पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत बलूचिस्तान आज़ादी की लड़ाई और भू-राजनीतिक खेल का केंद्र है। यहाँ एक ओर बलूच लोग दशकों से स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे हैं, तो दूसरी ओर चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा यानी CPEC के ज़रिए चीन ने अरब सागर तक अपनी पहुँच बनाने के लिए अरबों डॉलर का निवेश किया है। हाल के भारतीय सैन्य अभियान, 'ऑपरेशन सिंदूर' (7 मई 2025), में चीन ने पाकिस्तान का खुलकर साथ दिया जो CPEC को बचाने और भारत के सामने नयी चुनौती पेश करने की कोशिश थी।

क्या है बलूचिस्तान

बलूचिस्तान पाकिस्तान के चार प्रांतों (पंजाब, सिंध, खैबर पख्तूनख्वा, और बलूचिस्तान) में सबसे बड़ा है, जो कुल क्षेत्रफल का 44% हिस्सा है। यह ईरान, अफगानिस्तान, और अरब सागर से घिरा है। यहाँ की 1.5 करोड़ आबादी में बलूच, पश्तून, और अन्य जनजातियाँ शामिल हैं। यह क्षेत्र तेल, गैस, सोना, और तांबे जैसे खनिजों से समृद्ध है, खासकर रेको डिक खदान, जो दुनिया की सबसे बड़ी तांबा-सोना खदानों में से एक है। फिर भी, यह पाकिस्तान का सबसे पिछड़ा क्षेत्र है, जहाँ साक्षरता दर कम और बुनियादी सुविधाएँ न के बराबर हैं।

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प्राचीन काल में यह मकरान और गंधार सभ्यता का हिस्सा था। सिकंदर की सेनाएँ भी यहीं से गुज़री थीं। महाभारत में इसे "बाह्लीक" कहा गया, जहाँ का योद्धा भूरिश्रवा कौरवों की ओर से लड़ा था।

पाकिस्तान में विलय

1947 में बँटवारे के समय बलूचिस्तान चार रियासतों - कलात, खरन, लास बेला, और मकरान - से बना था। 11 अगस्त 1947 को, भारत की आज़ादी से चार दिन पहले, कलात के खान मीर अहमद यार खान ने बलूचिस्तान को स्वतंत्र घोषित किया लेकिन यह आजादी केवल 227 दिन चली। 28 मार्च 1948 को, जिन्ना के आदेश पर पाकिस्तानी सेना ने कलात पर कब्जा कर लिया और खान को जबरन विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने को मजबूर किया। जबकि मोहम्मद अली जिन्ना ने स्वयं ब्रिटिशों के सामने कलात की स्वतंत्रता का केस लड़ा था। बलूच इसे धोखा मानते हैं और तब से विद्रोह कर रहे हैं।

बलूचिस्तान में 1948, 1958-59, 1962-63, और 1973-77 में बड़े विद्रोह हुए। 1970 के दशक में जनरल टिक्का खान ने इसे क्रूरता से दबाया, जिसे "बलूचिस्तान का कसाई" कहा गया। नवाब अकबर खान बुगती, डॉ. अल्लाह नजर, और बालाच मिरी जैसे नेता इस लड़ाई में शहीद हुए।

बलूच लिबरेशन आर्मी

इस दौर में बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) आजादी की लड़ाई का सबसे सक्रिय चेहरा है। 2003 से BLA ने हिंसक विद्रोह शुरू किया, जिसमें पाकिस्तानी सेना, खुफिया केंद्र, और चीनी प्रोजेक्ट्स को निशाना बनाया। 2025 में BLA ने 51 जगहों पर 71 हमलों का दावा किया, जिसमें दर्जनों सैनिक मारे गए।

आजादी की मांग के कारण

  • संसाधनों का शोषण: बलूचिस्तान पाकिस्तान की आधी गैस आपूर्ति देता है, लेकिन स्थानीय लोग सुविधाओं से वंचित हैं।  
  • मानवाधिकार उल्लंघन: पाकिस्तानी सेना पर 20,000 बलूच कार्यकर्ताओं को गायब करने का आरोप है।  
  • सांस्कृतिक दमन: बलूच भाषा और संस्कृति को पंजाबी-प्रधान पाकिस्तानी संस्कृति में दबाया गया।

9 मई 2025 को, बलूच कार्यकर्ता मीर यार बलूच ने सोशल मीडिया पर "रिपब्लिक ऑफ बलूचिस्तान" की स्वतंत्रता की घोषणा की, भारत और संयुक्त राष्ट्र से मान्यता मांगी। पाकिस्तान ने इसे "विदेशी साजिश" करार दिया, और सेनाध्यक्ष जनरल असीम मुनीर ने सख्त चेतावनी दी। भारत ने मानवाधिकार हनन का मुद्दा उठाया, लेकिन घोषणा पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

