डॉ. वेद प्रताप वैदिक भारत के वरिष्ठ पत्रकार, राजनैतिक विश्लेषक एवं हिंदीप्रेमी हैं। डॉ. वैदिक अनेक भारतीय व विदेशी शोध-संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों में विज़िटिंग प्रोफ़ेसर रहे हैं।
कई धार्मिक और जातीय रीति-रिवाज सदियों पहले इसलिए चल पड़े कि वे देश-काल के हिसाब से ठीक लगे होंगे लेकिन अब उनको त्यागना समयानुकूल है।
भारत की जनता ने महाराष्ट्र, हरियाणा के चुनाव परिणाम से देश की सरकार को सबक सिखाया है कि अगर सरकार ने अपना ढर्रा नहीं बदला तो वह बग़ावती तेवर अख़्तियार कर लेगी।
अधिकांश देशों में रहने वाले अल्पसंख्यक अक्सर डरे हुए, कमजोर, ग़रीब और पीड़ित ही दिखाई पड़ते रहे हैं।
प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर देश की किसी स्थिति पर ध्यान देने का आग्रह करना कौन सा अपराध है? इसे देशद्रोह कहना तो शुद्ध मजाक है।
क्या वोटों के लिए गाँधी के नाम को भुनाया जा रहा है? यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि आज गाँधी के नाम पर भारत में कौन वोट देता है?
जो पार्टी अपनी चाल, चेहरे और चरित्र पर गर्व करती थी, क्या अब वह कहीं अपना मुंह दिखाने लायक रह गई है?
सऊदी अरब पर यमन के बाग़ियों ने जो हमला किया है, उससे सारी दुनिया में ख़तरे की घंटियाँ बजने लगी हैं क्योंकि दुनिया के देशों को सबसे ज़्यादा तेल देनेवाला देश यही है। लेकिन भारत क्यों तमाशबीन बना हुआ है?
130 करोड़ लोगों को आपस में कौनसी भाषा जोड़ सकती है? वह सिर्फ़ एक ही भाषा हो सकती है और वह है - हिंदी। इसमें अमित शाह ने क्या गलत कह दिया?
राजस्थान की पुलिस ने अदालत के सामने सारा मामला इतने लचर-पचर ढंग से पेश किया कि सभी अभियुक्त बरी हो गए यानि पहलू ख़ान को किसी ने नहीं मारा। वह अपने आप मर गया।
यदि तालिबान से अमेरिका और पाकिस्तान बात कर रहे हैं तो वह बात इसीलिए हो रही है कि काबुल की सत्ता उन्हें कैसे सौंपी जाए? यदि सत्ता उन्हें ही सौंपी जानी है तो चुनाव का ढोंग किसलिए किया जा रहा है?
अख़बारों और टीवी चैनलों ने जिस तरह की भाव-भीनी विदाई शीला दीक्षित को दी है, वह बहुत कम नेताओं को दी जाती है।
आनंद ने यदि यह भ्रष्टाचार किया है तो किसके दम पर किया है? देश में सैकड़ों मायावतियाँ हैं और हजारों आनंद हैं? क्या देश में एक भी नेता ऐसा है, जो कह सके कि मेरा दामन साफ़ है?
कर्नाटक और गोवा में हुए राजनीतिक घटनाक्रम ने नेताओं की कार्यशैली को लेकर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। दल-बदलू विधायकों के संबंध में सख़्त क़ानून बनाया जाना चाहिए।
ओसाका में हुई नरेंद्र मोदी और डोनल्ड ट्रंप की भेंट से यह आशा बंधती है कि भारत-अमेरिका संबंधों में इधर पैदा हुई अनिश्चितता ज़्यादा चिंताजनक नहीं है।
जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने का कहना है कि हुर्रियत के नेता अब कश्मीर के मसले को बातचीत से हल करना चाहते हैं। तो क्या यह शांति की पहल के संकेत हैं?
भारत ने बालाकोट हमले और उसके बाद की प्रतिक्रियाओं से पाक को सबक सिखा दिया है। यदि अब भी वह अपनी चुनावी मुद्रा धारण किए रहेगा तो उससे पाक पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल का यह शपथ-ग्रहण समारोह अपने आप में ऐतिहासिक है, क्योंकि यह ऐसा पहला ग़ैर-कांग्रेसी मंत्रिमंडल है, जो अपने पहले पाँच साल पूरे करके दूसरे पाँच साल पूरे करने की शपथ ले रहा है।
कांग्रेस अब एक लोकतांत्रिक पार्टी नहीं, प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बन चुकी है। यदि राहुल का इस्तीफ़ा हो ही जाता तो बताइए कि क्या यह कंपनी विधवा नहीं हो जाती? इसका बोझ कौन उठाता?
कमल हासन ने कह दिया कि नाथूराम गोडसे भारत का पहला आतंकवादी था। जिसके विचार और कर्म अतिवादी हों, मर्यादाविहीन हों, हिंसक हों, उसे उग्रवादी ही कहा जाएगा लेकिन किसी हत्यारे को आप आतंकवादी कैसे कह सकते हैं?
हमारे प्रचार मंत्रीजी की ताक़त का लोहा मानना पड़ेगा कि उन्होंने कांग्रेस को मजबूर कर दिया है और वह भी अपनी ‘सर्जिकल स्ट्राइकों’ की डोंडी पीटने लगी है।
दुनिया के कई अन्य देशों की तरह इंडोनेशिया में भी बुर्क़े पर प्रतिबंध है। अरबों का बुर्क़ा और भारतीय महिलाओं का घूंघट या पर्दा, दोनों ही नारी अपमान के प्रतीक हैं।
सर्वोच्च न्यायालय अभी तक तो बीजेपी सांसद मीनाक्षी लेखी की याचिका पर विचार कर रहा था लेकिन अब उसने राहुल को अदालत की अवमानना का औपचारिक नोटिस जारी कर दिया है।
अख़बार ‘ल मोंद’ में हुआ रहस्योद्घाटन नरेंद्र मोदी की छवि को धूल-धूसरित कर रहा है। इसके बाद राहुल गाँधी ने रफ़ाल सौदे में गड़बड़ी को लेकर मोदी पर हमला तेज़ कर दिया है।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने अंग्रेज़ी के सार्वजनिक इस्तेमाल पर वैसा ही प्रहार किया है, जैसा कभी गाँधीजी और लोहियाजी किया करते थे। यदि लोहिया जी भारत के प्रधानमंत्री बनते तो अंग्रेज़ी पर प्रतिबंध लगा देते।
लोकसभा चुनाव से पहले कई नामी-गिरामी उम्मीदवार रातों-रात पार्टियाँ बदल रहे हैं, उनकी चर्चा सुर्खियों में है लेकिन बीजेपी ने अपने जिन वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार किया है, उनकी चर्चा सबसे ज़्यादा है।
‘ओवरसीज कांग्रेस’ के नेता सैम पित्रोदा के बालाकोट हमले संबंधी बयान को बीजेपी के नेताओं और ख़बर के भूखे टीवी चैनलों ने तिल का ताड़ बना दिया है।