डॉ. वेद प्रताप वैदिक भारत के वरिष्ठ पत्रकार, राजनैतिक विश्लेषक एवं हिंदीप्रेमी हैं। डॉ. वैदिक अनेक भारतीय व विदेशी शोध-संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों में विज़िटिंग प्रोफ़ेसर रहे हैं।
जमाते-तब्लीग़ी का दोष बिल्कुल साफ़-साफ़ है लेकिन इसे हिंदू-मुसलमान का मामला बनाना बिल्कुल अनुचित है। लेकिन मौलाना साद ने अपनी करतूतों के लिए पश्चाताप नहीं किया और माफ़ी नहीं माँगी है।
आख़िर हम कोरोना से लड़ने के लिए आयुर्वेद के घरेलू नुस्खों, आसन-प्राणायाम का जिक्र क्यों नहीं कर रहे हैं?
तबलीगी जमात के अधिवेशन में दिल्ली आए हजारों लोग अपने साथ कोरोना वायरस लेकर सारे देश में फैल गए हैं।
तालाबंदी से पैदा होनेवाले संकट का मुक़ाबला करने की रणनीति प्रधानमंत्री के पास तैयार होनी चाहिए। कहीं इस तालाबंदी का हाल भी नोटबंदी जैसा न हो जाए!
जनता-कर्फ्यू तो सिर्फ़ इतवार को था, लेकिन सोमवार को भी वह सारे देश में लगा हुआ मालूम पड़ रहा है। मेरा घर गुड़गाँव की सबसे व्यस्त सड़क गोल्फ कोर्स रोड पर है लेकिन इस सड़क पर आज भी हवाइयाँ उड़ रही हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना विषाणु (वायरस) का मुक़ाबला करने के लिए देशवासियों को जो संदेश दिया, वह बहुत ही प्रेरक और सामयिक था। लेकिन ताली और थाली बजाने की उत्सवी मुद्रा क्यों?
मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिर चुकी है। लेकिन बीजेपी के लिये भी सरकार चलाना आसान नहीं होगा। क्योंकि उसके पास मजबूत बहुमत नहीं है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को सेवानिवृत्त हुए अभी चार महीने भी नहीं बीते कि उन्हें राज्यसभा में नामजद कर दिया गया। राष्ट्रपति द्वारा नामजद किए जानेवाले 12 लोगों में से वे एक हैं।
शेख अब्दुल्ला के बेटे और कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री डाॅ. फ़ारूक़ अब्दुल्ला की नज़रबंदी से रिहाई और जम्मू-कश्मीर की अपनी पार्टी के नेताओं की नरेंद्र मोदी और अमित शाह से हुई भेंटों से एक नए अध्याय का सूत्रपात हो रहा है।
सऊदी अरब के राज-परिवार में जबरदस्त उथल-पुथल मची हुई है। राज-परिवार के कई शहजादों में बादशाहत कब्जाने की होड़ लगी हुई है।
तालिबान के साथ हुए समझौते में अमेरिका ने अपने हितों को पूरी तरह से रक्षा से की है लेकिन भारत के हितों का जिक्र तक नहीं है। भारत के पास कोई रणनीति है, ऐसा भी नहीं लगता।
ग्रेटर नोएडा के रिठौड़ी गाँव में एक भव्य मसजिद बन रही है। उसकी नींव गाँव के हिंदुओं ने छह माह पहले रखी थी। इस गाँव में बसनेवाले हर हिंदू परिवार ने अपनी-अपनी श्रद्धा और हैसियत के हिसाब से मसजिद के लिए दान दिया है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की इस भारत-यात्रा से भारत को कितना लाभ हुआ, यह तो यात्रा के बाद ही पता चलेगा, लेकिन ट्रंप ऐसे नेता हैं, जो अमेरिकी फायदे के लिए किसी भी देश को कितना ही निचोड़ सकते हैं।
दिल्ली में प्रचंड जीत हासिल करके अरविंद केजरीवाल ने बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने बड़ी चुनौती पेश की है।
भय्याजी जोशी ने कहा कि सांप्रदायिक वह हो सकता है, जिसकी एक ही पूजा-पद्धति हो, एक ही भगवान हो, एक ही किताब हो, एक ही तरह का मंदिर हो।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि आरक्षण देना राज्य सरकारों की इच्छा पर निर्भर करेगा। सभी राज्य और केंद्र सरकारों को इस फ़ैसले पर सख्ती से अमल करना चाहिए।
लगता है कि हमारी राजनीतिक पार्टियां चुनावी मशीन बनकर रह गई हैं। वे सिर्फ ऐसे उम्मीदवार चुनती हैं, जो उनके लिए वोट और नोट जुटा सकें।
यूरोपीय संघ की संसद में लाये गये प्रस्तावों में नागरिकता क़ानून और कश्मीर के विलय की कड़ी आलोचना की गई है। इन प्रस्तावों से कहीं भारत और यूरोपीय देशों के बीच संबंध तो ख़राब नहीं होंगे।
ऑक्सफ़ैम की रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत के एक प्रतिशत अमीरों के पास देश के 70 प्रतिशत लोगों से ज्यादा पैसा है। सारी दुनिया के हिसाब से देखें तो हाल और भी बुरा है।
भारत सरकार ने शंघाई सहयोग संगठन की वार्षिक बैठक के लिए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को न्यौता भेजा है। लेकिन क्या इमरान आएंगे?
नागरिकता क़ानून का मूल उद्देश्य तो बहुत अच्छा है लेकिन उसका आधार सिर्फ धार्मिक उत्पीड़न हो, यह बात भारत के मिजाज से मेल नहीं खाती।
मोदी सरकार को ईरान के सर्वोच्च नेता अली खामेनई से तो बात करनी ही चाहिए कश्मीर के मुद्दे पर भी नई पहल करने की ज़रूरत है।
केरल की विधानसभा ने नागरिकता संशोधन क़ानून को लागू न करने का फ़ैसला किया है। ऐसा अगर कुछ अन्य राज्यों की विधानसभा में हो जाए तो क्या होगा?
कश्मीर के मुद्दे पर इसलामी देशों का बड़ा सम्मेलन होने जा रहा है, जिसकी मेजबानी सऊदी अरब करेगा। इसकी वजह क्या नागरकिता संशोधन क़ानून और एनआरसी है?
केरल के राज्यपाल आरिफ़ मोहम्मद ख़ान के साथ ‘इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस’ के अधिवेशन में जो बर्ताव किया गया, क्या वह इतिहासकारों और विद्वानों के लिए शोभनीय है?
नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर हो रहे जोरदार विरोध के बीच सवाल यह पूछा जा रहा है कि आख़िर इस क़ानून की क्या ज़रूरत थी?