रेखा गुप्ता सरकार को दिल्ली का दरबार संभाले पांच महीने होने जा रहे हैं। इन पांच महीनों के दौरान आम आदमी पार्टी पहले ही दिन से बीजेपी के खिलाफ आक्रामक रवैया बनाए हुए है। यहां तक कि सरकार के शपथ ग्रहण से पहले ही पूर्व सीएम आतिशी ने आरोप लगा दिया था कि दिल्ली की बिजली व्यवस्था चौपट हो गई है।
जब रेखा सरकार के 100 दिन पूरे हुए तो भी उन्होंने इस सरकार को नाकामयाब घोषित कर दिया जैसे रेखा सरकार हाथ में जादू की कोई छड़ी लेकर आई है और 10 साल से दिल्ली में जो नहीं हो रहा था, उसे 100 दिन में कर डालेगी। ये पब्लिक है, ये सब जानती है। इसलिए जनता की तरफ से आम आदमी पार्टी को बिजली, पानी, जलभराव या ऐसी ही किसी समस्या पर उत्साहवर्द्धक रेस्पॉन्स नहीं मिला।
दरअसल आम आदमी पार्टी वही कुछ कर रही है, जो बीजेपी ने पिछले तीन सालों में किया है। पिछले तीन सालों से बीजेपी ने बहुत ही आक्रामक लहजे में अरविंद केजरीवाल एंड पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ था। केजरीवाल का यूएसपी था उनकी ईमानदारी और बीजेपी ने इसी पर सबसे ज्यादा अटैक किया। शराब घोटाले से शीशमहल तक इतने ज्यादा प्रहार किए कि जनता ने केजरीवाल को दिल्ली से उखाड़ फेंका। आम आदमी पार्टी अब उसी लहजे में जवाब दे रही है।
आम आदमी पार्टी का आक्रमण समझ में भी आता है क्योंकि वो तो विपक्ष में हैं और भारत में विपक्षी दलों का एकसूत्रीय कार्यक्रम यही होता है कि सरकार को निकम्मा साबित करो, सरकार को नाकामयाब साबित करो। अगर जनता का साथ नहीं मिल रहा तो भी लगातार प्रहार करते रहो। मगर, मुझे जो बात हैरान कर रही है, वो ये हैं कि आखिर बीजेपी अचानक रक्षात्मक क्यों हो गई है?
पिछले एक हफ्ते में ही बीजेपी ने दो ऐसे बड़े फैसले किए हैं जिससे लगता है कि आम आदमी पार्टी ने बीजेपी को बैकफुट पर धकेल दिया है। आप के बाउंसरों को हुक करने की बजाय बीजेपी उन्हें डक कर रही है। बीजेपी झुकने के लिए मजबूर हो रही है। आखिर क्यों, इसका जवाब बीजेपी वाले ही बेहतर बता सकते हैं।
दिल्ली में पहली जुलाई से फ्यूल बैन लागू किया गया। पेट्रोल की 15 साल से पुरानी और डीजल की 10 साल से पुरानी गाड़ियों को तेल मिलना बंद हो गया। जो भी गाड़ी पेट्रोप पंपों पर जा रही थी, उसकी सूचना एआई से लैस कैमरों से ट्रांसपोर्ट विभाग को मिल रही थी। इस तरह तेल बंद और गाड़ी जब्त का नियम लागू हो गया था। इस नियम को लागू करने के लिए पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा काफी दिनों से उत्साहित नजर आ रहे थे। मगर, केवल तीन दिनों में ही बीजेपी को यह मुहिम रोकनी पड़ी। आम आदमी पार्टी ने जनता के मन में यह धारणा बिठा दी कि यह तो बीजेपी की मुहिम है। आप नेताओं ने ताबड़तोड़ बयान और प्रेस कांफ्रेंस करके जनता के बीच फैली बेचैनी का रुख बीजेपी की तरफ मोड़ दिया। सच्चाई यह है कि फ्यूल बैन का प्रस्ताव खुद आम आदमी पार्टी का ही था।