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CPEC: चीन का रणनीतिक निवेश

बलूचिस्तान अब पाकिस्तान से ज़्यादा चीन का युद्धक्षेत्र बन गया है, क्योंकि यहाँ CPEC (चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरीडोर) का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। CPEC, 2015 में शुरू हुई 62 अरब डॉलर की परियोजना, चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का हिस्सा है। इसका लक्ष्य चीन के शिनजियांग को ग्वादर पोर्ट (बलूचिस्तान) से जोड़ना है। यह 3,000 किमी का गलियारा सड़कों, रेलवे, पाइपलाइनों, और ऊर्जा परियोजनाओं का जाल है, जिसमें शामिल हैं: 

  • ग्वादर पोर्ट: अरब सागर में रणनीतिक बंदरगाह।  
  • ऊर्जा परियोजनाएँ: कोयला, हाइड्रो, और सौर संयंत्र।  
  • सड़क-रेल नेटवर्क: कराची से पेशावर और खुनजराब तक।  
  • विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ): औद्योगिक विकास के लिए।

पाकिस्तान को फ़ायदा

  • ऊर्जा: CPEC ने 10,400 मेगावाट बिजली जोड़ी, जिससे बिजली कटौती कम हुई (उदाहरण: थर और पोर्ट कासिम कोल प्लांट)।  
  • आर्थिक विकास: सड़कों, रेलवे, और SEZ से 5,000+ नौकरियाँ सृजित हुईं।  
  • क्षेत्रीय हब: पाकिस्तान दक्षिण एशिया का व्यापारिक केंद्र बन सकता है।  
  • इन्फ्रास्ट्रक्चर: कराची-पेशावर मोटरवे ने कनेक्टिविटी बढ़ाई।

चीन को फ़ायदा

  • मलक्का स्ट्रेट से बचाव: CPEC से तेल और गैस के लिए 12,000 किमी छोटा मार्ग।  
  • रणनीति: ग्वादर और हंबनटोटा (श्रीलंका) से हिंद महासागर में नौसैनिक ताकत।  
  • आर्थिक लाभ: चीनी कंपनियाँ परियोजनाओं से मुनाफा कमाती हैं।

हालांकि, पाकिस्तान पर कुल कर्ज का एक-तिहाई चीन का है, जिससे कर्ज का जाल बढ़ रहा है। बलूच लोग CPEC को "आधुनिक उपनिवेशवाद" मानते हैं, क्योंकि उन्हें नौकरियाँ या संसाधन नहीं मिलते।

भारत पर प्रभाव

CPEC भारत के लिए कई चुनौतियाँ पेश करता है:

  • संप्रभुता: यह गिलगित-बाल्टिस्तान (PoK) से गुजरता है, जिसे भारत अपना हिस्सा मानता है। भारत ने इसे "अस्वीकार्य" कहा।  
  • रणनीतिक खतरा: ग्वादर से चीन की नौसेना को हिंद महासागर में पैठ मिलती है।  
  • आर्थिक असंतुलन: मजबूत पाकिस्तान भारत के क्षेत्रीय प्रभाव को कम कर सकता है।  
  • आतंकवाद: बलूचिस्तान की अस्थिरता से भारत में आतंकी गतिविधियाँ बढ़ सकती हैं।

कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि CPEC भारत को मध्य एशिया तक व्यापार का अवसर दे सकता है, अगर भारत-पाक संबंध सुधरें। भारत ने चाबहार पोर्ट (ईरान) और प्रोजेक्ट मौसम शुरू किए हैं।

बलूच विद्रोहियों का CPEC पर हमला

बलूच लोग CPEC से नाराज हैं, क्योंकि: 

  • विस्थापन: प्रोजेक्ट्स ने हजारों बलूचों को विस्थापित किया।  
  • उपेक्षा: नौकरियाँ चीनी और पंजाबी श्रमिकों को मिलीं।  
  • सांस्कृतिक खतरा: बलूच पहचान और जनसांख्यिकी खतरे में है।

बलूचों के लिए चीनी निवेश उपनिवेशवाद की आहट है इसलिए वे लगातार इसका विरोध कर रहे हैं। बीएलए ने अपना विरोध जताने के लिए-

  • 2018: कराची में चीनी वाणिज्य दूतावास पर हमला।  
  • 2022: चीनी यात्रियों की गाड़ी पर हमला।  
  • 2025: ग्वादर पोर्ट पर हमला।

2025 में, चीन ने CPEC की सुरक्षा के लिए 60 निजी सुरक्षा कर्मियों को तैनात किया, जो डेवे सिक्योरिटी, चीन ओवरसीज सिक्योरिटी, और हुआक्सिन झोंगशान जैसी कंपनियों से हैं।

बलूचिस्तान सिर्फ पाकिस्तान का प्रांत नहीं, बल्कि चीन की रणनीति का केंद्र है। 'ऑपरेशन सिंदूर' में चीन ने पाकिस्तान को सैन्य तकनीक और संसाधन देकर भारत को घेरने की कोशिश की। लेकिन इस खेल में आम बलूच कुचले जा रहे हैं। उनकी आजादी की लड़ाई CPEC और पाकिस्तानी दमन के खिलाफ है। क्या वे स्वतंत्रता हासिल करेंगे? यह भविष्य बताएगा। लेकिन यह साफ है कि बलूचिस्तान दक्षिण एशिया की भू-राजनीति का अहम हिस्सा है, और इसका भारत पर गहरा असर होगा।