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अग्निपथ: क्या देश में सेना की पेंशन का बोझ इतना ज़्यादा भारी है?

सेना में भर्ती के लिए केंद्र सरकार अग्निपथ योजना क्यों लेकर आई है? इस सवाल के जवाब में एक तर्क तो यह दिया जा रहा है कि दुनिया भर के देशों में आधुनिक तकनीक से लैस होती सेना के बजट का बड़ा हिस्सा यदि सैनिकों की पेंशन में चली जाएगी तो सुधार कैसे होंगे और नयी-नयी तकनीक को सेना में कैसे लाया जाएगा?

तो सवाल है कि क्या सच में सेना की पेंशन रक्षा बजट पर इतना भार डाल रही है कि बिना अग्निपथ जैसी योजना के बदलाव संभव नहीं है? आख़िर यह बोझ कितना बड़ा है और इसके कम होने से क्या असर होगा? क्या दुनिया के दूसरे देशों में इस मामले में बेहतर स्थिति है और सुधार किया जा रहा है?

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मीडिया में ये ख़बरें आ रही हैं, रक्षा विशेषज्ञ भी इस ओर इशारा करते रहे हैं और हाल के कुछ वर्षों में यह तर्क दिया जा रहा है कि सेना को पेंशन की समस्या है। 2020 में एक संसदीय समिति की रिपोर्ट में भी कहा गया कि 32 लाख रक्षा पेंशनभोगी हैं, जिनमें सालाना लगभग 55,000 जुड़ते हैं। 2010-11 में पेंशन ख़र्च कुल रक्षा ख़र्च का 19 फ़ीसदी था। नवंबर 2015 में ओआरओपी पेश किया गया था। 2020-21 तक पेंशन खर्च बढ़कर रक्षा ख़र्च का 26% हो गया। बढ़ती हुई पेंशन का नतीजा यह हुआ कि नए उपकरण खरीदने के ख़र्च में कमी होती गई।

अनुमान है कि देश के 5.2 लाख करोड़ के कुल रक्षा बजट में से क़रीब आधा तो वेतन और पेंशन पर ख़र्च होता है। इस ख़र्च को अगर कम किया जा सके तो सेना हथियारों की खरीद और आधुनिकीकरण पर खर्च बढ़ा पाएगी। सेना में अभी भी पुरानी पेंशन व्यवस्था लागू है जिसमें पेंशन पूरी तरह से सरकार द्वारा अदा की जाती है जबकि 2004 के बाद केंद्र कर्मियों के लिए नई पेंशन योजना लागू हो चुकी है। नई पेंशन योजना में कार्मिकों के वेतन से राशि की कटौती होती है और उससे ही बाद में पेंशन मिलती है।

इसी के मद्देनज़र अग्निपथ नाम की नई योजना लायी गई है। इसके तहत 17.5 से 21 साल की उम्र के 46,000 लोगों की सेना में भर्ती की जाएगी। ये लोग सिर्फ़ चार सालों तक सेना को अपनी सेवाएँ देंगे। इस अवधि में छह महीने का प्रशिक्षण भी शामिल होगा। इन चार सालों में अग्निवीर बुलाए जाने वाले इन सैनिकों को 30,000 से 40,000 रुपये वेतन मिलेगा। 

चार सालों के बाद इनमें से सिर्फ 25 प्रतिशत सैनिक स्थायी हो पाएँगे और वे गैर अधिकारी रैंकों पर पूरे 15 सालों तक सेवाएं देंगे। बाक़ी 75 फ़ीसदी को नौकरी छोड़नी पड़ेगी।

छोड़ने के समय उन्हें 11.71 लाख का टैक्स फ्री 'सेवा निधि' पैकेज दिया जाएगा जो उनके वेतन से ही कटा हुआ होगा। उनको पेंशन सुविधाएँ नहीं दी जाएँगी।

इस योजना का क्रियान्वयन यदि सफल होता है तो कम से कम दो दशक के बाद पूर्व सैनिकों की पेंशन पर व्यय में 75 फ़ीसदी तक की कमी आ सकती है। तो सवाल है कि यह कितना सही क़दम होगा? क्या दूसरे देशों में भी ऐसी ही स्थिति है?

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मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट ऑफ़ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस द्वारा रक्षा पेंशन का तुलनात्मक अध्ययन किया गया है। वित्त वर्ष 2018 में अमेरिका ने रक्षा विभाग के कुल खर्च का 10% पेंशन के लिए अलग रखा। यूके में, वित्त वर्ष 2019 में पेंशन का खर्च कुल रक्षा खर्च का 14% था। भारत में 2020 में यह 26% था। 

अमेरिका में सेवा के अधिक वर्ष होने पर पेंशन राशि आनुपातिक रूप से बढ़ जाती है। मिसाल के तौर पर 30 वर्ष की सेवा के लिए पेंशन अंतिम मूल वेतन का 75 प्रतिशत है। अमेरिकी सेना में लगभग 19 प्रतिशत नए भर्ती होने वालों ने 20 साल की सक्रिय ड्यूटी पूरी की और इसलिए इतने लोग ही पेंशन के साथ सेवानिवृत्त हुए। हालाँकि नये भर्ती होने वालों में अधिकारी स्तर पर 49 प्रतिशत अधिकारी पेंशन के साथ सेवानिवृत्त होते हैं।

पेंशन कम होने के फायदे कई लोग गिना रहे हैं। ऐसे लोगों में एक कांग्रेसी नेता मनीष तिवारी भी हैं। उन्होंने अग्निपथ योजना को सुधार वाला क़दम बताया है।

मनीष तिवारी ने एनडीटीवी से कहा, 'आज कल के जमाने में आपको एक मोबाइल सेना, एक युवा सेना की आवश्यकता होती है। आपको प्रौद्योगिकी और हथियारों पर अधिक खर्च की आवश्यकता होती है। ऐसा नहीं हो सकेगा यदि आपके पास जमीन पर सैनिकों की बहुत बड़ी संख्या हो और जहां आपका अधिकांश पैसा खर्च हो जाता है।' 

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पहले भी कई मौक़ों पर पार्टी लाइन से अलग विचार रखने वाले तिवारी ने कहा कि पिछले दशकों में युद्ध की प्रकृति में बदलाव आया है। उन्होंने कहा, 'यदि आप तीन दशक पहले के सशस्त्र बलों को देखेंगे, तो एक अधिक मोबाइल अभियान वाला दस्ता रहा है जो प्रौद्योगिकी पर अधिक निर्भर रहा है, जो नवीनतम हथियारों पर अधिक निर्भर रहा है और जो कम उम्र वालों का रहा है- इसलिए उन परिस्थितियों में ऐसे सुधार की बहुत ज़्यादा ज़रूरत है।'

हालाँकि, कई जानकारों ने कई बिंदुओं पर आशंका व्यक्त की है। जैसे क्या सिर्फ़ चार साल एक सैनिक को तैयार करने और फिर सेवा देने के लिए काफी हैं? और जिसका भविष्य अनिश्चित होगा और जिसे पेंशन भी नहीं मिलेगी क्या वह पूरी लगन से सेना की सेवा कर पाएगा?

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क़मर वहीद नक़वी
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