आम आदमी पार्टी सरकार के कार्यकाल में ही इस योजना पर काम शुरू कर दिया गया था। दिल्ली में 400 से ज्यादा पेट्रोप पंपों में से 100 पर कैमरे लगाकर पायलट प्रोजेक्ट भी शुरू हो गया था जिसकी घोषणा तब के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने खुद की थी। मगर, इस योजना को लागू करने से पहले बीजेपी सरकार ने जिस तरह से इसे अपनी मुहिम बनाया और आम आदमी पार्टी ने उसी को भुनाते हुए सारा ठीकरा बीजेपी पर फोड़ा, उसके बाद बीजेपी को अपने कदम पीछे हटाने के लिए मजबूर होना पड़ा। बीजेपी सरकार को सीएक्यूएम को कहना पड़ा कि फिलहाल यह योजना लागू नहीं हो सकती। इसीलिए अब इसे पहली नवंबर तक के लिए टाला गया है लेकिन जनता के मन में यह धारणा बन चुकी है कि बीजेपी पुरानी गाड़ियों को हटाना चाहती है। इस धारणा के बनने के कारण ही बीजेपी को कदम वापस खींचने पड़े। न जाने क्यों, बीजेपी यह साबित ही नहीं कर पाई कि सारा किया-धरा तो आम आदमी पार्टी का ही है।
रेखा गुप्ता और केजरीवाल में फर्क क्या रहा
बीजेपी ने दूसरा फैसला सीएम रेखा गुप्ता के बंगले को लेकर किया है। सीएम को राजनिवास पर बंगला नं. 1 और 2 अलॉट हुए जिनमें पहले बंगले में उसका आवास बनना था और दूसरे में कैंप ऑफिस। कैंप ऑफिस बन चुका है और उसमें सीएम लोगों से मिल भी रही हैं। पहले बंगले के लिए 4 जुलाई को टेंडर खुला था। उस बंगले की मरम्मत और सुविधाओं के लिए 60 लाख रुपए खर्च होने थे। जैसे ही यह खबर बाहर निकली कि रेखा गुप्ता का बंगला 60 लाख में रेनोवेट हो रहा है, आम आदमी पार्टी ने इसे भी ठीक वैसा ही मुद्दा बनाने की कोशिश की जैसी बीजेपी ने शीशमहल पर की थी।
शीशमहल के दम पर बीजेपी चुनाव भी जीती। इसीलिए जब मामला गर्मा गया और आम आदमी पार्टी ने इसे मायामहल का नाम दिया, पीडब्ल्यूडी ने टेंडर कैंसिल कर दिया। 60 लाख रुपए में करीब पौने पांच लाख रुपये की लागत से 14 सीसीटीवी कैमरे लगने थे और 2 लाख रुपये का यूपीएस सिस्टम भी लगना था। 9 लाख 30 हजार रुपये की लागत से पांच टेलीविजन सेट लगाए जाने थे और 7 लाख 70 हजार रुपये में 14 एयर कंडीशनर लगने थे। 1 लाख 80 हजार रुपये में रिमोट कंट्रोल वाले 23 सीलिंग फैन लगाए जाने थे, 85 हजार रुपये का एक ओवन टोस्ट ग्रिल लगना था और 77 हजार रुपये की एक ऑटोमैटिक वॉशिंग मशीन आनी थी। 60 हजार का एक डिशवॉशर, 63 हजार का गैस चूल्हा, 32 हजार का माइक्रोवेव और 91 हजार के छह गीजर भी लगने थे। बंगले में 6 लाख रुपए की लागत से 115 लैंप, वॉल लाइटर, हैंगिंग लाइट और तीन बड़े झूमर लगाए जाने थे।
सीएम के बंगले में इतना ताम-झाम तो बनता ही है। केजरीवाल के शीशमहल पर 55 करोड़ और रेखा गुप्ता के बंगले पर केवल 60 लाख यानी करीब एक प्रतिशत खर्चा हो रहा हो लेकिन बीजेपी फिर भी बंगले की रेनोवेशन का काम वापस ले रही हो तो जाहिर है कि आम आदमी पार्टी के इस अटैक पर भी वह बहुत डिफेंसिव हो गई है। बीजेपी ने इस मुद्दे पर भी जनता को यह नहीं समझाने की कोशिश नहीं की कि दोनों के खर्च के बीच कोई मुकाबला ही नहीं है। जैसे ही राजनीतिक आलोचना का बाजार गर्म हुआ, बीजेपी ने फैसला वापस ले लिया।
बीजेपी शायद बहुत ज्यादा सतर्कता बरतना चाहती है लेकिन फ्यूल बैन का फैसला हो या रेखा गुप्ता के बंगले के लिए रेनोवेशन का काम, दोनों फैसले लेने के बाद कदम वापस खींचे गए हैं। सतर्कता तो फैसला लेने से पहले बरती जानी चाहिए थी। फैसला वापस लेने का मतलब तो यही निकाला जाता है कि आपने गलती की थी और उसे सुधार रहे हैं। यह भी कि आपने फैसला लेने से पहले सोचा ही नहीं था। कहीं बीजेपी के ये कदम आम आदमी पार्टी के हौसले बढ़ाने वाले तो साबित नहीं होंगे? आने वाला वक्त इस सवाल का जवाब देगा।