अखंड इसराइल यहूदियों का वह सपना है, जिसे वे अपने अस्तित्व से जोड़ते हैं। हिब्रू बाइबिल (तनख या ओल्ड टेस्टामेंट) के अनुसार, यहोवा (यहूदी ईश्वर) ने हज़रत इब्राहीम को कनान की भूमि देने का वादा किया, जो आज का इसराइल, फिलिस्तीन, और आसपास के क्षेत्र हैं। यह प्रोमिस्ड लैंड है—ईश्वर का वायदा। इस विश्वास ने 19वीं सदी में ज़ायनवाद को जन्म दिया, जिसका लक्ष्य था दुनिया भर के यहूदियों को एकजुट कर यहूदी राष्ट्र बनाना। लेकिन 1948 में इसराइल की स्थापना के बाद अरब-इसराइल युद्ध और सात लाख फिलिस्तीनियों का विस्थापन (नकबा) इस स्वप्न को त्रासदी में बदल गया। यहूदी इसे मातृभूमि की वापसी मानते हैं, तो फिलिस्तीनी इसे तबाही। अरब देशों से घिरा इसराइल लगातार युद्धरत है, और यह कहानी सिर्फ 77 साल पुरानी नहीं, बल्कि चार हजार साल पुरानी है।

हज़रत इब्राहीम और अब्राहमिक धर्म

हज़रत इब्राहीम यहूदी, ईसाई, और इस्लाम—तीनों अब्राहमिक धर्मों के आध्यात्मिक पूर्वज हैं। इब्राहीम और अब्राहम एक ही हैं; बस उच्चारण और नामों में अंतर है—जैसे याकूब-जैकब, डेविड-दाऊद, और ईसा-जीसस। हिब्रू बाइबिल के अनुसार, इब्राहीम ने एकेश्वरवाद की नींव रखी। उनके बेटे इसहाक और इस्माइल थे। इसहाक के वंश से ईसा मसीह और यहूदी आए, जबकि इस्माइल के वंश से हज़रत मोहम्मद साहब और इस्लाम। ईद-उल-अज़हा की क़ुर्बानी की कहानी भी इब्राहीम से जुड़ी है।
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हर धर्म के इर्द-गिर्द ऐसी कहानियाँ हैं, जिन पर अनुयायियों की असीम आस्था है। इन पर न सवाल उठाया जा सकता है, न तर्क की गुंजाइश होती है। अब्राहमिक धर्मों में ईश्वर निराकार है, जो पैगंबरों के ज़रिए मार्गदर्शन करता है। ईसा मसीह ईश्वर के बेटे हैं, न कि ईश्वर।

यहूदी धर्म, जूडा, और मूसा

यहूदी धर्म की शुरुआत 4000 साल पहले हज़रत इब्राहीम से मानी जाती है। उनके बेटे इसहाक़ के पुत्र याकूब (उर्फ इसराइल) के 12 बेटों ने यहूदी कबीलों को जन्म दिया। चौथा बेटा जूडा था, जिसका कबीला दक्षिणी कनान में बसा। बाद में दक्षिणी राज्य जूडा कहलाया। 586 ईसा पूर्व में बेबीलोनियों ने इसे नष्ट किया, लेकिन जूडा के वंशजों ने पहचान बनाए रखी। यहूदी (Yehudi) शब्द जूडा से आया।
हज़रत मूसा (1391-1271 ईसा पूर्व) यहूदी इतिहास के महान नबी हैं। हिब्रू बाइबिल के अनुसार, मूसा का जन्म मिस्र में हुआ, जहां यहूदी गुलाम थे। उनकी बढ़ती जनसंख्या को आपदा का संकेत मानते हुए मिस्र के सम्राट फिरौन ने नवजात यहूदियों को मारने का आदेश दिया, लेकिन मूसा को उनकी मां ने नील नदी में टोकरी में छोड़ा। फिरौन की बेटी को संयोग से वह टोकरी मिल गयी और उसने नवजात मूसा को गोद ले लिया। मूसा बड़े हुए तो उन्हें इसका भान हो गया कि वे यहूदी हैं और एक दिन यहूदी गुलाम को मारने वाले मिस्र निवासी की उन्होंने हत्या कर दी और भाग गए। सिनाई पर्वत पर एक फ़रिश्ते के माध्यम से यहोवा ने उन्हें यहूदियों को मुक्त करने का आदेश दिया। मूसा ने मिस्र के यहूदियों को साथ लेकर ग्रेट एक्सोडस किया। वे यहूदियों को लाल सागर पार कराकर कनान ले गए। सिनाई पर उन्हें दस आदेश (टेन कमांडमेंट्स) मिले जो तोरा में दर्ज हैं। तोरा यहूदियों की बाइबिल तनाएँ के पहले पाँच ग्रंथों का संग्रह है। इन आदेशों में कहा गया है कि:  
  • एक ईश्वर की पूजा करना।  
  • मूर्तिपूजा न करना।  
  • ईश्वर के नाम का अपमान न करना।  
  • शबात (रविवार) को पवित्र रखना।  
  • माता-पिता का आदर करना।
  • हत्या, व्यभिचार, चोरी, झूठी गवाही, और पड़ोसी की संपत्ति की लालसा न करना।
ये आदेश उस समाज की समस्याओं को दर्शाती हैं, जैसे मूर्तिपूजा और अनैतिकता। लेकिन विडंबना है कि पड़ोसी से अच्छा व्यवहार करने की शपथ लेने वाला इसराइल अपने पड़ोसियों से युद्धरत है।
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यरूशलम: तीनों धर्मों का केंद्र

