कोलकाता के पुलिस आयुक्त अनुज शर्मा समेत चार वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों का तबादला कर दिया था। ममता ने तब भी चुनाव आयोग के फ़ैसले को एकतरफ़ा बताते हुए उसकी आलोचना की थी। उन्होंने आयोग को एक पत्र भेज कर इस फ़ैसले की समीक्षा करने की भी माँग की थी। ममता का आरोप था कि उक्त तबादले बीजेपी के दबाव में किए गए हैं। उन्होंने आयोग से उक्त फ़ैसले का आधार भी जानना चाहा था। ममता ने अपने पत्र में लिखा था कि भारत में लोकतंत्र बचाने के लिए चुनाव आयोग को एक तटस्थ भूमिका निभानी चाहिए। ममता ने आयोग के फ़ैसले को एकतरफ़ा, पक्षपाती और ख़ास मक़सद से किया गया फ़ैसला बताया था।

वीडियो में देखिए, बीजेपी के हमलों से ममता बनर्जी पस्त?

अब ताज़ा विवाद भी तूल पकड़ रहा है। पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं, ‘बंगाल में चुनाव सिर पर हैं। यहाँ आईपीएस अफ़सरों की तादाद पहले ही ज़रूरत से कम है। राज्य सरकार यह कारण दिखाते हुए इन तीनों अफ़सरों को दिल्ली भेजने से इंकार सकती है।’

लेकिन राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि नियम केंद्र के पक्ष में हैं। इसलिए बीजेपी उनका इस्तेमाल अपने हित में कर रही है। लेकिन नड्डा के हमले के तुरंत बाद किए गए इस फ़ैसले से साफ़ है कि इसके पीछे मक़सद राजनीतिक है।

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प्रभाकर मणि तिवारी
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