अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने दक्षिण कोरिया और जापान से आयात पर 25% शुल्क लगाने की घोषणा की है, जिससे दुनिया भर के कारोबार में नई हलचल मच गई है। इस नीति का उद्देश्य अमेरिकी हितों को बढ़ावा देना और घरेलू उद्योगों को संरक्षण प्रदान करना बताया गया है। हालांकि, इस कदम से दोनों एशियाई देशों के साथ व्यापारिक तनाव बढ़ने की आशंका है, जो ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में बड़े निर्यातक हैं।

दक्षिण कोरिया और जापान ने इस फैसले पर चिंता जताई है। दक्षिण कोरिया के व्यापार मंत्रालय ने इसे "एकतरफा और अनुचित" करार दिया, जबकि जापान ने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में इस मुद्दे को उठाने की बात कही है। विश्लेषकों का मानना है कि यह शुल्क वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को प्रभावित कर सकता है, खासकर सेमीकंडक्टर और ऑटोमोटिव उद्योगों में।

भारत की रणनीति और समयसीमा विस्तार की मांग 

भारत ने इस घटनाक्रम पर सतर्क रुख अपनाया है। सूत्रों के अनुसार, भारत सरकार अमेरिका के साथ व्यापार वार्ता में फिर से शामिल होने की तैयारी कर रही है ताकि भारतीय निर्यात, विशेष रूप से सूचना प्रौद्योगिकी, फार्मास्यूटिकल्स और कृषि उत्पादों पर किसी भी संभावित शुल्क से बचने के लिए समयसीमा विस्तार प्राप्त किया जा सके।

वाणिज्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, "हम अमेरिका के साथ अपने मजबूत व्यापारिक संबंधों का लाभ उठाकर यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि भारतीय निर्यातकों को नुकसान न हो। हम समयसीमा विस्तार और पारस्परिक लाभकारी समझौते पर जोर दे रहे हैं।"

ट्रेड वॉर का बढ़ता खतरा 

अमेरिका का यह कदम वैश्विक व्यापार युद्ध की आशंकाओं को फिर से हवा दे रहा है। भारत, जो पहले से ही अमेरिका के साथ व्यापार संतुलन को लेकर सतर्क है, इस स्थिति का फायदा उठाने की कोशिश में है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत अपनी रणनीतिक स्थिति का उपयोग कर अमेरिका के साथ बेहतर व्यापारिक शर्तें हासिल कर सकता है।

हालांकि, भारतीय निर्यातकों ने चेतावनी दी है कि यदि अमेरिका भारत पर भी समान शुल्क लगाता है, तो टेक्सटाइल, ज्वैलरी और ऑटोमोटिव पार्ट्स जैसे क्षेत्र प्रभावित हो सकते हैं। फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशंस (एफआईईओ) ने सरकार से आग्रह किया है कि वह जल्द से जल्द अमेरिका के साथ फिर बातचीत शुरू करे।

ट्रम्प प्रशासन ने संकेत दिए हैं कि वह अन्य देशों के साथ भी व्यापार नीतियों की समीक्षा करेगा, जिससे वैश्विक व्यापार परिदृश्य में अनिश्चितता बढ़ गई है। भारत के लिए यह एक अवसर और चुनौती दोनों है। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को अपनी व्यापार नीति को और मजबूत करने के साथ-साथ अन्य बाजारों, जैसे यूरोपीय संघ और आसियान देशों, के साथ संबंधों को गहरा करने पर ध्यान देना चाहिए।