यरूशलम तीनों अब्राहमिक धर्मों के लिए पवित्र है:  
यहूदी: वेस्टर्न वॉल, किंग सोलोमन के प्रथम मंदिर का अवशेष, जहां दस आज्ञाएं संदूक में रखी गयी थीं।  
ईसाई: चर्च ऑफ द होली सेपल्कर, जहां ईसा मसीह को सलीब पर चढ़ाया गया और उनका पुनर्जनन हुआ। ईसा का पुनर्जनन यानी मृत शरीर का जीवित होना ईश्वर की शक्ति और उनके मसीहा होने का प्रमाण माना जाता है।
ईसा यहूदी थे, लेकिन उनके मसीहा होने के दावे को यहूदी नेताओं ने धर्मद्रोह माना, जिससे ईसाइयों में यहूदियों के प्रति नफ़रत बढ़ी।  
इस्लाम: अल-अक्सा मस्जिद और डोम ऑफ द रॉक, जहां से मोहम्मद साहब का मेराज (स्वर्ग यात्रा) हुआ।

1980 में इसराइल ने यरूशलम को राजधानी घोषित किया, लेकिन यूएन ने मान्यता नहीं दी। टेंपल माउंट का धार्मिक प्रबंधन जॉर्डन के पास है, पर इसराइली पुलिस सुरक्षा नियंत्रित करती है। तीनों धर्म यरूशलम पर दावा करते हैं, और साझा प्रबंधन की बजाय संघर्ष चुनते हैं।

ज़ायनवाद और इसराइल की स्थापना

19वीं सदी में यूरोप में एंटी-सेमिटिज़्म ने ज़ायनवाद को जन्म दिया। थियोडोर हर्ज़ल ने 1897 में ज़ायनवादी संगठन बनाया। आलियाह (वापसी) में 1881 से यहूदी रूस और यूरोप से फिलिस्तीन आये। 1917 की बालफोर घोषणा में ब्रिटेन ने यहूदी राष्ट्रीय घर का समर्थन किया, ताकि अमेरिका और रूस के यहूदी समुदाय का समर्थन मिले और स्वेज नहर (1869 में बनी, जो भूमध्य सागर को लाल सागर से जोड़ती है) की रक्षा हो। 1922 में लीग ऑफ़ नेशन्स ने इसे मान्यता दी, और 1922-1935 में यहूदी आबादी 9% से 27% हो गई। फिलिस्तीनियों ने इसे नकबा या नुक़सान करने वाली घटना कहा।

द्वितीय विश्व युद्ध में हिटलर के होलोकॉस्ट में 60 लाख यहूदी मारे गए। हिटलर की नस्ली घृणा (यहूदियों को गैर-आर्य मानकर) ने यहूदी वैज्ञानिकों जैसे आइंस्टीन को देश छोड़ने पर मजबूर किया। होलोकॉस्ट के बाद यहूदी राष्ट्र की मांग तेज हुई। 1947 में यूएन ने फिलिस्तीन को दो हिस्सों में बाँटा। 14 मई 1948 को इसराइल बना। महात्मा गांधी और नेहरू ने इसका विरोध किया, क्योंकि यह अरबों की ज़मीन पर ज़बरदस्ती था। भारत, अरब देशों के साथ, इसराइल के गठन के खिलाफ वोट देने वाला अकेला गैर-अरब देश था। भारत की यह नैतिक विदेश नीति ने उसे गुटनिरपेक्ष आंदोलन का नेता बनाया।

अरब-इसराइल युद्ध

इसराइल की स्थापना के बाद अरब देशों ने इसे मान्यता नहीं दी, और युद्ध शुरू हो गए:  
1948 युद्ध: मिस्र, जॉर्डन, सीरिया, लेबनान, और इराक ने हमला किया। 
कारण: इसराइल का गठन। इसराइल ने 78% क्षेत्र जीता।  
1956 स्वेज संकट: इसराइल, ब्रिटेन, और फ्रांस ने मिस्र पर हमला किया। 
कारण: मिस्र ने स्वेज नहर का राष्ट्रीयकरण किया।  
1967 छह-दिवसीय युद्ध: इसराइल ने मिस्र, जॉर्डन, और सीरिया को हराकर गज़ा, वेस्ट बैंक, पूर्वी यरूशलम, और गोलान हाइट्स कब्जाए। 
कारण: मिस्र की नौवहन नाकेबंदी।  
1973 योम किप्पुर युद्ध: मिस्र और सीरिया ने हमला किया। 
कारण: 1967 के खोए क्षेत्र वापस लेना। इसराइल जीता।  
1982 लेबनान युद्ध: इसराइल ने PLO के खिलाफ लेबनान पर हमला किया। 
कारण: PLO के हमले।  
गज़ा युद्ध (2008-09, 2012, 2014, 2021, 2023-25): इसराइल और हमास के बीच। 
कारण: हमास के रॉकेट हमले और इसराइल की नाकेबंदी।

PLO और हमास

फिलिस्तीन मुक्ति संगठन (PLO) 1964 में यासर अराफात के नेतृत्व में बना। उद्देश्य सशस्त्र संघर्ष से इसराइल को खत्म कर फिलिस्तीन बनाना था। 1970-80 में PLO ने गुरिल्ला हमले किए लेकिन 1993 के ओस्लो समझौते में PLO ने इसराइल को मान्यता दी और हिंसा छोड़ी। यूएन ने 1975 में इसे पर्यवेक्षक दर्जा दिया। भारत का PLO और अराफात से दोस्ताना रिश्ता रहा।

हमास (हरकत अल-मुकावमा अल-इस्लामिया) 1987 में पहले इंतिफादा (विद्रोह) में बना। उद्देश्य था इसराइल का विनाश और इस्लामिक राज्य की स्थापना। इसकी सैन्य विंग (इज़दीन अल-क़ासम ब्रिगेड) में 30,000 सदस्य हैं। 2006 में हमास ने ग़ज़ा में सत्ता हासिल की। यह रॉकेट हमले और सुरंगों से इसराइल पर हमला करता है, और ईरान इसका समर्थन करता है। PLO दो-राज्य समाधान चाहता है, लेकिन हमास एक-राज्य (इस्लामिक)।
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ग़ज़ा की तबाही

2023-2025 के इसराइल-हमास युद्ध में ग़ज़ा में भारी तबाही हुई।  11 जून 2025 तक ग़ज़ा स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार 55,000 से अधिक फिलिस्तीनी मारे गए। इसराइली हमलों ने स्कूल, अस्पताल, और आवासीय क्षेत्र नष्ट किए। यूएन के अनुसार, ग़ज़ा की 22 लाख आबादी में 10.7 लाख शरणार्थी हैं। इसराइल ने पानी, भोजन, और दवा की आपूर्ति रोकी। 2023-24 में औसत 200 ट्रक प्रतिदिन ग़ज़ा पहुँचे, पहले के 10,000 के मुक़ाबले। हाल ये है कि 17 जून 2025 को इसराइली टैंकों ने सहायता ट्रकों के पास भीड़ पर गोलीबारी की, जिसमें 59 लोग मारे गए। स्कूलों पर हमले युद्ध अपराध की श्रेणी में आते हैं। यूएन ने प्रस्ताव 242 (1967) में इसराइल से कब्जे वाले क्षेत्र छोड़ने को कहा, लेकिन अमेरिकी वीटो ने प्रभाव कम किया।

अरब में अमेरिकी सैन्य अड्डे

लंबे संघर्ष के बाद  मिस्र (1979), जॉर्डन (1994) ,यूएई, बहरीन, सूडान, मोरक्को (2020) ने इसराइल को ईरान (1950)  ने मान्यता दी थी लेकिन 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद वापस ले लिया। आज ईरान इसराइल विरोध का केंद्र है। इसराइल का दावा है कि ईरान परमाणु हथियार बना रहा है, जो उसके अस्तित्व के लिए खतरा है। इसीलिए इसराइल ने ईरान पर हमला किया। हैरानी की बात ये है कि इस समय कई अरब देश अमेरिका के सैनिक अड्डे बने हुए हैं जहाँ से ईरान पर हमला हो रहा है या हो सकता है।
  • कतर: अल उदेद एयर बेस।  
  • यूएई: अल धफ्रा एयर बेस।  
  • बहरीन: नेवल सपोर्ट एक्टिविटी। 
  • सऊदी अरब: प्रिंस सुल्तान एयर बेस। 
  • कुवैत: कैंप अरिफजान और अली अल सलेम एयर बेस।

ये अड्डे मध्य पूर्व में अमेरिकी प्रभाव और तेल नियंत्रण के लिए हैं। सऊदी अरब के बाद ईरान में सबसे अधिक तेल है, जिसने पश्चिमी हस्तक्षेप को बढ़ावा दिया।

तेल का खेल

इसराइल अमेरिकी समर्थन से मज़बूत है। अमेरिका का मक़सद मध्य पूर्व के तेल पर नियंत्रण है। ईरान के पास दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल भंडार है। अगर रूस और चीन ईरान का खुलकर साथ देते हैं, तो तीसरा विश्व युद्ध दस्तक दे रहा है। मूसा के अनुयायी और पड़ोसियों से अच्छा व्यवहार करने की शपथ लेने वाले यहूदी पड़ोसियों पर बारूदी बारिश कर रहे हैं। पड़ोस में आग लगाकर घर बचाने की ख्वाहिश नादानी है।